यह कुतर्क हमेशा दिया जाता है कि जातिप्रथा की शुरुआत इसलिए की गयी थी कि हमारा समाज कर्म के अनुसार सुव्यवस्थित हो सके । इन जातिप्रथा के समर्थकों से ये पूछिए कि दुनिया के दुसरे देशों में यह व्यवस्था नहीं है तो क्या वहां का समाज व्यवस्थित नहीं है? बल्कि उल्टा ही है । जातिप्रथा के कारण हमारे देश में, समाज में केवल अव्यवस्था ही फैली है, हमारे अंदर भाईचारा की कमी आई है, सद्भावना की कमी आई है, एक दुसरे के प्रति द्वेष पनप रहा है तथा एकता बलि चढ गयी है ।
जातिप्रथा एक सर्वथा त्यज्य कुप्रथा है !
इसीके कारण हमारा देश हमेशा से गुलाम रहा है । पहले बाहरी शत्रुयों के और अब अपने ही देश में, अपने ही लोग हमें गुलाम बनाकर रख रहे हैं, केवल इस प्रथा के बलबूते पर । यह अत्यंत दुर्भाग्य की बात है कि हम में से कई आज भी इस साधारण सी बात को समझने में असमर्थ हैं । या शायद समझकर भी समझना नहीं चाहते हैं । कुछ लोगों को अपनी तथाकथित उच्च जाति होने का दंभ है तो कुछ लोग आरक्षण का फायदा लेना चाहते हैं और इसलिए जातिप्रथा को समर्थन करते हैं ।
हमारे राजनैतिक दल तो सत्ता और पैसे के पीछे अंधे हो गए हैं । वो समाज को बांटकर, वोट बैंक की राजनीति खेल रहे हैं । समाज रसातल में जाये इससे उन्हें कोई फर्क नहीं पढता है ! उन्हें तो बस वोट चाहिए और उसके लिए यदि उन्हें समाज को बांटना पड़े तो यही सही, यदि इससे समाज में अव्यवस्था फैले तो ठीक है । आज कोई भी यह नहीं देखता है कि चुनाव में खड़े उम्मेदवार अच्छा आदमी है या कोई अपराधी है । हर कोई यही देखता है कि ये हमारी जाति से है या कोई दूसरी जाति से । यही कारण है कि देश में अब कोई भी एक दल चुनाव जीत नहीं पाता है, हमेशा ही मिली-जुली (वैसे तो कोई मिला हुआ नहीं होता है, बस कहने की बात है, सभी दल आपस में बस झगडा ही करते रहते हैं), सरकार बनती है, जो देश का कार्यभार ढंग से संभाल नहीं पाती है और बहुत जल्दी टूटकर बिखर भी जाती है । इसका नतीजा यह है कि एक तो शासन व्यवस्था चरमरा जाती है, और दूसरा यह कि बार बार चुनाव करवाकर जनता का धन लुटाया जा रहा है ।
जो लोग हमेशा उपरोक्त कुतर्क देते हैं, उनसे ये सवाल है कि आप केवल एक उदाहरण दिखाइए जिसमे जातिप्रथा से समाज को कुछ लाभ हुआ हो । पहले तो जातिगत आधार पर समाज के एक वर्ग को शिक्षा और जाग्रति से दूर रखा गया, उन्हें पददलित किया गया, और अब उसी प्रथा के बलबूते फिर से समाज को बांटा जा रहा है, तथा योग्यता की बलि चढ़ाई जा रही है ।
इधर कई जगह ऐसी भी है हमारे देश में जहाँ जाती के नाम पर मारकाट मची है । एक जाती के लोग दुसरे जाती के लोगों को मारते हैं और फिर अनंतकाल तक बदले का सिलसिला शुरू हो जाता है । पहले तो इन्सान को धर्मों में बाँट दो, फिर जातियों में, फिर गोत्र में, फिर ये सोचो कि ये हमारे गाँव से है, ये दुसरे गाँव से है ... और इसी तरह बंटते चले जाओ । मेरा मानना है कि जो जातिप्रथा में विश्वास करता है उसे कोई हक़ नहीं है समाज की दुरावस्था के बारे में कुछ भी कहने का । समाज की ऐसी हालत के लिए वो खुद ज़िम्मेदार है, उसका स्वार्थ, और अदुरदर्शिता ज़िम्मेदार है ।
मुझे कई बार इस बात का सामना करना पढ़ा है कि तुम उच्च जाती का होकर भी जाति व्यवस्था के विरुद्ध क्यूँ कहते हो । मेरा एक ही जवाब है, कि, जब तक एक एक इन्सान समाज के प्रति अपनी ज़िम्मेदारी को महसूस न करे, तब तक समाज में कोई सुधार नहीं आयेगा । केवल जाती प्रथा के बारे में टिपण्णी न करते हुए आइये अपनी सोच में एक आमूलचूल परिवर्तन लाते हैं और आज से जातिप्रथा का त्याग करते हैं । खुद में परिवर्तन लायें तो समाज में परिवर्तन आयेगा ।
ji, bilkul sahi kaha aapne...
ReplyDeletelekin aaj kal jaati pratha badhti hi chali ja rahi hai....
kya jaati ke naam par aarakshan is ko badhawa nahi de raha....
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mere blog mein is baar...
