Indranil Bhattacharjee "सैल"

दुनियादारी से ज्यादा राबता कभी न था !
जज्बात के सहारे ये ज़िन्दगी कर ली तमाम !!

अपनी टिप्पणियां और सुझाव देना न भूलिएगा, एक रचनाकार के लिए ये बहुमूल्य हैं ...

Jul 1, 2021

चल मैं हारा, तू जीता

वक़्त कहाँ है, बैठ के सोचूं
क्या खोया क्या पाया है,
ढल रहा है दिन का सूरज
मुझसे लम्बा साया है।  
बस यही हासिल है मेरा
तनहा लम्हा, टूटे ख्व्वाब,
कुछ बेरंग सी तसवीरें,
जीवन के उतार चढ़ाव।  
सुबह की किरणें नहीं है
शाम का अँधेरा है।  
हँसते चेहरे, हाथ में खंजर  
दोस्तों का घेरा है।
अपनों के दिए हुए कुछ
घाव है मेरे खाते में,
सावन के दिन बता गया है
छेद है कितने छाते में।
अक्सर मैंने दिल से बोला
चल मैं हारा, तू जीता।
हँसते हुए कुछ लम्हे बीते
रोता हुआ जीवन बीता।  
मेरी खामोशी को मिला
चुभते रिश्ते, बिगड़े बोल।
टूटे अरमानो ने खोले
मेरी कोशिशो के पोल।
चाहत की गुड़िया थी मेरी
ज़िद्द की आंधी तोड़ गई,
जमा किये थे छुट्टे सारे
तेज़ हवाएं फोड़ गई।
फिर भी "सैल" आज मुझे
शिकवा न कोई गिला है।
हर शै को अलग मंज़िल
अलग रास्ता मिला है।। 

Feb 21, 2017

खोटा पैसा

ऐसा क्यों होता है कि आप रात को सोने की कोशिश करो  नींद न आये   ... बस न जाने कहाँ से कुछ शब्द भीड़ कर आये मन में  ....
ऐसा क्यों होता है ?

युग बीते
ये गुस्सा कैसा
दिन का उजाला
रात हो जैसा
प्यार के बढ़ते
ये दिखावे
क्या होगा
ये खोटा पैसा
कोई फर्क ना
हममें तुममें
हम हैं जैसे
तुम हो वैसा
सैल तेरे इस
ज़िद पे सबने
दिन देखा है
कैसा कैसा।

Feb 12, 2017

अनमनी सी खुशबू

बहुत दिनों से कुछ भी लिखा नहीं था। कल नींद नहीं आ रही थी तो जेहन में कुछ पंक्तियाँ यूँ ही उभर आईं । रात को उठकर कुछ लिखने की हिम्मत नहीं थी। सो सुबह उठकर सबसे पहले उन्हें लिख डाला कि कहीं भूल न जाऊं।

यादों के लिफाफे से झांकते 
कुछ सूखे बेरंग लम्हे,
टूटकर बिखरती पंखुड़ियां;
पीले पड़ चुके कागज़ को
बहुत संभलकर खोलना,
और उन परतों में लिपटी
कुछ पलों को आँख भरकर
एक एक करके चुनना;
फिर सहेजके रख देना,
कि ऐसे ही फिर से किसी दिन,
यूँ ही किसी
अनमनी सी खुशबू
के बुलावे पर
खो जायेंगे।

Aug 1, 2014

रोटी कपड़ा और मकान


1
अपने हिस्से की रोटी
बच्चे को खिलाकर,
तकती रही माँ
अधजली चाँद की तरफ;
मिट गई भूख ।

2
कितनी खुश थी वो,
पाकर नए कपड़े ।
कितने खुश थे हम,
उसे देकर अपने
कपड़े पुराने ।

3
जब तक बनती रही
ऊँची इमारत,
उसके छाँव तले
सलामत रहे
मजदूरो के झोपडे ।

Mar 7, 2013

उजाले

1.
सिरहाने चांदनी रखकर
सो गया था मैं,
रातभर ...
सोने नहीं दिया
ख्वाबों के उजाले ।

