बहुत दिनों बाद फिर से एक ग़ज़ल लिखने की कोशिश की है मैंने, उम्मीद है आप सबको पसंद आयेगी ....
रुक रुक कर यूँ चलना क्या ।
अंधेरों में पलना क्या ॥
कर दो जो भी करना है ।
फिर हाथों को मलना क्या ॥
परवाने सा जल जाओ ।
टिम टिम कर यूँ जलना क्या ॥
फैला दो अब लालिमा ।
बादल पीछे ढलना क्या ॥
फल से लदकर झुक जाओ ।
इतने ऊपर फलना क्या ॥
अब तो दिल को समझाओ ।
खुद ही खुदको छलना क्या ॥
जाने क्या कहता है ‘सैल’ ।
उसकी बातें खलना क्या ॥
चित्र साभार गूगल सर्च
बहुत खूबसूरत.....सुन्दर प्रयास है...
ReplyDeleteशुक्रिया संगीता जी ...
ReplyDeleteआपने बड़े ख़ूबसूरत ख़यालों से सजा कर एक निहायत उम्दा ग़ज़ल लिखी है।
ReplyDeleteफल से लदकर झुक जाओ ।
ReplyDeleteइतने ऊपर फलना क्या ॥
अब तो दिल को समझाओ ।
खुद ही खुदको छलना क्या ॥
Wah...behad achha likha hai...!
Paryas to safal rahaa....
ReplyDeleteफल से लदकर झुक जाओ ।
ReplyDeleteइतने ऊपर फलना क्या ॥
बेहतरीन
bahut hee khoobsoorat gazal likhi hai mere malik...aise hee likhte rahiye!
ReplyDeleteअच्छी ग़ज़ल, जो दिल के साथ-साथ दिमाग़ में भी जगह बनाती है।
ReplyDeletebhut khub aachchi shikshaa prd baat he . akhtar khan akela kota rajsthan
ReplyDeleteachchhee lagi gazal
ReplyDeleteअरे सैल साहब, इतनी बढ़िया बातें कहते हैं आप,खलेंगी क्यों।
ReplyDeleteबहुत अच्छी गज़ल।
आभार।
फल से लदकर झुक जाओ ।
ReplyDeleteइतने ऊपर फलना क्या ॥
waah
बहुत खूबसूरत.....
ReplyDeleteसुन्दर भावो को बखूबी पिरोया है आप ने अच्छे शब्दों में!
ReplyDeleteवाह!सुन्दर है!
इंद्रनील दा, अच्छा प्रयास है... अच्छे भाव समेटे है आपकी ग़ज़ल..
ReplyDeleteबहुत अच्छी ग़ज़ल लिखी है....
ReplyDeleteअब तो दिल को समझाओ ।
खुद ही खुदको छलना क्या ॥
बहुत सुंदर पंक्तियाँ हैं.....
सैल.... मैंने कुछ भी डिसेबल नहीं किया है.... शायद कुछ और प्रॉब्लेम हो....
@ महफूज़
ReplyDeleteआपकी टिपण्णी के लिए आभार ! गलती मेरी ही है ... मुझे पता नहीं था कि आपके दो प्रोफाइल है ... मैं आपके दुसरे प्रोफाइल में देखा था ...
अच्छा है भाई.
ReplyDeleteकर दो जो भी करना है ।
ReplyDeleteफिर हाथों को मलना क्या ॥
ye sher....khub hai
फल से लदकर झुक जाओ ।
इतने ऊपर फलना क्या ॥
waaah....jhukna par phal milega ye to humesha sach nahi hota..par ye hai ki jispe phal lad jate hain ..ya to wo jhuk jata hai .,...ya uspar patthar mare jate hain
badhiya ghazal hui hai ..
खूबसूरत प्रस्तुति ।
ReplyDeleteपरवाना सा जल जाओ ।
ReplyDeleteटिम टिम कर यूँ जलना क्या ॥
फैला दो अब लालिमा ।
बादल पीछे ढलना क्या ॥
बहुत उमदा गजल!
फल से लड़ कर झुक जाओ
ReplyDeleteइतने उपर फलना क्या ...
सुन्दर ..!
आप सबको अनेक अनेक धन्यवाद !
ReplyDelete@ स्वप्निल
दरअसल कबीर का एक दोहा है ...
'बड़ा हुआ तो क्या हुआ जैसा पेड़ खजूर ...' , मेरा यह शेर उसी के तर्ज पर लिखा गया है ...
अब तो दिल को समझाओ ।
ReplyDeleteखुद ही खुदको छलना क्या ॥
or
जाने क्या कहता है ‘सैल’ ।
उसकी बातें खलना क्या ॥
..betreen prasuti
haardik shubhkamnayne
फल से लदकर झुक जाओ ।
ReplyDeleteइतने ऊपर फलना क्या ..
उम्दा ग़ज़ल ... नये शेरों के साथ सजी कमाल की ग़ज़ल है ... नये अर्थ तलाश रहे हैं कुछ शेर ...
प्रिय भाई गज़ल है कि नहीं कह नहीं सकते । पर रचना के भाव अच्छे हैं। परवाना सा जलना के स्थान पर परवाने सा करें तो बेहतर होगा।
ReplyDeletegazal kya hoti hai, main bilkul nahi jaanta
ReplyDeletelekin is par..
फल से लदकर झुक जाओ ।
इतने ऊपर फलना क्या ॥
subhanallah kahne ko jee chahta hai... bahut bahut khoob
@ उत्साही जी
ReplyDeleteमुस्तफ्फैलुन् फैलुन् फा - इस बहर पे लिखने कि कोशिश की है ... मैं कोई बहुत बड़ा शायर नहीं हूँ ... गलतियाँ होगी ... अभी सीखने कि कोशिश कर रहा हूँ ... ग़ज़ल है या नहीं ये तो पाठक या इस विधा के जो समझदार हैं वो ही बताएँगे ...
परवाना को परवाने कर दिया गया है ... इस सुझाव के लिए आतंरिक धन्यवाद ...
shail ji, bahut hi khoob surat gazal kuchch -kuchch sandesha deti hui. behatreen prastutikaran.
ReplyDeletepoonam
बहुत अच्छी प्रस्तुति।
ReplyDeleteअब तो दिल को समझाओ ।
ReplyDeleteखुद ही खुदको छलना क्या
bade pate ki baat keh di sir!!
blog pe hoslaafjayi ke liye shukriya!
इन्द्रनील जी
ReplyDeleteग़ज़ल तो आप अच्छी लिखते ही हैं.....
नए मिजाज़ की ग़ज़ल है.....!
ये दो शेर खास पसंद आये....
रुक रुक कर यूँ चलना क्या ।
अंधेरों में पलना क्या ॥
परवाने सा जल जाओ ।
टिम टिम कर यूँ जलना क्या ॥
मक्ता भी अच्छा बन पड़ा है........!
जाने क्या कहता है ‘सैल’ ।
उसकी बातें खलना क्या ॥
फल से लदकर झुक जाओ ।
ReplyDeleteइतने ऊपर फलना क्या ॥
waah , bahut khoob !!!
wah. very good.
ReplyDeleteकर दो जो भी करना है ।
ReplyDeleteफिर हाथों को मलना क्या ॥
.. बहुत खूब....सोच विचार के साथ जीवन में निश्चिंतता का समावेश भी आवश्यक है.