हमने देखी है ये समा अक्सर ।
तन्हा महफ़िल में दिल रहा अक्सर ॥
अश्क जो हमने यूँ छुपाया था ।
उससे अपना ही दिल जला अक्सर ॥
फिर किसी बात पे न रोयेंगे ।
रोये हैं करके फैसला अक्सर ॥
पीठ पीछे जो चोट करता था ।
हंसके फिर वो गले मिला अक्सर ॥
साथ चलने की कसमें खाई थी ।
वो मिला है जुदा जुदा अक्सर ॥
अब तो मुझको भी मौत आ जाये ।
“सैल” मांगी है ये दुआ अक्सर ॥
सच कहूँ सर इस पोस्ट की मै तारीफ नहीं कर पाऊंगा ........
ReplyDeleteक्योकि इसके लिए तारीफ के शब्द ढूँढू तो आखिर कहाँ से...
शुक्रिया आशीष !
ReplyDeletewaah, kya khub likha hai indranil ji. Ashish ji ne sahi kaha shabd nahi mere paas bhi.
ReplyDeletenice one.
ReplyDeleteशेखर सुमन और प्रतिभा जी, आप दोनों को धन्यवाद !
ReplyDelete"फिर किसी बात पे न रोयेंगे ।
ReplyDeleteरोये हैं करके फैसला अक्सर ॥"
बहुत खूब दादा।
हमने भी यही महसूस किया अक्सर।
ReplyDeleteधन्यवाद, संजय जी और राजेश जी
ReplyDeleteफिर किसी बात पे न रोयेंगे ।
ReplyDeleteरोये हैं करके फैसला अक्सर ॥
ये पंक्तियाँ नए अंदाज़ से बात कह गईं. बहुत ही सुंदर रचना.
पीठ पीछे जो चोट करता था ।
ReplyDeleteहंसके फिर वो गले मिला अक्सर ॥
साथ चलने की कसमें खाई थी ।
वो मिला है जुदा जुदा अक्सर ॥
बहुत सुंदर लिखा है आपने।
फिर किसी बात पे न रोयेंगे ।
ReplyDeleteरोये हैं करके फैसला अक्सर
अच्छी प्रस्तुति
भुसंजी, महेंद्र जी और मासूम जी, आप सभी को बहुत बहुत शुक्रिया !
ReplyDeleteवाह! गजब की रचना, शब्दों का सुन्दर जादू, भावनाओं की कारीगरी, एक दम कमाल!! वाह, वाह!!
ReplyDeleteबहुत सुन्दर..............गहरी अभिव्यक्ति.............
ReplyDeleteसुन्दर अभिव्यक्ति !
ReplyDeleteसुमन जी, दिव्या जी और और ktheLeo, आप सब को शुक्रिया हौसला अफजाही के लिए ...
ReplyDeleteआदरणीय“सैल”जी
ReplyDeleteनमस्कार !
बहुत शानदार ग़ज़ल लिखते है आप तो, पूरी रवां-दवां , मुकम्मल बह्रो-वज़्न में !
फिर किसी बात पे न रोयेंगे
रोये हैं करके फैसला अक्सर
हासिले-ग़ज़ल शे'र है
पूरी ग़ज़ल के लिए मुबारकबाद कुबूल फ़रमाएं ।
शुभकामनाओं सहित
- राजेन्द्र स्वर्णकार
Jo baatein hum likhjne ko shabd dhundhte reh gaye... wahi dusro ki zubaani sun k mann khush hua aksar...
ReplyDeleteफिर किसी बात पे न रोयेंगे ।
रोये हैं करके फैसला अक्सर
Ab ye to khuda hi jaane k aisa hua kyu kar
फिर किसी बात पे न रोयेंगे ।
ReplyDeleteरोये हैं करके फैसला अक्सर ॥
पीठ पीछे जो चोट करता था ।
हंसके फिर वो गले मिला अक्सर ...
BAHUT HI LAJAWAAB SHER HAIN DONO ... AKSAR AISA HOTA HAI ...
बहुत उम्दा ग़ज़ल कही आपने ...बधाई
ReplyDeleteयहाँ भी पधारे
दुआएँ भी दर्द देती है
6.5/10
ReplyDeleteअश्क जो हमने यूँ छुपाया था ।
उससे अपना ही दिल जला अक्सर ॥
बहुत खूब
यह ग़ज़ल हर दिलजले को घायल करेगी. गारंटी
Bahut sunder!
ReplyDeleteumda ghazal hui hai sahab
ReplyDeleteफिर किसी बात पे न रोयेंगे ।
रोये हैं करके फैसला अक्सर ॥
ye to sabse hi shandar sher laga...matalab is ghazal ke baki sher par sawa sher.. :)
kyun mila hai wo juda aksar
ReplyDeletemaine to maandi thi dua milne ki aksar ...
इन्द्रोनील दादा बाक़ी सब तो ठीक है, पर आपकी दुआ पूरी न हो यह दुआ हमने मांगी है। बहुत अच्छी प्रस्तुति। हार्दिक शुभकामनाएं!
ReplyDeleteफ़ुरसत में .... सामा-चकेवा
विचार-शिक्षा
पीठ पीछे जो चोट करता था ।
ReplyDeleteहंसके फिर वो गले मिला अक्सर
बहुत खूब कही आपने...सुंदर रचना..
@ राजेंद्र स्वर्णकार जी
ReplyDeleteब्लॉग पर पधारने के लिए शुक्रिया ... आपकी टिप्पणी तो हासिले-पोस्ट टिप्पणी है ... यूँ ही आते रहिये और हौसला अफजाही करते रहिये ...
@ मोनाली जी
ReplyDeleteमैंने तो सिर्फ कोशिश की है ... आपको ये अपनी बात लगी ये मेरी खुशकिस्मती है
@ नासवा जी, रानीविशाल जी, अंजना जी, विनोद जी, स्वप्निल जी - बहुत बहुत शुक्रिया
@ उस्ताद जी - अजी दिल जलते हैं तभी तो ग़ज़ल पैदा होती है उसकी राख से ... क्यूँ ...
@ मनोज जी - अरे आप इतना संजीदा न होइए ... आपने हमारे लिए दुआ की ... इससे ज्यादा और क्या चाहिए ...
@ रश्मी दीदी - कुछ दुआ शायद खुदा को मंज़ूर नहीं होती है ..
कमाल की रचना ! हार्दिक शुभकामनायें
ReplyDeleteबहुत लाजवाब गज़ल है जैसे सबके दिलों का हाल लिख दिया
ReplyDeleteबहुत ही सुन्दर गज़ल. शुभकामनाएं.
ReplyDeleteआज पहली बार आपके ब्लॉग पर आया हूँ बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति ........
ReplyDeletesunder avhivyakti...
ReplyDeleteblog par aane ko
ReplyDeleteaapka aabhar
yuhi margdarsan karte rahiye
dhanyvad
aapki rachna bahut hi sunder hai
ReplyDeleteaabhar
... behatreen !!!
ReplyDeleteसुंदर और सार्थक ग़ज़ल.
ReplyDeleteकुछ शेर तो बहुत ही उम्दा बन पड़ें हैं .
इसके लिए आपको बधाई.
रचना तो उमदा है लेकिन इस उम्र मे मरने की बात अच्छी नही लगी। बहुत बहुत आशीर्वाद।
ReplyDeleteनिर्मला जी,
ReplyDeleteआपको रचना अच्छी लगी मेरा सौभाग्य है ...
ग़ज़ल की बात है, आप दुखी न होइए ...