यादों की तह मे दबे दर्द के फूल कब मुरझाते हैं जब ज़रा सा पलट कर देखो गुबार सा छा जाता है और हर तरफ़ सिर्फ़ यादों का मंज़र ही नज़र आता है………………आपने बहुत ही सुन्दर रचना लिखी है…………………दिल मे उतर गयी।
इन्द्रनील जी यादों की किताब को इस तरह याद करना बहुत भाया। प्रस्तुतिकरण बहुत भाया। मेरे हिसाब से इसमें दो संशोधन आवश्यक हैं। कृपया देखें-यादों के तहों की जगह यादों की तहों होना चाहिए। इसी तरह कुछ अश्कों के बूंद मैंने गिराए उन पर के स्थान पर कुछ अश्कों की बूंदें मैंने गिराईं उन पर होना चाहिए। विचार करें।
Rachana bahut sundar hai. Kewal ek iltija hai..."Maajee" ko "maazee" karen tatha,"khusboo"ko "khushboo"karen...wartani me sudhar laake yah rachana aur adhik sundar hogi.
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ReplyDeleteक्षमा जी, बहुत बहुत शुक्रिया इन गलतियों पर ध्यान आकर्षित करने के लिए .... टाईप करने में गलती हो गई थी...अब सुधार दिया है ... शायद अब ठीक है ...
ReplyDeleteलगभग हम सभी के पास ऐसी एक ना एक किताब तो जरूर होगी ही !
ReplyDeleteबहुत बढ़िया रचना !
इस बेहतरीन और भावपूर्ण रचना के लिए बहुत बहुत बधाई...
ReplyDeleteनीरज
यादों की तह मे दबे दर्द के फूल कब मुरझाते हैं जब ज़रा सा पलट कर देखो गुबार सा छा जाता है और हर तरफ़ सिर्फ़ यादों का मंज़र ही नज़र आता है………………आपने बहुत ही सुन्दर रचना लिखी है…………………दिल मे उतर गयी।
ReplyDeleteनीरज जी, शिवम जी और वंदना जी, आप सबको बहुत धन्यवाद जो इस रचना को आप सबने सराहा ....
ReplyDeleteher kisi ki kitaab me yah phool mil hi jata hai
ReplyDeleteबहुत खूब ... मांझी की कुछ यादें हिस्सा बन जाती हैं जीवन का .... उम्दा रचना है ...
ReplyDeletejehan ke hisaar me qaid ye fool nikalte kahan hain
ReplyDeletekuchh gulaab baagon ke ishq me fikrana hue jaate hain.
bahut khubsurat lagi in foolon ki khushboo
रश्मि जी, नासवा जी और अविनाश जी, आप सबको शुक्रिया हौसला अफजाही के लिए ...
ReplyDelete@ अविनाश
दरअसल यहाँ तो बात ही कुछ और हैं ... यहाँ गुलाब बाग के इश्क में नहीं, बल्कि बाग ही उस गुलाब के इश्क से कायल है ...
which one is better, you post or your comment @ avinash ji? very difficult to decide.
ReplyDeletehehehe, ye bhi sahi..
ReplyDeletenahi, ye hi sahi :)
रचना भी सुन्दर है और उसकी प्रस्तुति भी.....बहुत पसंद आई...
ReplyDeleteइन्द्रनील जी यादों की किताब को इस तरह याद करना बहुत भाया। प्रस्तुतिकरण बहुत भाया। मेरे हिसाब से इसमें दो संशोधन आवश्यक हैं। कृपया देखें-यादों के तहों की जगह यादों की तहों होना चाहिए। इसी तरह कुछ अश्कों के बूंद मैंने गिराए उन पर के स्थान पर कुछ अश्कों की बूंदें मैंने गिराईं उन पर होना चाहिए। विचार करें।
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ReplyDeleteराजेश जी, बहुत धन्यवाद, आवश्यक संशोधन कर दिए गए हैं !
ReplyDeleteकमाल का लिख डाला है आपने.
ReplyDeleteआपको बधाई.
kamaal ki rachna...
ReplyDeletebadhai......
सूखे फूलों में लिपटा दर्द जब क़ितबों का हिस्सा हो जाए तो वह सदा बहार हो जाता है।
ReplyDeleteBahut kuchh yaad aaya.....
ReplyDeleteKitni hee koshish kariye yaado ko mitane kee, wo nahin jaati!
बहुत खूब .....!!
ReplyDeleteप्रस्तुति ने मन मोह लिया ....किताबों में रखे ये फूल अक्सर यादों के निशाँ छोड़ जाते हैं .....!!
कुछ स्त्रीलिंग पुल्लिंग की गलतियां हैं सुधार लें ....!!
हरकीरत जी, कृपया वो स्त्रीलिंग-पुल्लिंग की गलतियां कौन सी हैं ये भी बता दें ...
ReplyDeleteAfter reading this poem, i opened my diary and lovingly touched the petals kept there..
ReplyDeletebeautiful creation !
bahut achha likha...bahut hi badhiya
ReplyDeleteyadon ki kitab paltana bhi himmat ka kam hai.
ReplyDeleteबहुत खूब.... यादें यूँ ही दिल के जीवित होने का एहसास कराती रहतीं हैं.
ReplyDeleteजज़्बातों को बखूबी लफ्जों मे उकेरा है आपने
ReplyDeleteबहुत सुन्दर रचना.......
इस बेहतरीन और भावपूर्ण रचना के लिए बहुत बहुत बधाई।
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