यह रचना हर जीवित प्राणी के उस मजबूरी पर लिखी गई है जिसका नाम है "भूख" ....
कल हमारे साथ कुछ ऐसी बात घटी कि हम कुछ लिखने पे मजबूर हो गए । उस घटना को मैं यहाँ नहीं दे रहा हूँ,
क्यूंकि उसका वर्णन आपको यहाँ मिल जायेगा ।
यही सत्य है, अमोघ,
शक्ति है तुम्हारी ।
सारा जगत, हर क्षण,
वश में है तुम्हारे ।
भयभीत है तुमसे,
हर प्राणी, जल-स्थल ।
नतमस्तक हैं सब,
देख तुम्हारे बाहुबल ।
हर सकते हो सभी के
बुद्धि, हिताहित ज्ञान ।
पाप-पुण्य, धर्म, कहीं
तुम्हारा न समाधान,
तुच्छ है तुम्हारे आगे
सुख, दुःख हो या भय ।
जीता है न तुमसे कोई
भयानक हो, तुम अजय
निष्ठुर, निर्मम हो तुम,
जीवन की शर्त हो ।
सामाजिक मूल्यों के
मुंह पर एक गर्त हो ।
संभव ना है किसीसे
भी अनंत अनशन ।
खाद्य कुखाद्य हो
बस हो क्षुधा निवारण ।
चित्र साभार गूगल सर्च से लिया गया है
Oh!Kitna bhayawah saty hai yah!
ReplyDeleteभूख का यह रूप देखा है जीवन में ! इस लिए कोशिश यही रहती है कि खाना बर्बाद ना होने पाए !
ReplyDeleteजीवन के क्रर सत्य को आपने सार्थक ढंग से प्रस्तुत किया है।
ReplyDelete................
नाग बाबा का कारनामा।
महिला खिलाड़ियों का ही क्यों होता है लिंग परीक्षण?
भूख ..... इसके आगे सब नतमस्तक हैं ..... सार्थक रचना है ...
ReplyDeletebahut maarmik aur sunder rachna...
ReplyDelete--
www.lekhnee.blogspot.com
Regards...
Mahfooz..
खाद्य कुखाद्य हो
ReplyDeleteबस हो क्षुधा निवारण ।
त्रासद रचना .. शब्द शब्द पिरोया हुआ
बहुत सटीक रचना...
ReplyDeletesach much ..admi per ke liye kya kya nahi karta hai .. duniyaan chal hi rahi hai tarah tarah ki bhookh ke bal par...
ReplyDeleteसही दिशा की ओर इंगित किया है आपने,अगर सभी इस ओर ध्यान दे तो यह स्थिति ही उत्पन्न नहीं होगी।
ReplyDeleteबहुत मार्मिक सटीक कविता
ReplyDeleteएक उम्दा पोस्ट के लिए बहुत बहुत बधाइयाँ और शुभकामनाएं !
ReplyDeleteआपकी चर्चा ब्लाग4वार्ता पर है यहां भी आएं
do took kahun to...satya vachan
ReplyDeletejyada kahna bhookh ki saarthakta ko kam karna hoga.
मौत के बाद भी सबसे पहले यही कहते हैं "कुछ मुंह में डाल लो....." भूख !
ReplyDeleteइंद्रनील जी ,
ReplyDeleteबहुत मार्मिक प्रस्तुति।
निष्ठुर, निर्मम हो तुम,
जीवन की शर्त हो ।
इश्वर ने पेट की भूख देकर मनुष्य को शायद उद्यमी होने की शिक्षा दी है..
.
Bhook! kya kya na najare dikhati hai jindagi mein...
ReplyDeleteDil kee gahrayee se likhi Marsparshi rachna
bahut hi zabardast aur marmik satya .
ReplyDeleteतुम्हारा न समाधान,
तुच्छ है तुम्हारे आगे
सुख, दुःख हो या भय ।
जीता है न तुमसे कोई
भयानक हो, तुम अजय
निष्ठुर, निर्मम हो तुम,
जीवन की शर्त हो ।
सामाजिक मूल्यों के
मुंह पर एक गर्त हो ।
संभव ना है किसीसे
भी अनंत अनशन ।
खाद्य कुखाद्य हो
बस हो क्षुधा निवारण ।
ati sundar .mujhe bangaal me huye akaal ki ghatna smaran ho aai
बेहद भावपूर्ण रचना... लाजबाव
ReplyDeleteमार्मिक!
ReplyDeleteक्या कहें....
ReplyDeleteएक संवेदनशील हृदय है आपके पास, तभी ऐसी मार्मिक कविता रच सकते हैं आप।
ReplyDeleteभूख सबसे बड़ा सच है, सच में।
आपके माध्यम से तृप्ति जी के ब्लॉग तक भी पहुंचे, पूरी घटना भी जानी और आपका नाम हिन्दी में कैसे उच्चारित किया जाये, मैं कन्फ़्यूज़ था इन्द्रनील, इन्द्रानिल या इन्द्रानील।
भूख से अधिक दुनिया मे क्या हो सकता है इस पेट के लिये आदमी क्या कुछ नही करता है। लेकिन तब ये त्रासदी बन जाती है जब एक इन्सान की भूख दूसरे इन्सान को खाने लगे। बहुत मार्मिक रचना है। आभार।
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