2.
बहुत उदास होकर
आँखें बंद कर ली मैंने,
जैसे थक गई हो आँख
उजालों के शोर से ।

3.
तुम जो कल
ख्वाबों में आ गई थी,
मेरी अँधेरी रात के बदन पर
लग गए थे
कुछ उजालों के दाग ।

Oct 16, 2012

कैमरे के शूटिंग मोड्स




Basic shooting modes (बेसिक शूटिंग मोडस)

Auto Mode (ऑटो मोड): यह मोड नौसिखिओं के लिए होता है | इसमें हर बात कैमरा ही तय करता है | आपको कुछ भी नहीं करना है, बस कैमरा ओन कीजिये और बटन दबाइए |

Program Mode (प्रोग्राम मोड): कैमरा में इस मोड को “P” से जाना जाता है | यह लगभग ऑटो मोड की तरह ही होता है बस फर्क यह है कि इसमें आप ISO, फ्लश और White balance तय कर सकते हैं | अपरचर और शटर स्पीड कैमरा खुद तय करता है |
Macro mode (मैक्रो मोड): इस मोड में आप छोटी वस्तुओं का चित्र ले सकते हैं अथवा किसी चीज़ का पास से चित्र लेना हो तो इस मोड का इस्तमाल कर सकते हैं | यह एक तरह का “P” मोड ही है पर इससे पास कि वस्तुओं का चित्र बेहतर आता है | मसलन मान लीजिए कि आप किसी फूल या कीड़े की तस्वीर लेना चाहते हैं, तो आप इस मोड का इस्तमाल कीजिये | मैक्रो फोटोग्राफी के लिए मैक्रो लेन्स की ज़रूरत भी होती है | इस मोड में कैमरा खुद ही अपरचर बढ़ा कर DoF कम कर देता है ताकि छोटी वस्तुओं का चित्र साफ आये और बैकग्राउंड धुंधला जाय |
Sports mode (स्पोर्ट्स मोड): यह मोड साधारणतः खेल कूद के चित्र लेने के लिए इस्तमाल होता है क्यूंकि इससे आप तेज रफ़्तार वस्तु या लोगों की तस्वीर ले सकते हैं | इस मोड में कैमरा खुद ही ISO settings और शटर स्पीड बढ़ा देती है ताकि तेज रफ़्तार वस्तुओं की तस्वीर ली जा सके और धुंधलापन न हो |
Portrait mode (पोर्ट्रेट मोड): इस मोड में भी कैमरा खुद ही अपरचर बढ़ा कर DoF कम कर देता है ताकि आप लोगों के चेहरे का चित्र ले सकें और बैकग्राउंड धुंधला आये |
Landscape mode (लैंडस्केप मोड): इस मोड में कैमरा खुद ही अपरचर घटा कर DoF बढ़ा देता है ताकि आप प्राकृतिक दृश्य इत्यादि के चित्र ले सकें और बैकग्राउंड साफ़ आये |
Creative modes (क्रिएटिव मोड्स)

