सोचकर गया था कि बस महीने भर का काम है, निपट जायेगा । पर देखते देखते दो महीने हो गए । इन दो महीनों में फुर्सत नहीं मिली कि ब्लॉग जगत में आ पाऊँ ।
आज फिर समय मिला है कि बैठूं, कुछ पोस्ट करूं और सबके पोस्ट को पढ़ पाऊँ । तो लीजिए आपके लिए प्रस्तुत है ये रचना । उम्मीद है आप सबको पसंद आयेगी ।
१)
सुबह से बारिश हो रही है
हवा, मिटटी और मौसम,
मन भी गीला गीला सा ।
इस भीगी शाम का
क्या करूं
एकबार बता दो,
आ जाओ ।
२)
रास्ते के बाज़ू में,
पानी के छींटे,
जैसे कि तुम आये
और चले गए,
जीवन में कुछ
यादों के धब्बे छोड़कर ।
३)
उसने पुछा
"रुक क्यूँ नहीं जाते?"
मैंने कहा
"बारिश आ रही है"
अब, उसे कैसे कहूँ
मौसम तो बस बहाना है ।
स्वागत है ..... क्या हाल है जनाब ? खूब भिगोया ... साहब...मान गए ! ऐसे ही लगे रहिए !
ReplyDeleteखूबसूरती से लिखे एहसास ...सुन्दर अभिव्यक्ति
ReplyDeletemujhe to laga indraneel ji kahieen kho to nahi gaye...chaliye shukra hai aap wapas aaye aur aaye bhi ek behtareen rachna ke saath...
ReplyDeletebahut badhiya sail bhai!!
ReplyDeleteस्वागत !आपकी वापसी! वाह सुन्दर रचनायें!
ReplyDelete.
ReplyDeleteस्वागत है आपकी वापसी का।
सुन्दर रचना !
.
Teeno rachanayen behad sundar hain! Antme mausam to kewal bahana hai!
ReplyDeleteबहुत उम्दा!
ReplyDeleteजैसे कि तुम आये
ReplyDeleteऔर चले गए,
जीवन में कुछ
यादों के धब्बे छोड़कर
बहुत सुन्दर!
...यहां आते ही आपने सुंदर श्ब्दों की बौछार कर दी!...मन प्रसन्न हो गया!...बधाई!...शुभकामना के लिए हार्दिक धन्यवाद!
ReplyDeleteइस गीले शाम का
ReplyDeleteक्या करूं...... kahna mushkil hai
वाह क्या बात है……………मौसम का रंग उतर आया है।
ReplyDeleteस्वागत है। बहुत अच्छी लगी रचना। ज़िन्दगी के मौसम एक से कहाँ रहते हैं
ReplyDeleteशुभकामनायें
कृ्प्या मेरा ये ब्लाग भी देखें
http://veeranchalgatha.blogspot.com/
धन्यवाद।
बढ़िया प्रस्तुति..
ReplyDeleteचिट्ठाजगत की बत्ती जली मिली ... चिट्ठाजगत टीम को बधाई.
आप सबको अनेक धन्यवाद रचना को सराहने के लिए ... ब्लॉग जगत से दूर रहकर मुझे भी कुछ सूना सा लग रहा था ...
ReplyDeleteबहुत अच्छी रचना के लिए शुभकामनायें !
ReplyDeleteकविताएं तो बहुत अच्छी हैं ...मन नहीं, सीधे दिल पर असर करती हैं।...बधाई।
ReplyDeleteइस भीगी शाम का
ReplyDeleteक्या करूं
एकबार बता दो,
आ जाओ।
सही है बंधू!
बूंदे एक-दूसरे के साथ हैं, और आप अकेले!
बहुत नाइंसाफी है!
आशीष
--
प्रायश्चित
बहुत उम्दा.. बढ़िया भावाव्यक्ति .. लिखते रहिये ....
ReplyDeleteइन्द्रनील जी,
ReplyDeleteकमबैक शानदार रहा। तीनों रचनायें एक से बढ़कर एक।
लगता है इन्द्रनील जी दो महीने चुप रहे तो परिपक्व होकर लौटे। बहुत सुंदर अभिव्यक्तियां हैं।
ReplyDeleteराजेश जी, आपके प्रशंसा पत्र के लिए अनेक धन्यवाद !
ReplyDeleteरास्ते के बाज़ू में,
ReplyDeleteपानी के छींटे,
जैसे कि तुम आये
और चले गए,
जीवन में कुछ
यादों के धब्बे छोड़
sabhi bahut khoobsurat hai ,kabhi kabhi bahane ke sahare hi chalna padta .
बहुत ही अच्छी रचनाएँ..... प्रभावी अभिव्यक्ति....
ReplyDeleteचित्र बड़ा ही प्यारा लगाया है आपने.....
भाई वाह...छोटे छोटे शब्दों में बेहद खूबसूरत अहसास पिरो दिए हैं आपने...कमाल की रचना...लिखते रहें...क्यूँ की आप जब लिखते हैं कमाल करते हैं....
ReplyDeleteनीरज
नीरज जी, क्यूँ शर्मिंदा कर रहे हैं ....
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