जाने क्यूँ उदास है मन....
jaroora aayein
regards
http://i555.blogspot.com/
जाति प्रथा - मनोवैज्ञानिक तौर पर इसका मतलब होता है शासक वर्ग द्वारा ( चाहे वो पुराने जमाने के राजा हों या फिर आज के लालू प्रसाद ) जनता में अपना हित सुनिश्चित करना ! और अब तो ये राजनीति के धुरंधर जाति आधारित गणना पर अड़ गए है , जिसके बहुत दूरगामी परिणाम निकलेंगे और हो सकता है कि देश जल्दी बाँट जाए फिर कुछ भागों में !
ReplyDeleteओब्जेक्टिव विश्लेषण। दरअसल, इंसान अपने स्वार्थ में इतना अंधा हो चला है कि वह अपने कर्मों का मुल्यांकन करना ही नहीं चाहता। चाहे वे नेता हो या जनता। सब अपने स्वार्थ में अंधा है, नतीजे में जातिवाद जिंदा है।
ReplyDeleteएक सटीक और उम्दा लेख !!
ReplyDeleteआपकी बातों से अहसमत होने का प्रश्न ही नहीं उठता। सही विश्लेषण किया है आपने।
ReplyDelete--------
कौन हो सकता है चर्चित ब्लॉगर?
पत्नियों को मिले नार्को टेस्ट का अधिकार?
Aapse poorn sahmat hun! Shayad kisi sadi me yah pratha samay ki zaroorat hogi..aaj kaalbahy ho chuki hai..uske fayde nahi,gair faide adhik ho gaye hain..
ReplyDeleteसच है पहले परिवर्तन खुद में लाना होगा .. अपनी सोच में लाना होगा .....
ReplyDeleteसही विश्लेषण किया है।
ReplyDeleteसामजिक समस्याओं के प्रति ब्लॉग पर कम ही आलेख दीखते हैं।
ReplyDeleteअच्छी सोच प्रस्तुत किया है आपने।
आपके मुहिम में मुझे अपना साथी मानें।
अपने नाम से जाति सूचक टाइटल हमनें पैंतीस बरस पहले हटा दिया था।
lajwab aalekh ,kahi bahut aandar tak aapna pra bhav chhod ata hua lekh. mai bhi jati pratha kee bilkul khilaf hun aur aapki baato ka poori tarah se samrthan karti hun.
ReplyDeletepoonam
Aapki bat se sahmat hoon.
ReplyDeleteआपने ठीक लिखा कि जातियता का आज के समाज में कोई महत्व नहीं
ReplyDelete१९६० के आस्पास नागपुर के कांग्रेस सम्मेलन में स्वर्गीय चरण सिंह बाद मे प्रधान मन्त्री ने जाति प्रथा के उन्मूलन हेतु प्रस्ताव रखा था कि सरकारी नौकरियों में ५०% अन्तर्जातीय विवाहित जोड़ो couples
आरक्षित कर दी जायें तो जाति प्रथा ५०-६० साल्र स्वमेव दू्र हो जाएग्गी,लेकिन प्रस्ताव ना मन्जूर हो गया था मेरे ब्लॉग पर अपनी टिपण्णियों का जवाब देख लें अगर इ मेल बताएं तो कुछ और बात भी हो सकती है
सस्नेह
श्याम सखा
बहुत शानदार !
ReplyDeleteअभिव्यक्ति
इन्द्रनील जी पहली बार आपके ब्लॉग पर आया.. और अब दुःख है की इतनी देर से क्यों आया...
ReplyDeleteजाति प्रथा को पुनर्जागृत (मृत ही कब था) करने के लिये एक मुहिम चल रही है, विरोध जरूरी है.
ReplyDeleteसुन्दर विश्लेषण किया है आपने
पूर्ण सहमति. अपनी पहचान और जाति दो बिलकुल अलग चीज़ें हैं.
ReplyDeleteआपके लेख में पूरी आस्था व्यक्त करता हूँ ....जातिवाद के दंश ने हमारे देश-समाज को बहुत पीछे ला दिया है...अब इससे आगे निकलने की जरूरत है.
ReplyDeleteमैं अभिभूत हूँ की आप सबने मेरे विचार के प्रति आस्था व्यक्त किये हैं । मुझे पूर्ण विश्वास है की यदि सबके मन में इसी तरह सुबुद्धि का संचार हो तो हमारे समाज में परिवर्तन ज़रूर आयेगा । और एक दिन हमारा देश भारत 'सारे जहाँ से अच्छा" बन जायेगा ।
ReplyDeleteअभी बहुत कुछ करना बाकि है । बूंद बूंद से घड़ा भरता है, इसी तरह एक एक इन्सान के बदलने से समाज बदलेगा । श्याम जी के टिपण्णी में उन्होंने जो जानकारी दी है, वो महत्वपूर्ण है; हमारे देश में ऐसे भी राजनेता हुए हैं जो जातिप्रथा जैसे कुरीति को ख़तम करने के बारे में सोचे हैं । भले ही वह प्रस्ताव पारित न किया गया हो, पर अब ज़रुरत है कि आम आदमी आगे आकर वो सपना साकार करे ।
sarthak post.... saadhuwaad....
ReplyDeleteबिल्कुल सही कहा है आपने! मैं आपकी बातों से पूरी तरह सहमत हूँ! उम्दा प्रस्तुती!
ReplyDeleteसत्य वचन!
ReplyDelete..प्रभावशाली व प्रसंशनीय अभिव्यक्ति !!!
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