Shutter Priority Mode (शटर प्रायोरिटी मोड): Nikon के कैमरों में इसे “S” से और  Canon के कैमरों मे “Tv” चिन्ह से जाना जाता है | इसमें आप शटर स्पीड खुद तय करते हैं और कैमरा तय करता है कि अपरचर क्या होगा | P mode जैसे ही ISO, Flash और White Balance आप तय करते हैं | तेज रफ़्तार वस्तुओं का चित्र लेना हो तो इस मोड का इस्तमाल करना चाहिए |
Aperture Priority (अपरचर प्रायोरिटी मोड): Nikon के कैमरों में इसे “A” से और  Canon के कैमरों मे “Av” चिन्ह से जाना जाता है | इससे आप तस्वीर की Brightness तय करते हैं क्यूंकि अपरचर कम ज्यादा करने से अंदर आती रौशनी कम या ज्यादा होती है | पर एक महत्वपूर्ण बात यह है कि इससे DoF भी तय होता है | बड़ा अपरचर से कम DoF और छोटा अपरचर से ज्यादा DoF मिलता है | यानि कि यदि आपको बैकग्राउंड को धुंधला करना है तो आप कम DoF चाहेंगे | ऐसे में आपको बड़ा अपरचर चुनना है | दूसरी तरफ यदि आपको बैकग्राइंड को साफ़ रखना है तो आप ज्यादा DoF चाहेंगे | ऐसे में आपको छोटा अपरचर चुनना है | इसमें ISO, Flash और White Balance आप खुद तय कर सकते हैं |
Manual Mode (मनुअल मोड):  यदि आप सच में फोटोग्राफी सीखना चाहते हैं तो इस मोड पे तस्वीर लेना सीखिए | इसमें आप अपरचर और शटर दोनों को खुद कंट्रोल कर सकते हैं | इसके अलावा ISO, Flash और White Balance तो आप खुद तय कर ही रहे हैं |
इनके अलावा भी आधुनिक कैमरों में कुछ और मोड आ गए हैं जो पुराने कैमरों मे नहीं थे | चलिए अब हम इन पर अपनी दृष्टि डालें |
Panorama mode (पैनोरामा मोड): इस मोड में आप लगातार कुछ परस्परव्याप्त चित्र ले सकते हैं और कैमरा खुद उन चित्रों को जोड़कर एक बड़ा चित्र बना देगा जो ज्यादा इलाका कवर करता है |
HDR Backlight Control mode (एच डी आर बैकलाईट कंट्रोल मोड): इस मोड में कैमरा खुद ही तीन चित्र अलग अलग एक्स्पोज़र मे लेकर उन्हें आपस में मिलाके एक ऐसा चित्र बनाता है जिससे तस्वीर में छांव और चमकीले क्षेत्र दोनों साफ़ नज़र आये |
Night mode (नाईट मोड): इस मोड मे कैमरा खुद फ्लश ऑन रखता है | इससे रात के समय चित्र साफ़ आते हैं और बैकग्राउंड साफ़ दिखता है |
Handheld Night scene mode (हैण्डहेल्ड नाईट सीन मोड): इसमें रात के समय कैमरा खुद ३-४ फोटो लगातार ले लेता है और उन्हें आपस मे मिलाकर एक ऐसा फोटो प्रस्तुत करता है जिसमें noise (नाइज) कम हो |

Oct 11, 2012

तरह तरह के डिजिटल कैमरे



डिजिटल कैमरा यानि कि डिजिकैम, साउंड, वीडियो और स्टिल फोटोग्राफ लेकर उन्हें एक इलेक्ट्रॉनिक इमेज सेंसर के माध्यम से रिकॉर्ड कर लेता है |

