ब्लॉग्गिंग की दुनिया में अपने अपने धर्मो को श्रेष्ठ बताने वाले बहुत मिलेंगे । कई ऐसे हैं जो हिंदुत्व की प्रशंसा करते रहते हैं, कुछ इस्लाम की तो कुछ ईसाई धर्म की । कई तो ऐसे भी हैं जो ये कहने से नहीं चुकते हैं कि हमारा धर्म दुसरे धर्मों से अच्छा है । कई लोग दुसरे धर्मों की बुराईयां भी ढूंढ निकालते हैं ।
मेरा यह मानना है कि हर धर्म/मज़हब में कुछ अच्छी बातें तो कुछ बुरी बातें होती है । हमें चाहिए कि हम अच्छी बातों को अपनाये और बुरी बातों को त्याग दें । इसी में मानव जाती की भलाई है । पर कोई भी अपने धर्म में कुछ गलत देख ही नहीं पाता है । या यूँ कहिये कि देखकर भी देखना नहीं चाहता है । मन में डर, कि यदि हम मानलें कि हमारे धर्म में कोई ऐसी बात है जो अच्छी नहीं है, तो हम दूसरों के सामने, अपनों के सामने भी, छोटे पड़ जायेंगे, हेय हो जायेंगे । पर दरअसल होगा उल्टा । यदि हर कोई अपने धर्म से खोटी बात को निकाल दे, तो ज़रा सोचिये, कि हर धर्म कितना सुधर जायेगा ।
कोई भी धर्म हो, इनके नियम, कायदे, कानून, हम जैसे कुछ लोग ही बनाये हैं । जिस समय वो नियम बनाये गए थे, उस समय के परिप्रेक्ष में वो शायद सही होंगे, पर हमें हर बात आज के परिप्रेक्ष में देखनी चाहिए ।
आदत से मजबूर होकर कोई नियम का पालन करने से क्या होगा, या फिर बस इसलिए कि वो कोई धर्मग्रन्थ में लिखा हुआ है ?
क्या हमारे पास दिमाग नहीं है ?
क्या हम जड़ बुद्धि हैं जो क्या सही है और क्या ग़लत इस बात का फैसला करने के लिए हमें किसी धर्मग्रन्थ या पुजारी/मौलवी की ज़रूरत पड़ती है ?
ये धर्म के ठेकेदार क्या ज्यादा दिमागवाले हैं ?
हो सकता है कि किसीको कुरान, bible या फिर गीता कि बातें न पता हो, तो उससे क्या ये सिद्ध हो जाता है, कि उसके पास दिमाग नहीं है, या फिर उसके पास जो भी ज्ञान है (जैसे कि वो एक डॉक्टर हो सकता है या फिर एक इंजिनियर या वैज्ञानिक) वो व्यर्थ है ?
धर्म आखिर है क्या ?
जो सही है उस बात का पालन करना या फिर जो किसी किताब में लिखी बात है उसका पालन करना ?
और यदि किताब में गलत बात लिखी हो तो भी हम उसे ही मानेंगे, ये जानते हुए भी कि यह गलत है !!!!
ये तो हमें खुद सोचना है कि इंसानियत बड़ी है या तथाकथित मज़हब ।
हम स्कूल जाते हैं, कॉलेज, फिर विश्व विद्यालय । स्नातक बनते हैं, स्नातकोत्तर उपाधि ग्रहण करते हैं, कई तो डॉक्टरेट भी करते हैं, और फिर जिंदगीभर अन्धविश्वास का गुलाम बनकर जीते हैं । फिर पढाई में इतने पैसे, इतना प्रयास, इतना वक्त व्यय करते हैं, वो किसलिए । उससे तो अच्छा है हम अनपढ़ ही रहें । कम से कम इतने सारे पैसे, वक्त और कोशिश तो बच जायेंगे ।
फिर हम अपना सारा वक्त देते हैं अपनी देश की सरकार की गलतियाँ निकालने में । ये है हमारा योगदान अपने समाज को । क्या बात है !
चित्र गूगल सर्च से साभार लिया गया है
मित्र, हमने बुरी बातों को निकालने के दरवाज़े पहले ही बंद कर रखे हैं।
ReplyDeleteपहली गलती तो यह कि हमने इन ग्रन्थो को सीधी ईश्वर वाणी कह दिया, भला अब अगर एक छोटी सी भी गलती मान लें तो ईश्वर गलत साबित होगा,और पुरा ग्रंथ ही विवादित हो जायेगा।
बस यही समस्या है कि जानते हुए भी, बुरी बातों को इंगित नहिं कर पाते। और कोई विधर्मी कहे तो वह गाली बन जाती है।
पोस्ट पढ़कर अच्छा लगा
ReplyDeleteAchha vishay chuna hai..Dharam ka shabd kosh ke anusaar matlab to qudratke niyam hai,jo har insaan ke liye ek jaise hote hain..na deshka bhed na jati ka na bhasha ka!
ReplyDeleteBahut achha vishay chuna hai..dharam us shabd ka shabd kosh me kaa arth to qudrat ke niyam se taalluq rakhta hai..jo har insaan ke liye ek jaise hote hain!
