डूबते को तिनके का सहारा ही काफी है, जैसे किस्मत के मारो को भाग्य रेखा का । काश तिनके बचा पाते, डूबने से बहुत सुन्दर. चंद शब्दों में आम आदमी की व्यथा कह दी आपने तो. विजयादशमी की अनन्त शुभकामनायें.
अभी-अभी आपका प्रोफाईल देखा, तो पता चला कि आप पेशे से भूवैज्ञानिक हैं। यह जानकर प्रसन्नता हुई। यदि आप साइंस ब्लॉगर्स असोसिएशन http://sb.samwaad.com/ से जुड़ें, तो हमें अतीव प्रसन्नता होगी। और हाँ, कृपया आप मेरे मेल आई डी zakirlko@gmail.com पर सम्पर्क करने का कष्ट करें, क्योंकि आप तस्लीम चित्र पहेली के विजेता चुने गये हैं।
बहुत सुन्दर भावाभिव्यक्ति...
ReplyDelete5.5/10
ReplyDeleteउत्कृष्ट सुन्दर रचना
अरे बहुत खूब...सच है ये तो...
ReplyDeleteमेरे ब्लॉग पर इस बार ....
बहुत ही अच्छी कविता !
ReplyDeleteकम शब्दों मे सुन्दर भवाभिव्यक्ति !
बेहद सुन्दर भाव समन्वय्।
ReplyDeletevery touching expressions..
ReplyDeleteregards
अच्छा लगा बिल्कूल सीधी और सही बात कही
ReplyDeleteसुंदर प्रस्तुति....
ReplyDeleteआपको
दशहरा पर शुभकामनाएँ ..
डूबते को तिनके का
ReplyDeleteसहारा ही काफी है,
जैसे किस्मत के मारो को
भाग्य रेखा का ।
काश तिनके बचा पाते,
डूबने से ।
यथार्थ को पेश किया है आपने!..शुभ नवरात्री!
Read more: जज़्बात, ज़िन्दगी और मै http://indranil-sail.blogspot.com/#ixzz12Wul8kcL
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डूबते को तिनके का
ReplyDeleteसहारा ही काफी है,
जैसे किस्मत के मारो को
भाग्य रेखा का ।
काश तिनके बचा पाते,
डूबने से
बहुत सुन्दर. चंद शब्दों में आम आदमी की व्यथा कह दी आपने तो.
विजयादशमी की अनन्त शुभकामनायें.
जीवन के यथार्थ का
ReplyDeleteनपे-तुले शब्दों में
अतुलनीय चित्रण ...
वाह !!
बहुत सुंदर और कमाल की अभिव्यक्ति!
ReplyDeletebahut badhiya sail bhai!!
ReplyDeleteअच्छा है जीवन को बस चंद शब्दों में जान लेना
ReplyDeleteसैल भाई, क्षणिकाएँ गागर में सागर भरने के लिए जानी जाती हैं और आप इस विधा में एकदम परफेक्ट हो।
ReplyDeleteThis comment has been removed by the author.
ReplyDeleteअभी-अभी आपका प्रोफाईल देखा, तो पता चला कि आप पेशे से भूवैज्ञानिक हैं। यह जानकर प्रसन्नता हुई। यदि आप साइंस ब्लॉगर्स असोसिएशन http://sb.samwaad.com/ से जुड़ें, तो हमें अतीव प्रसन्नता होगी।
ReplyDeleteऔर हाँ, कृपया आप मेरे मेल आई डी zakirlko@gmail.com पर सम्पर्क करने का कष्ट करें, क्योंकि आप तस्लीम चित्र पहेली के विजेता चुने गये हैं।
bahut hi sundar rachna1
ReplyDeleteअति-सुन्दर रचना .बड़े चलो !!
ReplyDeleteवो हाथ की रेखाएं
ReplyDeleteदिखाता फिरा उम्र भर,
जानने के लिए
भविष्य अपना ।
और उसका अतीत
उभरता चला,
उसके चेहरे की
झुर्रियों में ।
लाजवाब। बधाई इस रचना के लिये।
दोनों बातें लाजवाब हैं। ऐसा होना भी बेबसी का ही एक रूप है - निर्बल के बल राम!
ReplyDeleteकाश तिनके बचा पाते डूबने वाले को.....
ReplyDeletekafi achcha laga.
ReplyDeleteलाजवाब हैं दोनों ही रचनाएँ ... बहुत प्रभावी ....
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