Indranil Bhattacharjee "सैल"

दुनियादारी से ज्यादा राबता कभी न था !
जज्बात के सहारे ये ज़िन्दगी कर ली तमाम !!

अपनी टिप्पणियां और सुझाव देना न भूलिएगा, एक रचनाकार के लिए ये बहुमूल्य हैं ...

Jul 26, 2010

आपके ब्लॉग का नाम क्या होना चाहिए



कितना मज़ा आता यदि हर कोई अपने ब्लॉग का नाम अपनी उपजीविका के अनुसार रखता .... इस पर मैंने बहुत सोचा ... और कुछ नाम आपके सामने हाज़िर है ... ज़रा आप भी अपने दिमाग पर जोर डालिए ... मुझे यकीन है आप भी ऐसे कई नाम बता सकते हैं ...
चूँकि मैं एक भूवैज्ञानिक हूँ शुरुआत भूवैज्ञानिक से ही होनी चाहिए ...
१.      भूवैज्ञानिक – www.पत्थर के सनम.blogspot.com (मुझे मेरी पत्नी यही कहकर बुलाती है)
२.      डॉक्टर – www.हड्डी पसली.blogspot.com
३.      मनोवैज्ञानिक – www.स्क्रू ढीला है.blogspot.com
४.      वकील – www.धारा ४२०.blgospot.com
५.      शिक्षक – www.मुर्गा बनो.blogspot.com
७.      सरकारी नौकर – www.कुछ वजन रखिये.blogspot.com

चलिए अब आपकी बारी है .... 

चित्र साभार गूगल सर्च से ली गई है !

Jul 24, 2010

रुक रुक कर यूँ चलना क्या



बहुत दिनों बाद फिर से एक ग़ज़ल लिखने की कोशिश की है मैंने, उम्मीद है आप सबको पसंद आयेगी ....

रुक रुक कर यूँ चलना क्या ।
अंधेरों में पलना क्या

कर दो जो भी करना है ।
फिर हाथों को मलना क्या

परवाने सा जल जाओ ।
टिम टिम कर यूँ जलना क्या

फैला दो अब लालिमा ।
बादल पीछे ढलना क्या

फल से लदकर झुक जाओ ।
इतने ऊपर फलना क्या

अब तो दिल को समझाओ ।
खुद ही खुदको छलना क्या

जाने क्या कहता है ‘सैल’ ।
उसकी बातें खलना क्या

चित्र साभार गूगल सर्च

Jul 22, 2010

धर्म - आदत, मजबूरी, डर ???


ब्लॉग्गिंग की दुनिया में अपने अपने धर्मो को श्रेष्ठ बताने वाले बहुत मिलेंगे । कई ऐसे हैं जो हिंदुत्व की प्रशंसा करते रहते हैं, कुछ इस्लाम की तो कुछ ईसाई धर्म की । कई तो ऐसे भी हैं जो ये कहने से नहीं चुकते हैं कि हमारा धर्म दुसरे धर्मों से अच्छा है । कई लोग दुसरे धर्मों की बुराईयां भी ढूंढ निकालते हैं । 


मेरा यह मानना है कि हर धर्म/मज़हब में कुछ अच्छी बातें तो कुछ बुरी बातें होती है हमें चाहिए कि हम अच्छी बातों को अपनाये और बुरी बातों को त्याग दें इसी में मानव जाती की भलाई है पर कोई भी अपने धर्म में कुछ गलत देख ही नहीं पाता है या यूँ कहिये कि देखकर भी देखना नहीं चाहता है । मन में डर, कि यदि हम मानलें कि हमारे धर्म में कोई ऐसी बात है जो अच्छी नहीं है, तो हम दूसरों के सामने, अपनों के सामने भी, छोटे पड़ जायेंगे, हेय हो जायेंगे पर दरअसल होगा उल्टा यदि हर कोई अपने धर्म से खोटी बात को निकाल दे, तो ज़रा सोचिये, कि हर धर्म कितना सुधर जायेगा


