आपको पता है हमारे चहेते संगीत निर्देशक कितनी तकलीफ झेलकर दुनिया के किस किस कोने से धुन चुराकर लाते हैं ताकि हम उनका लुत्फ़ उठा सकें ...
हमें इनको धन्यवाद देना चाहिए ... क्यूंकि इनके प्रयासों के बिना हम शायद ऐसी धुन न सुन पाते ...
आपको पाकिस्तानी, बंगलादेशी, पाश्चात्य संगीत या दुनिया का हर संगीत सुनाने का श्रेय (अलबत्ता चुराकर), हमारे इन भारत प्रसिद्द संगीतकारों को जाता है ...
मैंने अपने ब्लॉग "Copycats" में ऐसे ही बेहतरीन और मौलिक संगीतकारों को सामने लाने की कोशिश की है ...
उम्मीद है आप मेरी इस "मौलिक" कोशिश को सराहेंगे ....
आप सबका मेरे इस ब्लॉग में स्वागत है ...
आपकी यह कोशिश प्रशंसनीय है. इसे जारी रखें. हमें मौलिक गाने सुनने को मिलेंगे.
ReplyDeleteचिरागों से चिरागों में रोशनी भर दो,
ReplyDeleteहरेक के जीवन में हंसी-ख़ुशी भर दो।
अबके दीवाली पर हो रौशन जहां सारा
प्रेम-सद्भाव से सबकी ज़िन्दगी भर दो॥
दीपावली की हार्दिक शुभकामनाएं और बधाई!
सादर,
मनोज कुमार
देखते हैं अभी जा कर.
ReplyDeleteसुख औ’ समृद्धि आपके अंगना झिलमिलाएँ,
दीपक अमन के चारों दिशाओं में जगमगाएँ
खुशियाँ आपके द्वार पर आकर खुशी मनाएँ..
दीपावली पर्व की आपको ढेरों मंगलकामनाएँ!
-समीर लाल 'समीर'
Bhushan jee,
ReplyDeleteThank you for the encouragement and the information that you provided in my Blog "Copycats"
अच्छा प्रयास। देखते हैं वहाँ जा कर। धन्यवाद।
ReplyDeleteसैल साहब, आपकी मेहनत की तारीफ़ करते हैं हम। सिर्फ़ गाने ही क्यों, सीन दर सीन चुरा लिये जाते हैं।
ReplyDeleteसंगीत की वैसे तो कोई भाषा नहीं होती और अगर मुझे कोई कर्णप्रिय धुन सुनने को मिल रही है, वो भी अपनी भाषा में, तो मैं तो ऐसे काम की तारीफ़ ही करूँगा। अब भाषा, तकनीक, साधन वगैरह के मामले में हर कोई इतना खुशकिस्मत नहीं होता कि मूल रचना तक पहुंच सके। हाँ,सन्दर्भ जरूर देना चाहिये और रायल्टी वगैरह कुछ बनती हो तो वो भी चुकानी चाहिये, आखिर ओ ये लोग प्रोफ़ैशनल्स ही हैं।
फ़िर भी, आपके ब्लॉग के माध्यम से मूल रचना के बारे में जानकर अच्छा लगा। धन्यवाद।
@ मो सम कौन
ReplyDeleteआपकी बात से सहमत हूँ कि अच्छे धुन सुनने को मिलता है ... पर क्यूँ न हम मूल रचना ही सुने ... चुराया हुआ माल खाना क्या अच्छी बात है ?
हमारे संगीतकार धुन तो उठाते ही हैं, पर नमकहरामी भी करते हैं ... मूल रचनाकार की बात बताना भूल जाते हैं ...
आपकी यह बात कि "भाषा, तकनीक, साधन वगैरह के मामले में हर कोई इतना खुशकिस्मत नहीं होता कि मूल रचना तक पहुंच सके" कुछ हद तक सही है ... पर पूरी तरह नहीं ...
ReplyDeleteज्यादातर लोग जो आसानी से मूल रचना का आनंद ले सकते हैं, वो इस बारे में सोचते ही नहीं है ... दरअसल हमारे देश में कापीराईट का कोई महत्व कभी नहीं था न है ... इस बात को मैं बहुत ही गलत मानता हूँ ... हमें कोई फर्क नहीं पड़ता है कि हमारे संगीतकार चुराए हुए धुन सुना रहे हैं ...
उन्हें कोई मेहनत नहीं करनी पड़ती है और फिल्म हिट ...
ज़रा सोचिये क्या ये सही तरीका है ....
अगर हर कोई इस तरह सोचे तो शायद बहुत ही कम समय में भारतीय संगीत का महान परंपरा खतम हो जायेगा ... हर कोई हर वक्त बस चोरी का संगीत ही सुनेगा ... अच्छा संगीत का रचना कभी होगा ही नहीं
क्यूँ न हम मूल रचना ही सुने ... चुराया हुआ माल खाना क्या अच्छी बात है ?
ReplyDeleteवैसे हमारे यहाँ कहते हैं कि चोरी का गुड खाने में कुछ ज्यादा ही मीठा लगता है :)
सैल जी, चोरी को जायज न ठहरा कर मैं भी यही चाह रहा हूँ कि मूल रचना व रचनाकार को उनका देय सम्मान व रायल्टी देकर ही दूसरी भाषा के लोगों तक उपलब्ध करवाना चाहिये।
ReplyDeleteसंगीत, साहित्य किसी एक प्रांत, भाषा की संपत्ति न होकर समस्त मानवता के लिये तोहफ़ा हैं, प्रचार प्रसार होना ही चाहिये, लेकिन जायज तरीके से ही।
आपकी यह कोशिश प्रशंसनीय है.
ReplyDeleteधन्यवाद
आप अपने प्रयास जारी रखें सचाई हमेशा सामने आनी चाहिए ...शुभकामनायें
ReplyDeleteKoshish bahut achhi hai.... main pahale yahan ja chuki hun....
ReplyDeleteसैल जी, अब क्या कहूं इस पर लोग चुराते है और शान से अपना बताते हैं!लेकिन आप की Research यकीन गहरी है! पर चोरों को शर्म आये मुमकिन नही!
ReplyDeleteचोरों को शर्म आये ये मेरा उद्देश्य भी नहीं ...
ReplyDeleteमैं आम जनता के मन में मौलिक कृति और बेहतरीन मौसिकी के बारे में जागरूकता पैदा करना चाहता हूँ ...
यदि मेरे इस ब्लॉग से एक भी इंसान में जागरूकता पैदा हो तो इसे मैं सार्थक समझूंगा ...