चलिए आज आप सबको एक घटना के बारे में बताता हूँ । ये घटना तब घटी जब मैं अपने काम के सिलसिले में मध्य प्रदेश के सीधी जिले के एक गाँव में कुछ महीनों के लिए ठहरा हुआ था ।
एक भू-वैज्ञानिक होने के नाते मध्य भारत के कई स्थानों में रहना भी हुआ और काम के सिलसिले में घूमना फिरना भी । किसी गांव में अपना शिविर लगाता था और आसपास के जंगलों में, पहाड़ों में घूम घूम कर मानचित्र तैयार करता था, और खनिज अन्वेषण का काम करता था ।
तो हुआ यूँ, कि उस साल हम लोगों को सीधी के दक्षिण में एक बड़े से क्षेत्र से पानी के नमूने इकट्ठे करने थे शोध के लिए । हम मड्वास नामक एक गाँव में शिविर लगाये थे । हम मतलब मैं, एक वरिष्ठ अधिकारी, एक ड्राईवर, और कुछ स्थानीय कर्मचारी ।
हम रोज़ सुबह तैयार होकर अपनी जीप से निकल जाते थे और दिनभर नमूने इकट्ठे करने के बाद शाम तक लौट आते थे । कभी कभी पानी के साथ साथ हम मिटटी के नमूने भी इकट्ठे करते थे ।
दिसंबर का महिना था । मेरी पत्नी भी मेरे साथ शिविर में रहने आई थी ।
एक दिन की बात है, (मेरा वरिष्ठ अधिकारी उस वक़्त छुट्टी पर घर गए हुए थे) मैं सुबह नमूना इकठ्ठा करने के लिए निकलने ही वाला था, कि मेरी पत्नी ने मुझसे कहा कि शिविर में अकेले बोर लगता है, इसलिए आज वो भी मेरे साथ चलेगी । मैं राज़ी हो गया और हम निकल पड़े । उसदिन हम जिस तरफ गए वहां काफी घना जंगल था । जंगल के बिच बिच में कहीं कहीं पर छोटे छोटे गाँव भी थे । हम उन गाँव में जाते, वहां के ट्यूबवेल से पानी के नमूने बोतल में भर लेते, जी.पी.एस. से उस जगह की स्थिति नापते, उस बोतल को एक खास नंबर देते, और फिर वहां से दूसरी जगह की ओर अग्रसर हो जाते ।
कुछ देर बाद जब कुछ पानी के नमूने इकट्ठे हो चुके थे, हम जंगल में ही एक जगह रुक कर दोपहर का खाना खा लेने का निश्चय किये ।
खाना हो गया, और हम दस मिनिट विश्राम के बाद फिर से काम पे लग गए । चूँकि, अब कोई गाँव आस पास नहीं बचा था, इसलिए हम सोचे कि चलो अब मिटटी के कुछ नमूने इकट्ठे कर लिया जाय । हम मिटटी के नमूने दीमक के टीलो से इकट्ठे करते थे । घूम घूम कर दीमक के टीले ढूँढ़ते थे, और जब कोई मिल जाता था, तो एक लोहे के पाइप कि मदद से मिटटी के नमूने लेते ।
चार पांच नमूने इकट्ठे हो गए थे कि अचानक मेरी पत्नी तबियत नासाज़ होने की शिकायत करने लगी । तो हमने सोचा कि चलो काफी काम हो गया है अब शिविर लौट चलते हैं ।
उस समय शाम के करीब चार या पांच बज रहे थे, ठीक से याद नहीं । हम जीप पर सवार लौटने लगे । जंगल के बीच से होकर रास्ता गुज़र रहा था । सामने के सीट पर ड्राईवर, मैं और मेरी पत्नी बैठे थे, और पीछे चार स्थानीय कर्मचारी जो हमारे साथ काम करते थे । हमलोग काफी तेजी से लौट रहे थे, कि अचानक मेरी नज़र रास्ते के बाजू में खड़ा एक भालू पर पड़ी । जी हाँ, एक भालू ! एक पूरा, सम्पूर्ण भालू !
