कितना मज़ा आता यदि हर कोई अपने ब्लॉग का नाम अपनी उपजीविका के अनुसार रखता .... इस पर मैंने बहुत सोचा ... और कुछ नाम आपके सामने हाज़िर है ... ज़रा आप भी अपने दिमाग पर जोर डालिए ... मुझे यकीन है आप भी ऐसे कई नाम बता सकते हैं ...
चूँकि मैं एक भूवैज्ञानिक हूँ शुरुआत भूवैज्ञानिक से ही होनी चाहिए ...
ब्लॉग्गिंग की दुनिया में अपने अपने धर्मो को श्रेष्ठ बताने वाले बहुत मिलेंगे । कई ऐसे हैं जो हिंदुत्व की प्रशंसा करते रहते हैं, कुछ इस्लाम की तो कुछ ईसाई धर्म की । कई तो ऐसे भी हैं जो ये कहने से नहीं चुकते हैं कि हमारा धर्म दुसरे धर्मों से अच्छा है । कई लोग दुसरे धर्मों की बुराईयां भी ढूंढ निकालते हैं ।
मेरायह माननाहैकिहरधर्म/मज़हबमेंकुछअच्छीबातेंतोकुछबुरीबातेंहोतीहै।हमेंचाहिएकिहमअच्छीबातोंकोअपनायेऔरबुरीबातोंकोत्यागदें।इसीमेंमानवजातीकीभलाईहै।परकोईभीअपनेधर्ममेंकुछगलतदेखही नहींपाताहै।यायूँकहियेकि देखकरभीदेखनानहींचाहताहै। मनमेंडर, कियदिहममानलेंकिहमारेधर्ममेंकोई ऐसी बातहै जो अच्छीनहींहै, तोहमदूसरोंकेसामने, अपनोंकेसामनेभी, छोटेपड़जायेंगे, हेयहोजायेंगे।परदरअसलहोगाउल्टा।यदिहरकोईअपनेधर्मसेखोटीबातकोनिकाल दे, तोज़रासोचिये, किहरधर्मकितनासुधरजायेगा।
होसकताहैकिकिसीकोकुरान, bible याफिरगीताकिबातेंनपताहो, तोउससेक्यायेसिद्धहोजाताहै, किउसकेपासदिमागनहींहै, या फिर उसके पास जो भी ज्ञान है (जैसे कि वो एक डॉक्टर हो सकता है या फिर एक इंजिनियर या वैज्ञानिक) वो व्यर्थ है ?
हम स्कूल जाते हैं, कॉलेज, फिर विश्व विद्यालय । स्नातक बनते हैं, स्नातकोत्तर उपाधि ग्रहण करते हैं, कई तो डॉक्टरेट भी करते हैं, और फिर जिंदगीभर अन्धविश्वास का गुलाम बनकर जीते हैं । फिर पढाई में इतने पैसे, इतना प्रयास, इतना वक्त व्यय करते हैं, वो किसलिए । उससे तो अच्छा है हम अनपढ़ ही रहें । कम से कम इतने सारे पैसे, वक्त और कोशिश तो बच जायेंगे ।
फिर हम अपना सारा वक्त देते हैं अपनी देश की सरकार की गलतियाँ निकालने में । ये है हमारा योगदान अपने समाज को । क्या बात है !
आज फिर हाज़िर हूँ आप सबके सामने मेरे जीवन का एक किस्सा लेकर ।
किस्सा सुनाने से पहले मैं आप सबको मेरे जन्मस्थान ‘जोड़ा’ के बारे में कुछ बता दूँ । बताना जरूरी भी है । जोड़ा नामक उपनगर, उड़ीसा राज्य के केन्दुझर जिले में बसा हुआ है । उड़ीसा और झाड़खंड के सीमा से लगभग २० किमी दक्षिण में स्थित यह उपनगर लौह तथा मंगानिज़ अयस्क के कारण प्रसिद्द है । यहाँ टिस्को के अलावा कई और निजी कम्पनिओं के खान, कारखाना इत्यादि है । यह इलाका घने जंगलों से घिरा हुआ है जिसमें कई प्रकार के जंगली जानवर पाए जाते हैं । इन जंगली जानवरों में से एक हैं सबसे बड़ा स्थलचर प्राणी ‘हाथी’, जो उड़ीसा के केन्दुझर, सुंदरगढ़, मयूरभंज, सम्बलपुर, बरगढ़, अनगुल, सोनापुर, बोलांगीर जिले तथा झाड़खंड के पूर्व/पश्चिम सिंघभूम जिलों में बहुतायत में पाए जाते हैं । ये साधारणत झुण्ड में चलते हैं पर कभी कभार इनमे से कुछ अपने दल से निकल कर अकेले भी इधर-उधर चरने लग जाते हैं और कई बार तो खाद्य के खोज में लोकालय में भी आ जाते हैं । जोड़ा शहर पहाड़-जंगलों के बीच बसा हुआ है । अकसर ऐसा होता है, खास कर गर्मी या बारिश के दिनों में, कि हाथी खाने कि तलाश में पहाड़ से उतरकर शहर में आ जाते हैं और खेत से अनाज या किसी के बगीचे के पेड़ से फल इत्यादि खा जाते हैं । पहाड़ के आस पास बसे आदिवासियों के बस्ती पर आक्रमण कर उनका घर तोड़ देना, उनके अनाज खा लेना, ऐसी बातें अकसर होती रहती है । हाथी के आक्रमण से कई लोग अपने जान भी गवां बैठते हैं ।
