कहीं होता है दर्द तो चल पड़ती है कलम ... मानो बनकर स्याही दर्द भर जाता है कलम में ... मानो बनकर शब्द बोल पड़ती है आंसू, मानो बनकर लकीरें बह निकलता है एहसास ...
दो क्षणिकाएं प्रस्तुत है हर उस नारी के नाम जिसने देखी है जिंदगी !१.
मन के किसी कोने में बैठी,
आज भी,
कोई छोटी सी बच्ची है !
चाहो तो कह लो कल्पना,
चाहो तो कह लो कल्पना,
या कविता,
पर बिलकुल सच्ची है ...
२.
आपदा अपने पीछे,
छोड़ जाती है खंडहर ।
पर इंसान
हर आपदा के बाद,
नए सिरे से करता है निर्माण ।
बसता है नया शहर,
होती है शुरुआत,
नई जिंदगी की ।
वाह बहुत खूब...
ReplyDeleteदूसरी क्षणिका बहुत अच्छी लगी....
पहली में काफी बचपना झलकता है, और दूसरी में काफी गहरी सोच...
कुल मिलकर बहुत सुन्दर....
Nice thoughts!
ReplyDelete@ शेखर सुमन जी
ReplyDeleteजिसे आप बचपना समझ रहे हैं, वो दरअसल मन के अंदर बैठा वही छोटा सा बच्चा है जिसके बारे में मैंने लिखा है ...
वाह !!!!!!!!! क्या बात है..... अच्छी है .शानदार जानदार और क्या कहूँ.......
ReplyDeleteसिर्फ एक शब्द ..वाह वाह....और क्या कहें
ReplyDeleteअच्छी क्षणिकाएं
ReplyDeleteमन हर्षित हो गया!!
दोनों रचनाएँ अच्छी लगीं.
ReplyDeleteइन्द्रनील भाई ..... बहुत खूब !!
ReplyDeleteआह जिंदगी......
ReplyDeleteवाह जिंदगी.....
इस मैले में..
दुनिया के झमेले में...
देखो कहीं खो गयी जिंदगी......
प्रणाम आपकी रचना को ....... उसे पढ़ कर मैं भी बक बक करने लग गया.
दोनो ही क्षणिकायें बेहद गहन और उम्दा।
ReplyDelete....अति सुंदर इन्द्रनील जी!...कल्पनाओं के भी कितने सुंदर पंख!...
ReplyDeleteआप सबको बहुत बहुत शुक्रिया कि आप सबने इस रचनाओं को सराहा है ...
ReplyDeleteपहली कविता बड़ी प्यारी लगी. दूसरी सुन्दर सार लिए.
ReplyDelete... bahut khoob !!!
ReplyDeleteबसता है नया शहर,
ReplyDeleteहोती है शुरुआत,
नई जिंदगी की -----बहुत खूब.
दोनों क्षणिकाएं अच्छी लगी.
सुंदर क्षणिकायें।
ReplyDeleteबहुत खूब सैल साहब,
ReplyDeleteदूसरी वाली क्षणिका कुछ ज्यादा ही अच्छी लगी।
आभार।
सही कहा दोस्त। आदमी या तो नए निर्माण करता है या फिर अपनी यात्रा पर चल पड़ता है। अगर नहीं चलता तो समय धक्का मारकर उसे आगे भेजता रहता है। जिदंगी अच्छी हो या बुरी नए तरह से ही शुरु होती है फिर।
ReplyDeleteमन के किसी कोने में बैठी,
ReplyDeleteआज भी,
कोई छोटी सी बच्ची है !
चाहो तो कह लो कल्पना,
या कविता,
पर बिलकुल सच्ची है ...
दोनों क्षणिकाएं कमाल हैं.... यह ज्यादा अच्छी लगी....
आपदा नई भोर , नए हौसले की सीढ़ी है
ReplyDeleteसहज और सच्ची बात....खूबसूरत क्षणिकाएँ ...पढ़ कर बहुत अच्छा लगा...बधाई
ReplyDeleteहर आपदा के बाद,
ReplyDeleteनए सिरे से करता है निर्माण ।
बसता है नया शहर,
होती है शुरुआत,
नई जिंदगी की ।
आपदाओं से ही आदमी जीना सीखता है। बहुत अच्छी लगी आपकी रचनायें। धन्यवाद।
Pyari aur samajhdaar :)
ReplyDeleteआपदा अपने पीछे,
ReplyDeleteछोड़ जाती है खंडहर ।
पर इंसान
हर आपदा के बाद,
नए सिरे से करता है निर्माण ।
बसता है नया शहर,
होती है शुरुआत,
नई जिंदगी की ..
बहुत लाजवाब ... सच लिखा है इंसान की फितरत ... जिन्दा रहने की चाह ... बार बार टूटने पर भी जिन्दा रहने को उकसाती है ...
कल्पना...Imagination कई बार एक छोटी बच्ची-सी ही तो जान पड़ती है!
ReplyDeleteपर इंसान
ReplyDeleteहर आपदा के बाद,
नए सिरे से करता है निर्माण ..
Beautiful imagination !
.
आपदा अपने पीछे,
ReplyDeleteछोड़ जाती है खंडहर ।
पर इंसान
हर आपदा के बाद,
नए सिरे से करता है निर्माण ।
बसता है नया शहर,
होती है शुरुआत,
नई जिंदगी की ।
सोचने के लिए कुछ भी नहीं यह सच्चाई है .....शुक्रिया
चलते -चलते पर आपका स्वागत है ....
बेहतरीन अभिव्यक्ति...................
ReplyDeleteवाकई वो छोटी सी बच्ची हर किसी के मन में बसती है! कितना सही कहा है आपने!
ReplyDeleteहर आपदा के बाद,
नए सिरे से करता है निर्माण ।
बसता है नया शहर,
होती है शुरुआत,
नई जिंदगी की ।
हर परिस्थिति में जिंदगी गतिमान रहती है, हादसों के बाद नवनिर्माण में जुटती है. जिंदगी ऐसी ही होती है. दिल की गहराईयों को छूने वाली, गहन संवेदनाओं की बेहद मर्मस्पर्शी अभिव्यक्ति. आभार.
सादर
डोरोथी.
आप सबको अनेक अनेक धन्यवाद !
ReplyDelete@Dorothy jee
यही तो सच्चा ई है जिंदगी की ... ये नहीं रूकती है ... तकलीफ कितनी भी हो ... चलना ही जिंदगी है
बहुत खूब लिखा है.... सैल जी . आपकी ये रचना पसंद आई.
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