कोई भी धर्म हो, इनके नियम, कायदे, कानून, हम जैसे कुछ लोग ही बनाये हैं जिस समय वो नियम बनाये गए थे, उस समय के परिप्रेक्ष में वो शायद सही होंगे, पर हमें हर बात आज के परिप्रेक्ष में देखनी चाहिए


आदत से मजबूर होकर कोई नियम का पालन करने से क्या होगा, या फिर बस इसलिए कि वो कोई धर्मग्रन्थ में लिखा हुआ है


क्या हमारे पास दिमाग नहीं है
क्या हम जड़ बुद्धि हैं जो क्या सही है और क्या ग़लत इस बात का फैसला करने के लिए हमें किसी धर्मग्रन्थ या पुजारी/मौलवी की ज़रूरत पड़ती है
ये धर्म के ठेकेदार क्या ज्यादा दिमागवाले हैं
हो सकता है कि किसीको कुरान, bible  या फिर गीता कि बातें पता हो, तो उससे क्या ये सिद्ध हो जाता है, कि उसके पास दिमाग नहीं है, या फिर उसके पास जो भी ज्ञान है (जैसे कि वो एक डॉक्टर हो सकता है या फिर एक इंजिनियर या वैज्ञानिक) वो व्यर्थ है


धर्म आखिर है क्या
जो सही है उस बात का पालन करना या फिर जो किसी किताब में लिखी बात है उसका पालन करना ?
और यदि किताब में गलत बात लिखी हो तो भी हम उसे ही मानेंगे, ये जानते हुए भी कि यह गलत है !!!!
ये तो हमें खुद सोचना है कि इंसानियत बड़ी है या तथाकथित मज़हब । 
हम स्कूल जाते हैं, कॉलेज, फिर विश्व विद्यालय । स्नातक बनते हैं, स्नातकोत्तर उपाधि ग्रहण करते हैं, कई तो डॉक्टरेट भी करते हैं, और फिर जिंदगीभर अन्धविश्वास का गुलाम बनकर जीते हैं । फिर पढाई में इतने पैसे, इतना प्रयास, इतना वक्त व्यय करते हैं, वो किसलिए । उससे तो अच्छा है हम अनपढ़ ही रहें । कम से कम इतने सारे पैसे, वक्त और कोशिश तो बच जायेंगे ।
फिर हम अपना सारा वक्त देते हैं अपनी देश की सरकार की गलतियाँ निकालने में । ये है हमारा योगदान अपने समाज को । क्या बात है !
चित्र गूगल सर्च से साभार लिया गया है

Jul 19, 2010

बस हो क्षुधा निवारण



यह रचना हर जीवित प्राणी के उस मजबूरी पर लिखी गई है जिसका नाम है "भूख" ....
कल हमारे साथ कुछ ऐसी बात घटी कि हम कुछ लिखने पे मजबूर हो गए । उस घटना को मैं यहाँ नहीं दे रहा हूँ, 
क्यूंकि उसका वर्णन आपको यहाँ मिल जायेगा
यही सत्य है, अमोघ,
शक्ति है तुम्हारी
सारा जगत, हर क्षण,
वश में है तुम्हारे
भयभीत है तुमसे,
हर प्राणी, जल-स्थल
नतमस्तक हैं सब,
देख तुम्हारे बाहुबल
हर सकते हो सभी के
बुद्धि, हिताहित ज्ञान
पाप-पुण्य, धर्म, कहीं  
तुम्हारा न समाधान,
तुच्छ है तुम्हारे आगे
सुख, दुःख हो या भय
जीता है न तुमसे कोई
भयानक हो, तुम अजय
निष्ठुर, निर्मम हो तुम,
जीवन की शर्त हो
सामाजिक मूल्यों के
मुंह पर एक गर्त हो
संभव ना है किसीसे
भी अनंत अनशन
खाद्य कुखाद्य हो
बस हो क्षुधा निवारण

