सोयी रात के सिरहाने पर
जग रहा था चाँद ।
चिंता के हाथों को कसके
नींद रखी थी बाँध ।
ओढ़ ली है थकी आँखों ने
पलकों की चादर ।
दफ्तर छोड़ा होश का
अब चलो नींद के घर ।
अँधेरे ने बेहोशी में
छेड़ा मन का तार ।
दूर सपनों के वादी में
बज उठा गिटार ।
चित्र साभार गूगल सर्च
सोयी रात के सिरहाने पर
ReplyDeleteजग रहा था चाँद ।
चिंता के हाथों को कसके
नींद रखी थी बाँध ।
वाह ! गज़ब का लिखा है, बहुत खूब
sleeping is good
ReplyDeleteओढ़ ली है थकी आँखों ने
ReplyDeleteपलकों की चादर
इन पंक्तियों ने तो दिल को छू लिया....
बहुत सुंदर प्रस्तुति....
चिंता के हाथों को कसके
ReplyDeleteनींद रखी थी बाँध ।
ओढ़ ली है थकी आँखों ने
पलकों की चादर
बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति...
kya baat hai ...neend ki badi hi khubsurati ke sath likha hai indraneel babu .. mujhe bahut pasand aayi ...
ReplyDeleteओढ़ ली है थकी आँखों ने
पलकों की चादर ।
दफ्तर छोड़ा होश का
अब चलो नींद के घर ।
in lines ne mann moh liya....
बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति है।
ReplyDeleteवाह !
ReplyDeleteइस बात को यों भी कहा और सोचा जा सकता है..
कमाल !
बधाई !
वाह ! बहुत सुंदर
ReplyDeletewaah sirji gazab ki baat....bahut sundar
ReplyDelete'सोयी रात के सिरहाने पर
ReplyDeleteजग रहा था चाँद ।'
वाह! कितनी सुन्दर बात कही है...
बहुत खूबसूरत रचना है.
बेहतरीन उपमाएं इस्तेमाल कीं आज आपने..
ReplyDeleteसोयी रात के सिरहाने पर
ReplyDeleteजग रहा था चाँद ।
सुन्दर बिम्ब उकेरा है
लाजवाब
अँधेरे ने बेहोशी मेंछेड़ा मन का तार ।
ReplyDeleteदूर सपनों के वादी में बज उठा गिटार ।
बहुत सुंदर !
अँधेरे ने बेहोशी में
ReplyDeleteछेड़ा मन का तार ।
दूर सपनों के वादी में
बज उठा गिटार
-क्या बेहतरीन कवित्त!! वाह!!
सूक्ष्म पर बेहद प्रभावशाली कविता...सुंदर अभिव्यक्ति..प्रस्तुति के लिए आभार जी
ReplyDeleteबहुत से गहरे एहसास लिए है आपकी रचना ...
ReplyDeleteअँधेरे ने बेहोशी में
ReplyDeleteछेड़ा मन का तार
दूर सपनों के वादी में
बज उठा गिटार ..
बहुत खूब सेल साहब ...
ये गिटार यूँ ही बजती रहे उम्र भर .. लाजवाब लिखा है ...
"दफ्तर छोड़ा होश का अब चलो नींद के घर ।"
ReplyDeletewaah!kya baat hai ji...
kunwar ji,
चिंता के हाथों को कसके
ReplyDeleteनींद रखी थी बाँध ।
ओढ़ ली है थकी आँखों ने
पलकों की चादर
bahut khubsurti se likha hai
क्या दृश्य है... राहत देती पंक्तियाँ !!
ReplyDeleteसोयी रात के सिरहाने पर
ReplyDeleteजग रहा था चाँद ।'
बेहद खूबसूरत
पिछले कुछ समय से आपके ब्लॉग का नियमित पाठक बना हुआ हूँ.......
ReplyDeleteइस बार तो कमाल का लिखा है दोस्त.......क्या इमेजिनेसंस हैं भाई वाह......
सोयी रात के सिरहाने पर
जग रहा था चाँद ।
इसके बाद भी कुछ कहने को रह जाता है क्या.......
ओढ़ ली है थकी आँखों ने
पलकों की चादर ।
लूट लिया मोहतरम.......आपने !
दूर सपनों के वादी में
बज उठा गिटार ।
बिलकुल अद्भुत प्रयोग.......!
आप सभी को मेरा तहे दिल से शुक्रिया ... यूँ ही प्यार बनाये रखिये .. जो भी है आपके प्रोत्साहन का फल है ...
