Indranil Bhattacharjee "सैल"

दुनियादारी से ज्यादा राबता कभी न था !
जज्बात के सहारे ये ज़िन्दगी कर ली तमाम !!

अपनी टिप्पणियां और सुझाव देना न भूलिएगा, एक रचनाकार के लिए ये बहुमूल्य हैं ...

Oct 16, 2011

बिल्ली मौसी

एक बार ये हाथ में आ जाएँ, फिर तो मज़ा आ जायेगा | क्या ज़बरदस्त भोजन का इंतजाम हो जायेगा |

पर ये हाथ में आयेंगे कैसे, ये तो काफी ऊपर चढ़ बैठे हैं ...


शायद यही सोच रही है बिल्ली मौसी .... ये आज सुबह मेरे घर के बाहर का दृश्य है !


इस  चित्र को देखकर आपके मन में क्या ख्याल आ रहा है ... ज़रूर बताईएगा !

Oct 4, 2011

तीन क्षणिकाएं - नष्ट चाँद !


१)

शांत मन के झील में जो 
अक्सर उतर आता था
उज्जवल और स्पष्ट कभी,
आज इस अस्थिर चित्त 
में नहीं दिख पाता है 
अस्पष्ट चाँद !

२)

बड़ी कुटिल है
मुस्कान उसकी !
चुभती बड़ी है दिल में !
खुद झुककर मैंने 
हिला दिया पानी के 
शांत सतह को,
जाओ नहीं देखना है मुझे 
नष्ट चाँद !

३)

क्यूँ ढके रहते हो 
एक पक्ष अँधेरे में ?
कहाँ जाते हो 
अमाबस के दिन ?
इतना क्यूँ देते हो मुझे 
कष्ट चाँद ?

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