राही तू बस चलता चल ।
कलका देखना तू कल ॥
गांव, शहर और मफ्सल ।
पीछे छोड़, आगे बढ़ चल ॥
कोई सोये या जागे ।
सर पे धुन है बढ़ आगे ॥
राही पथ पे कितने छांव ।
फिरभी न रुकते हैं पांव ॥
पर्वत या नदीया नाले ।
पैरों में पढते छाले ॥
लेकर साथियों को बढ़ ।
सामने नज़रों को गढ़ ॥
धरती उठेगी थर्रा ।
रोशन हो ज़र्रा ज़र्रा ॥
बाज़ी पे लगा दे जान ।
छोड़ क़दमों के निशान ॥
राही ना मंज़िल कोई ।
आँखें थकी न सोई ॥
गर्मी, सर्दी या बरसात ।
शाम, सुबह या दिन रात ॥
पग में चुभते है कांटे ।
किस्मत ने है दुःख बांटे ॥
करके बाधाओं को पार ।
सहके नाकामी की मार ॥
राही चलना अपना काम ।
रुकना कहाँ, क्या मुकाम ॥
नभ हो, स्थल हो, या के जल ।
राही तू बस चलता चल ...
राही तू बस चलता चल ॥
प्रेरक रचना ....आभार
ReplyDeleteसुंदर रचना...बढ़िया भाव से सजाया है आपने इस रचना को..बधाई
ReplyDeleteराही तू बस चलता चल
ReplyDeleteरे राही ,रे राही रे
धीरे चल
पायेगा तू हर आसमां
दर कदम दर चल
Sahi raah Chalte-chalte manjil mil hi jaati hai..
Bahut sundar...
राही तू बस चलता चल । सच है अगर चलेंगे नहीं, तो मंजिल कैसे मिलेगी भला....
ReplyDeleteबहुत ही खुबसूरत रचना...
मेरे ब्लॉग पर इस बार
सुनहरी यादें ....
बहुत सुन्दर प्रस्तुति...........प्रेरणादायक
ReplyDeleteInspiring one...
ReplyDeleteप्रेरणा देती अच्छी रचना ..
ReplyDeleteBeautiful couplets !
ReplyDeleteकिस्मत ने है दुःख बांटे ॥
ReplyDeleteकरके बाधाओं को पार ।
सहके नाकामी की मार ॥
राही चलना अपना काम ।
सुन्दर जीवन सूत्र ..
बेहतरीन रचना
चलना ही जीवन की निशानी है ..इसलिए चलता ही चाल ..
ReplyDeleteप्रेरक कविता ...!
बहुत खूब।
ReplyDeleteचलना ही जिन्दगी है।
’सफ़र’ फ़िल्म में मन्ना डे साहब का गाना - तुझको चलना होगा - same sentiments.
well said, Indranil ji.
नदिया चलती रहती है तभी नदिया है अगर रुक जाये तो तालाब। बहुत सुन्दर प्रेरक रचना है। बधाई।
ReplyDeleteबहुत प्रेरक .... सच है अपना कर्म करते जाना चाहिए ...
ReplyDeleteबहुत ही प्रेरणा देती हुई पंक्तियां हैं इंद्रनील भाई ..शुभकामनाएं
ReplyDeleteचलते रहिए।
ReplyDelete3/10
ReplyDeletetime pass
Aap to antardhan ho gaye the indraneel babu..badhiya rachna hai rachnatmak urja liye...navratri ki shubhkamnayen
ReplyDeleteबिल्कुल सही कहा कि राही तू बस चलता चल
ReplyDeleteकब से दरवाज़ों को दहलीज़ तरसती है ‘निज़ाम’
कब तलक़ गाल को कोहनी पे टिकाये रखिए
राही तू बस चलता चल....Just follow this thought !
ReplyDeleteइन्द्रनील, आप्के भीतर प्रतिभा है लेकिन उसका पूरा उपयोग आप नही कर रहे है. थोडी मेहनत और करे.
ReplyDeleteइन्द्रनील, आप्के भीतर प्रतिभा है लेकिन उसका पूरा उपयोग आप नही कर रहे है. थोडी मेहनत और करे.
ReplyDeleteसंजय जी, आपका सुझाव ध्यान रखूँगा ... शुक्रिया !
ReplyDeletebahut hi prerak avam prabhavshali kavita.atyant hi utsah vardhak.
ReplyDeleteबहुत सुंदर सकारात्मक और प्रेरणादायी पोस्ट
ReplyDeleteenergetic creation ..well done sir ji
ReplyDeleteबहुत ही प्रेरणादायी प्रस्तुति
ReplyDeletewww.srijanshikhar.blogspot.com पर ' क्यों तुम जिन्दा हो रावण '
बस चलता चल - बहुत सुंदर!
ReplyDeleteबहुत सुन्दर कविता !
ReplyDeleteआप सबका आभारी हूँ ... उत्साह वर्धन के लिए शुक्रिया !
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