डिजिटल कैमरे के कई फायदे हैं | जैसे कि तस्वीर लेने के तुरंत बाद आप कैमरे के स्क्रीन पर आप उस तस्वीर को देख सकते हैं | पहले फिल्म कैमरा के युग मे हर तस्वीर बहुत सोच समझ कर लेना पड़ता था क्यूंकि तस्वीर खराब आई तो फिल्म का एक एक्स्पोज़र बर्बाद हो जाता था और फिल्म महंगे आते थे | आज आप डिजिटल कैमरे से जितने चाहे तस्वीर ले सकते हैं और उन्हें कैमरे के मेमोरी कार्ड मे सेव कर सकते हैं | बाद में आपकी इच्छानुसार आप कुछ तस्वीर रख कर बाकी के डिलीट कर सकते हैं | एक फायदा यह भी है कि अब स्टिल और वीडियो दोनों एक ही कैमरे से रिकार्ड कर सकते हैं | एक ही मेमोरी कार्ड को आप बार बार इस्तमाल कर साकेत हैं | चित्रों मे इच्छानुसार काट-छांट कर साकेत हैं, उनको सोफ्टवेयर की मदद से बेहतर बना साकेत हैं | रासायनिक का प्रयोग न होने के कारण, अब आपको अपने द्वारा लिए हुए तस्वीर देखने के लिए किसी स्टूडियो मे जाने की ज़रूरत नहीं होती है | घर बैठे अपने कंप्यूटर पर अपनी तसवीरें आराम से देख सकते हैं |
वैसे तो कैमरे के कई प्रकार होते हैं | खगोल विद्या मे प्रयुक्त उच्च क्षमता संपन्न कैमरे से लेकर जासूसी मे प्रयुक्त छोटे छोटे कैमरे तक हैं | पर आज यहाँ पर मैं केवल उन कैमरों के बारे मे बात करूँगा जो आम तौर पर हम इस्तमाल करते हैं |
तो दोस्तों, इन आम तौर पर इस्तमाल होने वाले डिजिटल कैमरों के प्रकार हैं:
१.      कॉम्पैक्ट डिजिटल कैमरा
२.      ब्रिज कैमरा
३.      डिजिटल सिंगल लेंस रिफ्लेक्स कैमरा
४.      डिजिटल सिंगल लेंस ट्रांस्लुसेंट कैमरा
५.      मिररलेस इंटरचेंजिअबल लेन्स कैमरा
कॉम्पैक्ट डिजिटल कैमरा
सबसे ज्यादा इस्तमाल होने वाले कॉम्पैक्ट कैमरों को पॉइंट-ऐंड-शूट कैमरा भी कहा जाता है | ये आकार मे छोटे से होते हैं और आराम से पाकिट मे रखकर कहीं भी लिया जा सकता है | मोबाईल फोन में जो कैमरा होता है वो भी इसी प्रकार का होता है | कुछ कॉम्पैक्ट कैमरे बहुत ही छोटे और हलके होते हैं | इन्हें "अल्ट्रा-कॉम्पैक्ट" कहा जाता है | कॉम्पैक्ट कैमरे ज्यादातर साधारण तस्वीर खींचने के लिए इस्तमाल होते हैं | घर के सदस्यों के, पार्टीज़ के, कहीं घूमने गए, या फिर बगीचे मे बच्चे खेल रहे हैं उनके | ज्यादातर कॉम्पैक्ट में तस्वीर केवल JPG फॉर्मेट में ही सेव होते हैं | ज्यादातर कॉम्पैक्ट कैमरों में इन-कैमरा फ्लैश होते हैं जो बहुत ज्यादा शक्तिशाली नहीं होते हैं | उनकी वीडियो क्षमता सिमित होती है | उनसे Macro तसवीरें भी ली जा सकती है | कुछ कॉम्पैक्ट कैमरों में ज़ूम भी होता है पर वो 3X से लेकर 8X तक ही सिमित होता है | आपको जानकर ताज्जुब होगी कि कुछ नवीनतम मॉडल के कैमरों में तो चेहरा पहचानने (Face detection technology) मुस्कुराहट पहचानने (Smile Detection technology) की भी तकनीक है ।
इनके सेंसर का साइज़ छोटा होता है (6.17 mm X 4.55 mm – 1.2.5”) | पर कुछ कॉम्पैक्ट कैमरों में 7.44 mm X 5.58 mm – 1/1.7” साइज़ के सेंसर भी रहते हैं | इन्हें प्रीमिअम कॉम्पैक्ट कहा जाता है और ये आम कॉम्पैक्ट कैमरों से महंगे आते हैं | आजकल तो इससे भी बड़े सेंसर साइज़ वाले कॉम्पैक्ट कैमरे बन रहे हैं | ज़ाहिर है कि इनका दाम भी सेंसर के साइज़ के हिसाब से बढ़ते जाते हैं | यहाँ तक कि DSLR जितने बड़े सेंसर वाले कॉम्पैक्ट कैमरे भी बाज़ार मे उपलब्ध हैं |