ReplyDeleteबेहद उम्दा लेख .........एक खुली सोच का परिचय दिया आपने ! आभार !
ReplyDeleteसही कहा..सिर्फ कोसने से कब तक काम चलेगा..बढ़िया आलेख.
ReplyDeleteसंतुलित विचार हैं आपके। धर्म एक निजी मामला है और जो सही में धार्मिक है वह दूसरे के धर्म की आलोचना, मजाक, बुराई कर ही नहीं सकता। वास्तव में हम सब धार्मिक नहीं है बल्कि धार्म्क दिखना चाहते हैं।
ReplyDeleteपुन: एक अच्छी रचना के लिये आभार स्वीकार करें।
धर्म आखिर है क्या ?
ReplyDeleteजो सही है उस बात का पालन करना या फिर जो किसी किताब में लिखी बात है उसका पालन करना ?
और यदि किताब में गलत बात लिखी हो तो भी हम उसे ही मानेंगे, ये जानते हुए भी कि यह गलत है !!!
हमारी नजर में तो जो सही है बस उसका ही पालन करना है ...
मैंने भी आज कुछ ऐसा ही लिखा है
विचार करने को प्रेरित करती अच्छी प्रस्तुति ..!
khoobsoorat rachna shail ji...
ReplyDeleteaapko follow kar raha hoon aaj se....
so aata rahunga!
@ सुज्ञ
ReplyDeleteआपने एकदम सही कहा है ...
@ अनामिका जी और शिवम जी
आप दोनों को बहुत बहुत धन्यवाद
@ वाणी जी
आपने एकदम सही बात चुनी है
@ सुरेन्द्र जी
ReplyDeleteआपसा मित्र पाकर मैं खुश हूँ
@क्षमाजी
धर्म का शब्दकोष में जो भी मतलब हो पर आज के परिप्रेक्ष में धर्म बस असहनीयता, उग्रवाद और गन्दी राजनीति का पर्याय बन चूका है
@ मो सम कौन
वासी तो धार्मिक मान्यताएं, निजी मामला है ... पर समाज इसे निजी रहने कहाँ देता है ...
@ उड़न तश्तरी
आपने सही कहा, कोसने की वजाय खुद को बदलना है
बेहद सार्थक और प्रेरक लेख्………………सही प्रश्न है कि धर्म है क्या?
ReplyDeleteजो भी आपकी आत्मा कहे कि सही है या आपका दिमाग कहे कि सही है वो ही धर्म है ना कि रटा हुआ या किताबों मे लिखा हुआ……………आपने सही कहा हर धर्म मे उस काल के हिसाब से हो सकता है वो बात सही हो मगर हमे हर बात को आज के परिप्रेक्ष्य मे देखना चाहिये तभी हम सार्थक कदम उठा सकेंगे और अपनी बात समझा सकेंगे।जिस दिन इंसान अपनी सोच बदल लेगा और सही को सही और गलत को गलत कहने की हिम्मत कर सकेगा उसी दिन समझिये उसने अपने धर्म का पालन सही ढंग से किया।
jaise hum rishte nibhate hain, waise hi bhagwaab, dharm hai.... mann changa to .. hai na?
ReplyDeleteअच्छी पोस्ट....
ReplyDeletehmm..ek suljhi hui abhivykti !
ReplyDeleteधर्म के मामले में यही तो परेशानी है कि हम गलत को ठीक ही नहीं करना चाहते कुछ सुधारना ही नहीं चाहते | गलत को गलत कहने और गलत को सुधारने कि हिम्मत ही कहा है यदि होती तो पूरी दुनिया में एक या दो ही धर्म होते | धर्म में कोई बुराई आती तो हम उसे सुधार देते फिर किसी नये धर्म कि जरुरत ही किसे पड़ती जब पहले से ही एक अच्छा धर्म हमारे पास है | अच्छे विचार अच्छी प्रस्तुति |
ReplyDeleteविचारोत्तेजक आलेख है......मगर एक बात सत्य है कि सारे धर्म "मानव सेवा" से बड़ा कुछ नहीं मानते.....बेहतर तो इसी सूत्र को मानना है
ReplyDelete@ singhsdm
ReplyDeleteसारे धर्म में मानव सेवा कि जो बात आपने की है वो तो अब बस सैद्धान्तिक बन कर रह गई है ...
देखना तो ये है कि हकीकत क्या है ... आज धर्म/मज़हब का जो रूप है ... वो एक घिनौना रूप है ... इसलिए ज़रूरी ये है कि धर्म के मूल सिधान्त्तों कि तरफ रुख किया जाये ... धर्म से बाहर निकलकर ...
हर एक इबादत गाह में एक वोही तो बस्ता है बस ही हम ही जो फर्क किए जाते है !!!!!
ReplyDeleteNICE WRIGHT
ReplyDeletesahi kaha indraneel ji .. kai bar padhe likhe aur anpadh log is mudde par aa kar ek jaise hi lagte hain.. apne vivek se hi faisla karna chahiye..apna vivek agar sahi hai to usse bada dharm nahi hai ...
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