ReplyDelete@ singhsdm
आप सा नियमित पाठक पाकर मैं भी धन्य हूँ ... आपका स्वागत है ... आते रहिएगा ...
अँधेरे ने बेहोशी में
ReplyDeleteछेड़ा मन का तार ।
दूर सपनों के वादी में
बज उठा गिटार
uff...aakhir yaha bhi nahi chhoda.....socho ki taare yaha bhi baz uthi.
bahut sundar shabdo ka prayog.
'दूर सपनों के वादी में
ReplyDeleteबज उठा गिटार ।'
- यह गिटार सपने की वादी में ही नहीं वास्तिवकता के धरातल में भी बजना चाहिए. सुन्दर कविता.
बहुत सुंदर प्रस्तुति....सुन्दर कविता |
ReplyDeleteचिंता के हाथों को कसके
ReplyDeleteनींद रखी थी बाँध ।
ओढ़ ली है थकी आँखों ने
पलकों की चादर ।
दिल को छू गयी ये पंक्तियाँ! बहुत सुन्दर रचना!
ओढ़ ली है थकी आँखों ने
ReplyDeleteपलकों की चादर
bahut khubsurat
Harek pankti ne gazab dhaya hai! Wah!
ReplyDeleteMaza aa gaya,
ReplyDeleteNasha chha gaya....
Ab chalo neend ke ghar!
आपकी रचना पढ़कर सुखद अनुभूति हुई। बधाई!
ReplyDeleteप्रकाशन संबंधी कुछ नियम हैं। उसके अनुसार कुछ सुझाव हैं। इससे गुणवत्ता में वृद्धि होगी।
[1] किसी रचना के साथ यदि चित्रांकन आवश्यक हो तो उसका क्षेत्रफल 30 % से अधिक नहीं होनी चाहिए।
[2] छंदबद्ध रचना को उसके परंपरागत स्वरूप में प्रस्तुत करना चाहिए। पंक्तियों को असगत रूप में रखने से काव्य की छंद परंपरा और तुकांतिक लालित्य से पाठक वंचित हो जाता है।
[3] इस पोस्ट में चित्राकन को थोडा़ छोटा करके देखें।
सद्भावी-डॉ० डंडा लखनवी
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डॉ लखनवी जी, आपके सुझावों के लिए शुक्रिया, मैंने चित्र को थोडा छोटा कर दिया है ...
ReplyDeleteरही बात छंद की, तो वह भी यथासंभव पालन करने की कोशिश करूंगा ...
achhi rachna...sirji..
ReplyDeleteachha likhte hain aap....
सोयी रात के सिरहाने पर
ReplyDeleteजग रहा था चाँद .....
कुछ यूँ देर तक
जगता रहा साथ चाँद
जो मैंने पूछा तो
तेरा पता दे गया .....
आपकी रचनाएँ बहुत ही सरल, सुंदर और सौम्य है.
ReplyDeleteकभी अजनबी सी, कभी जानी पहचानी सी, जिंदगी रोज मिलती है क़तरा-क़तरा…
बहुत बेहतरीन अभिव्यक्ति, शायद सबसे अच्छी नींद यही होगी. हर कोई ऐसी ही नींद की चाह रखता है
ReplyDeleteआईये जानें .... मैं कौन हूं!
ReplyDeleteआचार्य जी
बहुत सुंदर प्रस्तुति....
ReplyDeletesamanya par achhi kavita..
ReplyDeleteबहुत सुंदर रचना।
ReplyDeleteनिन्ना -निन्ना आऽऽऽ जाऽऽऽ
की उम्र से निकल आने के बाद यही होता है।
जाने कब मन उचटता है,
जाने क्यूँ चैन खोता है।
वाह!
padhkar achcha lagaa.......sundar
ReplyDeleteAnchue se bimbon ka sundar prayog.shubkamnayen.
ReplyDeleteबहुत दिन हुए, महीना भर ही हो गया आपकी वादी में गिटार फिर नहीं बजा....
ReplyDeleteअरे दादा, कहां गायब हो?
ReplyDeleteकमी खल रही है।
This comment has been removed by the author.
ReplyDeleteओढ़ ली है थकी आँखों ने
ReplyDeleteपलकों की चादर ।
दफ्तर छोड़ा होश का
अब चलो नींद के घर ।
...ये पंक्तियाँ तो बहुत ही लाजवाब हैं.
..बधाई.
bahut sunder likhaa hai...
ReplyDeleteoopar khaane ki tasweerein dekh kar munh mein paani aa gayaa...