ब्रिज कैमरा
कॉम्पैक्ट से आकार में बड़े कुछ ऐसे कैमरे बाज़ार में बिकते हैं जिन्हें “ब्रिज” या SLR-Like” कैमरे कहे जाते हैं | इनका सेंसर का साइज़ तो कॉम्पैक्ट कैमरे जितने ही होते हैं पर इनमे बहुत सारी ऐसी सुबिधायें होती हैं तो आम कॉम्पैक्ट कैमरों में नहीं होती है | इनकी बनावट तो DSLR जैसे होती है, कार्यक्षमता भी थोडा बहुत DSLR कैमरों जैसा होता है | गलत मत समझिए, DSLR जैसे दिखने वाले ये कैमरे DSLR जितना शक्तिशाली और अच्छे से काम नहीं करते | कॉम्पैक्ट के मुकाबले इनमें कुछ उन्नत सुविधाएं उपलब्ध होती हैं | कॉम्पैक्ट जैसे ही इनमे छोटा सेंसर प्रयोग होता है, live-view सुविधा होती है और autofocus की सुविधा होती है | इसके अलावा ब्रिज कैमरों में Manual Focus की सुविधा, Manual mode, Shutter Prioirity mode और Aperture priority mode भी होते हैं जो कॉम्पैक्ट  कैमरों मे नहीं होते हैं | खास कर इनमे अधिक ज़ूम शक्ति होती है जो प्रायः 10X से 15X तक होती है | आजकल 20X से 50X तक के ज़ूम वाले ब्रिज कैमरे बन रहे हैं जिन्हें सुपरज़ूम या अल्ट्राज़ूम भी कहा जाता है | ज्यादा ज़ूम होने के कारण इनसे ली गई तस्वीर धुंधला आने की सम्भावना होती है| तस्वीर लेते समय हाथ हिलने के कारण तस्वीर में Blur (धुंधलापन) आ सकता है जो जायदा ज़ूम के कारण बहुत ज्यादा हो सकता है | इस समस्या को हल करने के लिए इनमें Image Stabilisation (चित्र स्थिरीकरण) प्रणाली का इस्तमाल होता है | ऐसे कैमरों में स्क्रीन के अलावा एक इलेक्ट्रोनिक व्यूफाइंडर भी होता है जिससे आप बटन दबाने से पूर्व दृश्य का अवलोकन कर सकते हैं | ऐसे कैमरों में In-camera फ्लैश उपलब्ध होता है जो DSLR जैसे Pop-out होते हैं और इनमे तस्वीर RAW और JPG दोनों फॉर्मेट में सेव होते हैं |