आराम से रास्ते के बाजू में खड़ा होकर एक दीमक के टीले से दीमक निकाल कर खाने में व्यस्त था । उसे ध्यान भी नहीं था कि रास्ते पर से कोई गाड़ी गुज़र रही है । पता नहीं मेरे दिमाग पर क्या भूत चड़ा, मैंने अपने ड्राईवर से कहा 'ज़रा गाड़ी रोकना मैं उस भालू की एक तस्वीर लेना चाहता हूँ' । ड्राईवर ने गाड़ी रोकी । मैं झट से उतरा, और अपना कैमरा निकाल कर, उस भालू की तस्वीर लेने की कोशिश करने लगा । शायद ले भी लेता, पर मेरी पत्नी डर गयी और उतर के चिल्ला कर मुझे गाड़ी के अन्दर आने के लिए बोलने लगी । उसकी आवाज़ सुनकर पीछे बैठे सारे लोग भी उतर आये और भालू देखकर चिल्लाने लगे । अब जाकर भालू महाराज का ध्यान भंग हुआ और वो मुंह उठाकर हमारे तरफ देखा । इस हल्ला गुल्ला में, मेरा फोटो लेना रह गया । अचानक, वो भालू, शायद हमारी बचकानी हरकतों से परेशां होकर मुंह घुमाकर जंगल कि तरफ भागा । मैंने देखा कि मेरा मौका, एक सुन्दर फोटो सेशन का, हाथ से छुटा जा रहा है, और मेरा मॉडल, मुझसे दूर भाग रहा है । शायद मेरा दिमाग उस समय काम करना बंद कर दिया था, मैं उस भालू के पीछे जंगल कि तरफ भागा । मुझे भागते देख मेरी पत्नी भी मेरे पीछे भागी । हमें जाते देख, वो चार कर्मचारी जो हमारे साथ थे, वो भी हमारे पीछे हो लिए । अब ड्राईवर अकेला रह गया था, और चूँकि वो काफी बहादुर था, उसने सोचा कि वहां अकेले इंतज़ार करने से बेहतर है कि वो भी हमारे पीछे आ जाये । करीब आधे मिनिट तक भालू भाग रहा था, उसके पीछे मैं, कैमरा लेकर, मेरे पीछे मेरी पत्नी, और हमारे पीछे, हमारा ड्राईवर और बाकी के कर्मचारी । पर भालू हम से काफी तेज निकला और बहुत जल्दी जंगल में पेड़ो के पीछे खो गया । उस भालू के नज़रों के ओझल होते ही मेरा होश लौट आया । अचानक मैंने यह महसूस किया कि मैं जो भी कर रहा था वो कितना गलत और खतरनाक था । क्षणिक उत्तेजना के बस में आकर, मैं एक बहुत बड़ा जोखिम उठा रहा था । न केवल अपनी, बल्कि औरों की जान खतरे में डाल रहा था । भालू यदि मुड़कर आक्रमण करने का अनुचित निर्णय ले लेता, तो हम गए थे काम से । पर पता नहीं क्यूँ, उसको हमसे बहुत चिढ आ गई थी, या वो बहुत ज्यादा शर्मीला किस्म का भालू था, पहले कभी शायद तस्वीर नहीं निकलवाया था, उसने न तो मुड़कर आक्रमण किया, और नाही फोटू खिंचवाने के लिए रुका ।
खैर, मुझे तस्वीर के बग़ैर ही लौटना पड़ा । पत्नी की गालियाँ अगले एक हफ्ते तक लगातार बरसती रही सो अलग । और कान पकड़ा कि ऐसी गलती जीवन में दुबारा नहीं करूँगा । आज भी जब वो घटना याद करता हूँ, तो वो पल याद आता है जब, भालू के पीछे पीछे हम सब दौड़े थे ।
अभी ऐसे और बहुत किस्से हैं जो मैं आप लोगों को सुनाऊँगा । पर आज यहीं तक ।
चित्र साभार गूगल सर्च
रोमांचक संस्मरण
ReplyDeleteआज भी याद करके सिहरन होती होगी.
