चलिए हंसी मजाक हो गया, अब फिर से संजीदा कुछ हो जाये -
कर लो चाहे कुछ भी पर ये यार नहीं कर पाओगे ।
कागज की कश्ती से सागर पार नहीं कर पाओगे ॥
पी कर आंसुओं को मैंने, रखकर छाती पर पत्थर ।
जिस तरह किया है इंतज़ार नहीं कर पाओगे ॥
लेकर नाम उनका तुमने पुकारा है सरे राह ।
ऐसी गुस्ताखी मगर हर बार नहीं कर पाओगे ॥
वादा खिलाफी इस तरह मत करो तुम मान लो ।
हम रूठे तो खुद पर भी ऐतबार नहीं कर पाओगे ॥
मुंह पर 'ना' हो आज भले ही लेकिन मेरा दावा है ।
आयेगा इक दिन “सैल” इनकार नहीं कर पाओगे ॥
आयेगा इक दिन “सैल” इनकार नहीं कर पाओगे ॥
चित्र साभार गूगल सर्च
बहुत खूबसूरत दावा.....इनकार नहीं कर पाओगे....खूबसूरत ग़ज़ल...बधाई
ReplyDeletewah har sher laajawaab. bahut acchha laga aapko padh kar.badhayi.
ReplyDeleteBahut bahut khoobsoorat gazal..kamal hai!
ReplyDeleteखूबसूरत यकीन को खूबसूरत अंदाज़ में प्रस्तुत किया है आपने।
ReplyDeleteबधाई।
कर लो चाहे कुछ भी पर ये यार नहीं कर पाओगे ।
ReplyDeleteकागज की कश्ती से सागर पार नहीं कर पाओगे ॥
सही है, क़ागज़ की कश्ती से सागर तो पर नहीं ही कर सकते।
ख़ूबसूरत ग़ज़ल।
छाती पर पत्थर ....?
ReplyDeleteतौबा ....तस्वीर ही लगा देते उस पत्थर की .....
इन्तजार है ये इनकार इज़हार में बदल जाये .....!!
बहुत खूब ....!
हीर जी , वैसे तो कहावत में दिल पर या फिर कलेजे पर पत्थर रखा जाता है ... पर यहाँ कविता की खातिर मैंने थोडा सा बदल दिया है ...
ReplyDeletebahut khub bhai saheb...
ReplyDeletemaza aa gaya....
आँसुओं को पीकर मैंने, छाती पर पत्थर रखकर
ReplyDeleteजैसे किया है वैसे तुम, इंतजार नहीं कर पाओगे.
सैल भाई,
मुखड़ा बहुत कमाल का. अंतरों पर और मेहनत करो. आपकी
यह रचना मुझे बहुत प्यारी लग रही है.
bhav aur flow dono ke taur pe matla achha laga..baki sher aap se kuch waqt aur mangte hain apni behtari ke liye aisa mujhe laga.. :)
ReplyDeleteसागर के उस पार ही गर ज़िन्दगी खडी हो
ReplyDeleteतो कागज़ की कश्ती का क्या है
पानी पे भी चल जाओगे
प्रेम जी, आपकी यह पंक्ति -
ReplyDelete"जैसे किया है वैसे तुम, इंतज़ार नहीं कर पाओगे"
बहर पर खरा नहीं उतर रहा है ...
पर फिर भी सुझाव के लिए धन्यवाद, उम्मीद है आगे भी इसी तरह सुझाव देते रहेंगे ...
स्वप्निल जी, सुझाव के लिए शुक्रिया ...
ReplyDeleteपर वो आप एक कहावत जानते हैं ना, अपना चेहरा हर किसी को सुन्दर दीखता है ... गलती अगर है तो वह कोई दूसरा ही ढूँढकर निकाल सकता है ... आप ने बाकि शेर की बात की है तो ज़रा उन गलतियों पर भी ऊँगली रख देते तो और बेहतर होता ...:)
रश्मि जी, इस शेर में 'कागज की कश्ती' से मेरा इशारा किताबी ज्ञान से है, और सागर यहाँ जीवन सागर है ... कहने का मतलब है कि सिर्फ किताबी ज्ञान के सहारे कोई भी जीवन के उतार चढाव को पार नहीं कर सकता है ... उम्मीद है अब मैं अपनी बात रख पाया हूँ ...
ReplyDeleteमक्ता और मत्ला खास पसंद आया
ReplyDeleteदारुन दादा............एकेबरे फाटा फाटी !!
ReplyDeleteबहुत आनन्द आ गया आपकी रचना पढ़कर.
ReplyDeleteBAHUT KHUB
ReplyDeleteBADHAI AAP KO IS KE LIYE
ji, ab aapki baat spasht hai
ReplyDeleteकागज़ की कश्ती से पार नहीं कर पाओगे ...
ReplyDeleteअर्थ स्पष्ट करने के बाद कविता /ग़ज़ल का अर्थ ही बदल गया ...
आएगा एक दिन शैल तो इनकार नहीं कर पाओगे ...
हौसला और आत्मविश्वास अच्छा लगा ...बना रहे ...!!
ग़ज़ल बहुत अच्छी लगी विशेषतः
ReplyDeleteकर लो चाहे कुछ भी पर ये यार नहीं कर पाओगे ।
कागज की कश्ती से सागर पार नहीं कर पाओगे॥
बधाई
लाजवाब है
ReplyDeleteबहुत खूब।
ReplyDeleteबहुत बढ़िया सम्प्रेषण के लिए शुभकामनायें
ReplyDeleteबहुत सुंदर
ReplyDeleteवाह...बहुत खूब
ReplyDeleteवाह ... सच है काग़ज़ की कश्ती से सागर पार नही होता ... साथ में हॉंसला और जज़्बा भी होना चाहिए ....
ReplyDeleteaapke blog par pahlee var hee aana hua .accha laga gazal bhee bahut pasand aaee...........
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