डिजिटल सिंगल लेंस रिफ्लेक्स कैमरा
डिजिटल सिंगल-लेंस रिफ्लेक्स कैमरा यानि कि DSLR एक ऐसा कैमरा है जिसमे इलेक्ट्रोनिक व्यूफाइंडर के वजय ऑप्टिकल व्यूफाइंडर होता है | यह प्रणाली प्रकाश को सीधे लेन्स से एक पेंटामिरर या पेंटाप्रिज्म द्वारा व्यूफाइंडर तक पहुंचाता है | फिल्म ज़माने के SLR कैमरा प्रणाली पर आधारित यह कैमरा, फिल्म के वजाय इलेक्ट्रोनिक सेंसर इस्तमाल करती है | सेंसर के सामने एक छोटा सा आइना होता है जो प्रकाश को पेंटामिरर या पेंटाप्रिज्म तक रिफ्लेक्ट कर देता है | जैसे ही हम शटर बटन दबाते हैं, यह आइना प्रकाश मार्ग से हट जाता है और रौशनी सेंसर तक पहुँच जाती है | कॉम्पैक्ट या ब्रिज कैमरा जैसे इलेक्ट्रोनिक व्यू-फाइंडर न होकर इनमे ऑप्टिकल व्यू-फाइंडर होता है जिससे सामने का वस्तु बेहतर ढंग से दिखाई देता है |
पुराने DSLR कैमरों मे लाइव-व्यू नहीं होता था | पर आजकल के DSLR कैमरों में यह तकनीक सम्मिलित कर लिया गया है | DSLR कैमरों मे सेंसर का आकार बड़ा होता है | लगभग 23 mm X 15 mm – 1.5” सेंसर वाले DSLR कैमरों को APSC DSLR कहा जाता है (जो कि एक crop सेंसर है) | 36 mm X 24 mm सेंसर वाले कैमरों को फुल फ्रेम सेंसर कैमरे कहे जाते हैं और इनके दाम APSC सेंसर वाले कैमरों से ज़्यादा होता है | इनके अलावा भी कुछ बहुत बड़े सेंसर वाले कैमरे हैं जो कि बहुत ही महंगे होते हैं | इन्हें Medium format (48 mm X 36 mm) या Large Format (4” X 5” से बड़ा) कहा जाता है | पर इनके दाम USD 15000 से ज़्यादा ही होता है जोकि साधारण व्यक्ति के पहुँच के बाहर है |
DSLR कैमरों के फायदे यह है कि इनमें Manual Focus की सुविधा, Manual mode, Shutter Prioirity mode और Aperture priority mode तो होते ही हैं, पर आजकल इनमें अन्य कई सुबिधायें आ रही हैं, जैसे कि “In-Camera HDR mode”, “Hand-Held Night Scene mode” इत्यादि | आजकल सभी नए DSLR में लाइव व्यू सिस्टम होता है | कानों ने हाल ही में एक ऐसा DSLR कैमरा बाज़ार मे छोड़ा है जिसमें Touch-screen भी है (Canon EOS 650D) | DSLR कैमरा का सबसे बड़ा फायदा यह है कि आप अपने मनचाहे लेन्स लगा सकते है और लेन्स बदल बदल कर तस्वीर ले सकते हैं, जैसे कि वाइड-ऐंगल, टेलीफोटो या प्राइम लेन्स इत्यादि | कई बड़े DSLR निर्माता विभिन्न प्रकार के लेंसों भी बनाते हैं जिन्हें ख़ास तौर पर उनके कैमरों में प्रयुक्त करने के विचार से निर्मित किया जाता है | चूँकि DSLR कैमरे वजन मे काफी भारी होते हैं, इसलिए इन्हें प्रयोग करने के लिए एक Stand की ज़रूरत होती है | साधारण रूप से आप कम समय के लिए उसे अपने हाथों मे लिए घूम सकते हैं, तस्वीर भी ले सकते हैं, पर यदि आपको कम रौशनी में Low shutter speed से तस्वीर लेने हो या HDR तस्वीर लेने हो, या मान लीजिए बहुत अच्छी तरह से फोकस करना हो, तो Stand की ज़रूरत पड़ती ही है | इनके दाम लगभग रु २०,००० से लेकर रु ४००,००० तक होता है |
चूँकि आप DSLR कैमरों के लेन्स बदल सकते हैं, आपको Focal length में भी बहुत ज्यादा फायदे मिलते हैं | जैसे कि यदि आप किसी Landscape की तस्वीर खींचना चाह रहे हों, तो एक Wide-angle लेन्स लगा लें जिसका Focal length लगभग 10 mm से 20 mm तक हों | या शायद आप दूर किसी पेड़ पर बैठे किसी चिड़िया की तस्वीर लेना चाहते हैं | कोई बात नहीं, एक Telezoom लेन्स लगा लीजिए जिसका Focal length 400 mm से 600 mm तक हो सकता है | इसका नुक्सान यह है कि आपको अपने साथ बड़े छोटे बहुत सारे लेन्स लेकर घूमना पड़ सकता है |