आज का किस्सा ऐसे ही एक घटना से जुड़ा हुआ है ।
बात उन दिनों की है जब मेरी शादी हुई थी । शादी के बाद, नई दुल्हन और बारातियों सहित हम अपने शहर जोड़ा लौट आये ।
आने के एक दो दिन बाद की बात है, बारिश का मौसम, शाम का समय था, हम सब साथ में बैठ बातें कर रहे थे कि बाहर से कुछ आवाजें आने लगी । हम बाहर जाकर देखें तो पता चला कि एक हाथी जंगल से निकल आया है और हमारे घर के आसपास ही कहीं छुपा हुआ है ।
मुह्हले के लोग अपने अपने घरों से बाहर आ गए थे और चिल्ला चिल्ला कर, या फिर कनस्तर वगैरह बजाकर हाथी को डराने की कोशिश में लगे हुए थे । कुछ लोग तो फटाके भी फोड़ रहे थे हाथी को भगाने के लिए ।
गर्मी के अंत तक पके हुए आम और कठहल की खुशबू दूर दूर तक फ़ैल जाती है । हमारे बगीचे मैं भी चार पांच आम के और दो तिन कठहल के पेड़ हैं जो पके हुए फलों से लदे हुए थे । उनका सुगंध उस हाथी को हमारे बगीचे तक ले आया था ।
चिल्लाते, भागते लोगों से परेशान होकर हाथी, शाम के अँधेरे का फायदा उठाते हुए इधर उधर छुपता जा रहा था । तभी किसीने दौड़ते हुए आकर खबर दी, कि हाथी भागते हुए, हमारे घर के पिछवाड़े जो बगीचा है, उस बगीचे में घुस गया है ।
हम उस तरफ दौड़े । उस बगीचे में जो कठहल और आम का पेड़ है, ज़रूर उसीके लिए हाथी घुस आया होगा । घर के पीछे एक दरवाज़ा है जो बगीचे में खुलता है । हम सब उसी दरवाज़े की तरफ बढे । हम मतलब, मैं, मेरा भाई, मेरी नव विवाहित पत्नी, मेरी माँ, और पिताजी । हम सब दरवाज़े के पास पहुँच गए और ये सोचने लगे कि अब दरवाज़े को खोलकर देखा जाये । पर डर भी लग रहा था । हाथी बगीचे में कहाँ खड़ा है ये पता नहीं था । खैर, डरते डरते आखिर मैंने ही पहल लिया दरवाज़ा खोलने का । जैसे ही मैंने दरवाज़ा खोला, तो देखा कि हाथी एकदम मेरे सामने खड़ा है । उस आधे अँधेरे में भी उस विशालकाय दंतैल हाथी को एकदम सामने खड़े देख मेरी रूह काँप गयी। उसका वो विशाल काला देह और उसपर दो बड़े बड़े दांत, एक पल को ऐसा लगा जैसे कोई दानव खड़ा हो सामने । बस वो एक पल था, और मैंने देर ना करते हुए झट से दरवाज़ा बंद कर दिया । सब पूछने लगे कि क्या हुआ । मैंने उन्हें बताया कि हाथी दरवाज़े के एकदम पास, बस सामने ही खड़ा है । मेरी पत्नी मुझसे बोली कि उसे भी हाथी देखना है । पर दरवाज़ा फिरसे खोलके देखना खतरे से खाली नहीं था । हाथी लोगों के डर से वहां छिपा हुआ था, अगर उसे समझ में आ जाता कि इस दरवाज़े के पीछे से कुछ लोग उसे देख रहे हैं, वो बौखला कर आक्रमण कर सकता था । उस दरवाज़े को तोडना उसके लिए कोई बड़ी बात नहीं थी । इसलिए फिरसे दरवाज़ा खोलना एक जोखिम भरा काम था ।
हम दरवाज़ा बंद ही रखें । और कपडे का गोला बनाकर, उसपर मिटटी का तेल छिडककर, आग लगा दी गयी और उसे दरवाज़े के ऊपर से उस पार फेंका गया, ताकि हाथी उस डर से वहां से हट जाये । खैर, हाथी कुछ कठहल तोड़ कर खाया, और फिर जंगल के लिए निकल लिया । लोगों की आवाजें काफी देर तक आती रही । हम सब उसके बाद भी काफी देर तक उसी बारे में बातें करते रहें । सुबह पता चला कि हाथी कई लोगों के बगीचे में घुसकर आम, कटहल, केला जो भी मिला खाया था और पेट भरने के बाद जंगल लौट गया था । हम खुदको खुशकिस्मत समझ रहे थे कि हाथी ने घर तोड़ने का गलत फैसला नहीं लिया था ।
इसके बाद भी ऐसा कई बार हुआ कि जंगल से निकलकर हाथी शहर में घुस आया । पर ऐसा केवल एकबार ही हुआ कि हाथी को इतने करीब से देखा था ।