चित्र साभार गूगल सर्च से लिया गया है

Jul 13, 2010

हाथी


इससे पहले मैंने आप को भालू का किस्सा सुनाया था

भालू भाग रहा था, उसके पीछे मैं



आज फिर हाज़िर हूँ आप सबके सामने मेरे जीवन का एक किस्सा लेकर ।

किस्सा सुनाने से पहले मैं आप सबको मेरे जन्मस्थान ‘जोड़ा’ के बारे में कुछ बता दूँ । बताना जरूरी भी है । जोड़ा नामक उपनगर, उड़ीसा राज्य के केन्दुझर जिले में बसा हुआ है । उड़ीसा और झाड़खंड के सीमा से लगभग २० किमी दक्षिण में स्थित यह उपनगर लौह तथा मंगानिज़ अयस्क के कारण प्रसिद्द है । यहाँ टिस्को के अलावा कई और निजी कम्पनिओं के खान, कारखाना इत्यादि है । यह इलाका घने जंगलों से घिरा हुआ है जिसमें कई प्रकार के जंगली जानवर पाए जाते हैं । इन जंगली जानवरों में से एक हैं सबसे बड़ा स्थलचर प्राणी ‘हाथी’, जो उड़ीसा के केन्दुझर, सुंदरगढ़, मयूरभंज, सम्बलपुर, बरगढ़, अनगुल, सोनापुर, बोलांगीर जिले तथा झाड़खंड के पूर्व/पश्चिम सिंघभूम जिलों में बहुतायत में पाए जाते हैं । ये साधारणत झुण्ड में चलते हैं पर कभी कभार इनमे से कुछ अपने दल से निकल कर अकेले भी इधर-उधर चरने लग जाते हैं और कई बार तो खाद्य के खोज में लोकालय में भी आ जाते हैं । जोड़ा शहर पहाड़-जंगलों के बीच बसा हुआ है । अकसर ऐसा होता है, खास कर गर्मी या बारिश के दिनों में, कि हाथी खाने कि तलाश में पहाड़ से उतरकर शहर में आ जाते हैं और खेत से अनाज या किसी के बगीचे के पेड़ से फल इत्यादि खा जाते हैं ।  पहाड़ के आस पास बसे आदिवासियों के बस्ती पर आक्रमण कर उनका घर तोड़ देना, उनके अनाज खा लेना, ऐसी बातें अकसर होती रहती है । हाथी के आक्रमण से कई लोग अपने जान भी गवां बैठते हैं ।

आज का किस्सा ऐसे ही एक घटना से जुड़ा हुआ है ।

बात उन दिनों की है जब मेरी शादी हुई थी । शादी के बाद, नई दुल्हन और बारातियों सहित हम अपने शहर जोड़ा लौट आये ।  

आने के एक दो दिन बाद की बात है, बारिश का मौसम, शाम का समय था, हम सब साथ में बैठ बातें कर रहे थे कि बाहर से कुछ आवाजें आने लगी । हम बाहर जाकर देखें तो पता चला कि एक हाथी जंगल से निकल आया है और हमारे घर के आसपास ही कहीं छुपा हुआ है ।

मुह्हले के लोग अपने अपने घरों से बाहर आ गए थे और चिल्ला चिल्ला कर, या फिर कनस्तर वगैरह बजाकर हाथी को डराने की कोशिश में लगे हुए थे । कुछ लोग तो फटाके भी फोड़ रहे थे हाथी को भगाने के लिए ।

गर्मी के अंत तक पके हुए आम और कठहल की खुशबू दूर दूर तक फ़ैल जाती है । हमारे बगीचे मैं भी चार पांच आम के और दो तिन कठहल के पेड़ हैं जो पके हुए फलों से लदे हुए थे । उनका सुगंध उस हाथी को हमारे बगीचे तक ले आया था ।

चिल्लाते, भागते लोगों से परेशान होकर हाथी, शाम के अँधेरे का फायदा उठाते हुए इधर उधर छुपता जा रहा था । तभी किसीने दौड़ते हुए आकर खबर दी, कि हाथी भागते हुए, हमारे घर के पिछवाड़े जो बगीचा है, उस बगीचे में घुस गया है ।