डिजिटल सिंगल लेंस ट्रांस्लुसेंट कैमरा
सोनी कंपनी द्वारा बनाया गया एक तरह के कैमरे हैं डिजिटल सिंगल लेंस ट्रांस्लुसेंट कैमरा (SLT) | ये DSLR जैसे ही होते हैं पर इनमें सेंसर के सामने आम आईने के वजाय एक ऐसा अर्ध-पारदर्शी आइना लगे जाता है जो ज़्यादातर रौशनी को रोके बिना सेंसर तक पहुँचने देता है और थोड़ी बहुत रौशनी को एक दूसरे phase detection सेंसर की ओर मोड़ देता है | इससे फायदे यह होता है कि कैमरे के लिए लगातार phase detection करना आसान हो जाता है | तस्वीर लेते समय यह अर्ध-पारदर्शी आइना अपनी जगह से हिलता नहीं है | इनमें DSLR जैसे ऑप्टिकल व्यू-फाइंडर नहीं होता है बल्कि कॉम्पैक्ट या ब्रिज कैमरा जैसे इलेक्ट्रोनिक व्यू-फाइंडर होता है, लेकिन DSLR जैसे ही हम इनमे लेन्स बदल सकते हैं | वैसे तो यह तकनीक पहले से ही मौजूद था, पर सोनी ने इस तकनीक के कैमरे ही ज्यादातर बनाकर बाज़ार में छोड़ा और इन्हें लोकप्रिय बनाया | ऐसे कैमरों के फायदे यह है कि इनका Auto Focus क्षमता DSLR कैमरों से बेहतर होती है और ये DSLR कैमरों से तेज होते हैं | इनमें भी APSC या Full Frame सेंसर होते हैं | इनका इलेक्ट्रोनिक व्यू-फाइंडर DSLR कैमरों के ऑप्टिकल व्यू-फाइंडर से बड़े होते हैं | इनमें स्थित अर्ध-पारदर्शी आइना अपनी जगह से न हिलने के कारण, ये कैमरा हिलता कम है और बिना Stand के भी तस्वीर धुंधलाती नहीं है | इनमें कमी यह है कि इनकी तसवीरें DSLR के मुकाबले उतनी अच्छी नहीं होती है | 

मिररलेस इंटरचेंजिअबल लेन्स कैमरा
इस तरह के कैमरे को DSLR और कॉम्पैक्ट डिजिटल कैमरा के बीच का एक समन्वय माना जा सकता है | यह एक ऐसी तकनीक है जिसमे कैमरा का अंदरूनी तकनीक तो कॉम्पैक्ट डिजिटल कैमरा जैसा ही है, पर लेन्स परिवर्तनीय है, जो कि कॉम्पैक्ट डिजिटल कैमरा में नहीं होता है | इनका व्यू-फाइंडर इलेक्ट्रोनिक होता है, और इनमें जो सेंसर होते हैं वो साधारणतया कॉम्पैक्ट डिजिटल कैमरा के सेंसर से बड़े होते हैं | इनमे APSC साइज़ के सेंसर भी इस्तमाल होते हैं और उनसे छोटे भी | इनमें से सबसे ज्यादा प्रचलित सेंसर हैं 4/3rd सेंसर जो APSC सेंसर से थोडा छोटा होता है पर कॉम्पैक्ट डिजिटल कैमरा के सेंसर से बड़ा होता है | इनका फायदा यह है कि आकार मे यह DSLR या SLT जितने बड़े नहीं होते हैं | इनका लेन्स का आकार भी उतना बड़ा नहीं होता है | इसलिए इन्हें पाकिट मे लेकर घूमना आसान है | पर बड़ा सेंसर, परिवर्तनीय लेन्स उत्यादी के कारण इनका दाम कॉम्पैक्ट डिजिटल कैमरा के मुकाबले ज्यादा होता है | 