और कान पकड़ा कि ऐसी गलती जीवन में दुबारा नहीं करूँगा ।'
पर ये तो बताया ही नहीं कि किसका कान पकड़ा !!!
hmmm...kal bhi dekhi thi ye post..padhne aaya to gul ho gayi thi...achhi yaad hai ... bahut kam log bhaalu ke peeche daudte hain..warna bhaloo hi sabke peeche daudta hai ..hehehe
ReplyDeleteरोमांचक संस्मरण..
ReplyDeleteवाह सैल साहब, बहुत मजेदार रही ये आधी अधूरी मुलाकात भालू मामा के साथ। वैसे आपने तो अपनी तरफ़ से कोई कसर अधूरी नहीं छोड़ी थी।
ReplyDeleteअच्छा लगा ये किस्सा, सुनाते रहना यार और भी।
सुबह से तीसरी बार है, ये कमेंट कर रहा हूं, ब्लॉगर की दिक्कत के कारण पोस्ट नहीं हो पा रही है।
Bahut romanchak! Achha hua,ki, aap aage aur bhalu peechhe..yah nahi hua!
ReplyDelete@ वर्मा जी
ReplyDeleteकिसी और का कान पकड़ने की औकात हमारी नहीं है :)
@क्षमा जी
यदि "मैं आगे और भालू पीछे" ऐसा होता, तो शायद यह किस्सा मेरा आपलोगों को सुनाने की वजाय भालुमामा अपने दोस्तों को सुना रहा होता ...
रोमांचक संस्मरण..आपके बाकी किस्सों का इंतज़ार रहेगा !!
ReplyDeleteभालू सोच रहा होगा यह शहर वाला मुझे बाँध कर शहर ले जाएगा और मुझसे नाच नचवायेगा, इसी लिए डर कर भाग गया.
ReplyDeleteआपके ब्लाग पर आकर अच्छा लगा। कम से कम यहां किसी की टांग खिंचाई तो नहीं है। हां आप भले ही भालू की टांग खींचे या भालू आपकी चलेगा। शुभकामनाएं ।
ReplyDeleteवाकई काफी रोमांचक संस्मरण है।
ReplyDeleteरोमांचक संस्मरण।
ReplyDeleteबहुत अच्छा किस्सा भाई जी.. आपकी हिम्मत की दाद दूँ या काम के प्रति समर्पण की?? :)
ReplyDeleteआपकी रचना चर्चा मंच पर
ReplyDeletehttp://charchamanch.blogspot.com/2010/05/163.html
romanch ho aaya
ReplyDeleteजितना उस भालू के पीछे दौड़े उतना अगर मैराथन में दौड़ते तो शायद मेडल मिल जाता हा ... हा ... हा ...
ReplyDeleteबहुत रोमांचक और मजेदार किस्सा है .... जीवन में अनेकों ऐसे पल आते हैं जब इंसान देर में जागता है और सोचता है ... अरे क्या कर रहा था वो ....
ReplyDelete..रोचक !!!
ReplyDeleteरोमांचक संस्मरण
ReplyDeletebadhiya kissa.
ReplyDeleteबहुत ही सुन्दर और रामंचक संस्मरण रहा! भालू तो बहुत ही प्यारा है! बढ़िया पोस्ट!
ReplyDeleteखुशकिस्मत हो भाई - हम होते तो वह मज़े ले-लेकर खा गया होता.
ReplyDeleteIntersting
ReplyDeleteप्रशंसनीय ।
ReplyDeleteखैर, मुझे तस्वीर के बग़ैर ही लौटना पड़ा । पत्नी की गालियाँ अगले एक हफ्ते तक लगातार बरसती रही सो अलग । और कान पकड़ा कि ऐसी गलती जीवन में दुबारा नहीं करूँगा । आज भी जब वो घटना याद करता हूँ, तो वो पल याद आता है जब, भालू के पीछे पीछे हम सब दौड़े थे
ReplyDelete... romanchkari Sanmaran.... sach mein aisi ghatnayen ko yaad kar rongte khade ho jaate hain...
रोमांचक संस्मरण..
ReplyDeleteआप तक बहुत दिनों के बाद आ सका हूँ, क्षमा चाहूँगा,
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