हम उस तरफ दौड़े । उस बगीचे में जो कठहल और आम का पेड़ है, ज़रूर उसीके लिए हाथी घुस आया होगा । घर के पीछे एक दरवाज़ा है जो बगीचे में खुलता है । हम सब उसी दरवाज़े की तरफ बढे । हम मतलब, मैं, मेरा भाई, मेरी नव विवाहित पत्नी, मेरी माँ, और पिताजी । हम सब दरवाज़े के पास पहुँच गए और ये सोचने लगे कि अब दरवाज़े को खोलकर देखा जाये । पर डर भी लग रहा था । हाथी बगीचे में कहाँ खड़ा है ये पता नहीं था । खैर, डरते डरते आखिर मैंने ही पहल लिया दरवाज़ा खोलने का । जैसे ही मैंने दरवाज़ा खोला, तो देखा कि हाथी एकदम मेरे सामने खड़ा है । उस आधे अँधेरे में भी उस विशालकाय दंतैल हाथी को एकदम सामने खड़े देख मेरी रूह काँप गयी। उसका वो विशाल काला देह और उसपर दो बड़े बड़े दांत, एक पल को ऐसा लगा जैसे कोई दानव खड़ा हो सामने । बस वो एक पल था, और मैंने देर ना करते हुए झट से दरवाज़ा बंद कर दिया । सब पूछने लगे कि क्या हुआ । मैंने उन्हें बताया कि हाथी दरवाज़े के एकदम पास, बस सामने ही खड़ा है । मेरी पत्नी मुझसे बोली कि उसे भी हाथी देखना है । पर दरवाज़ा फिरसे खोलके देखना खतरे से खाली नहीं था । हाथी लोगों के डर से वहां छिपा हुआ था, अगर उसे समझ में आ जाता कि इस दरवाज़े के पीछे से कुछ लोग उसे देख रहे हैं, वो बौखला कर आक्रमण कर सकता था । उस दरवाज़े को तोडना उसके लिए कोई बड़ी बात नहीं थी । इसलिए फिरसे दरवाज़ा खोलना एक जोखिम भरा काम था ।

हम दरवाज़ा बंद ही रखें । और कपडे का गोला बनाकर, उसपर मिटटी का तेल छिडककर, आग लगा दी गयी और उसे दरवाज़े के ऊपर से उस पार फेंका गया, ताकि हाथी उस डर से वहां से हट जाये । खैर, हाथी कुछ कठहल तोड़ कर खाया, और फिर जंगल के लिए निकल लिया । लोगों की आवाजें काफी देर तक आती रही । हम सब उसके बाद भी काफी देर तक उसी बारे में बातें करते रहें । सुबह पता चला कि हाथी कई लोगों के बगीचे में घुसकर आम, कटहल, केला जो भी मिला खाया था और पेट भरने के बाद जंगल लौट गया था । हम खुदको खुशकिस्मत समझ रहे थे कि हाथी ने घर तोड़ने का गलत फैसला नहीं लिया था ।

इसके बाद भी ऐसा कई बार हुआ कि जंगल से निकलकर हाथी शहर में घुस आया । पर ऐसा केवल एकबार ही हुआ कि हाथी को इतने करीब से देखा था ।

हाथी की तस्वीर गूगल से साभार ली गई है

Jul 4, 2010

पगडण्डी




उसे बारिश में भीगना,
पसंद है बहुत !
मुझे नहीं
बस इसी बात पे,
हमारे बीच
कडकती है बिजलियाँ

पहाड़ की पगडण्डी पर,
तुम बढ़ गए थे आगे,
और थोड़ी देर के लिए,
सुस्ता कर,
मैंने चुपके से
सोख लिया था
सन्नाटा




सिलबट्टा, मिक्सी, फ़ूड-प्रोसेस्सर
चिट्ठी, ईमेल और चैटिंग
फैन, कूलर और एसी
साईकिल, बस और हवाई जहाज
माँ, पत्नी और बेटी !

चित्र साभार गूगल सर्च

आप को ये भी पसंद आएगा .....

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