कैमरा कंपनियां
आज के बाज़ार में कई कम्पनियां तरह तरह के कैमरे बेचते हुए नज़र आते हैं | कॅनन  (Canon), निकॉन (Nikon), सोनी (Sony), ओलिंपस (Olympus), मिनोल्टा (Minolta), पेंटैक्स (Pentax), पेनासोनिक (Panasonic) इत्यादि कंपनियों के कई मॉडल के कैमरे और लेन्स बाज़ार में उपलब्ध हैं । इनके अलावा Tamron, Tokina, Sigma जैसी कंपनियां लेन्स बनाती हैं जो उपरोक्त कैमरों में लगाये जा सकते हैं | इनमें से किसी भी कंपनी को किसी और से कमतर या बेहतर बताना मुश्किल है ।  हर बार मामला व्यक्तिगत पसंद, नापसंद का आ जाता है । हालाँकि लेन्स के मामले मे तो मैं यही कहूँगा कि कैमरा बनाने वाली कंपनियों द्वारा बनाये गए लेन्स, यद्दपि तुलनामुलक रूप से महंगे हैं, तथापि गुणबत्ता की दृष्टि से बेहतर होते हैं |
कुछ लोग डिजिटल कैमरे में कितना मेगापिक्सेल होना चाहिए इस बात को लेकर बड़े चिंतित रहते हैं | उनको लगता है कि जितने ज्यादा मेगापिक्सेल होंगे तस्वीर उतनी अच्छी आएगी | यह एक गलत धारणा है | तस्वीर की गुणबत्ता मेगापिक्सेल पर निर्भर न होकर कैमरा के लेन्स की गुणबत्ता पर निर्भर करती है |

इनके अलावा भी कई और तरह के कैमरे होते हैं जिनके बारे में यहाँ कुछ लिखना मैं ज़रुरी नहीं समझता हू क्यूंकि यह आम प्रयोग में नहीं आते हैं | कैमरा खरीदते समय यह ध्यान रखना ज़रुरी होता है कि आप उस कैमरा को किस तरह और किसलिए प्रयोग करने वाले हैं | मसलन, यदि कोई पक्षियों की तस्वीर लेना पसंद करता हो और उसके पास पैसा हो तो उसे अच्छे DSLR या SLT कैमरा खरीदना चाहिए, और साथ मे Telezoom लेन्स | यदि कोई बस घर के सदस्यों का चित्र लेता हो, जैसे कि बस बच्चों के खेलने की तस्वीर, किसी घर आये अतिथि की तस्वीर इत्यादि तो उसका काम एक कॉम्पैक्ट डिजिटल कैमरा से भी चल जायेगा | आपके पास पैसा हो तो आप महंगे से महंगा कैमरा खरीद सकते हैं | पर यदि आप उसे ढंग से इस्तमाल न कर पाएं तो मैं तो इसे पैसे की बर्बादी ही कहूँगा | वहीँ दूसरी तरफ यदि आपमें बेहतरीन फोटोग्राफी करने का शौक या ललक हो, तो ज़रूर कोई अच्छा कैमरा खरीदना चाहिए |

मेरा पहला डिजिटल कैमरा एक कॉम्पैक्ट डिजिटल कैमरा था, दूसरा एक ब्रिज कैमरा और तीसरा DSLR | मुझा लगता है फोटोग्राफी के सफर मे मैं धीरे धीरे आगे बढ़ रहा हूँ | आपका क्या ख्याल है ?

जिन मित्रों को मेरी ली हुई तस्वीर देखने हैं वो कृपया फेसबुक पर मेरा फोटोग्राफी पेज पर जाएँ या फिर मेरा Flickr account पर जाएँ !

अगली कढ़ी में मैं डिजिटल कैमरे के मोडस के बारे मे बताऊंगा | आते रहिये और फोटोग्राफी की दिलचस्प दुनिया के बारे मे जानिये |

आप को ये भी पसंद आएगा .....

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