Indranil Bhattacharjee "सैल"

दुनियादारी से ज्यादा राबता कभी न था !
जज्बात के सहारे ये ज़िन्दगी कर ली तमाम !!

अपनी टिप्पणियां और सुझाव देना न भूलिएगा, एक रचनाकार के लिए ये बहुमूल्य हैं ...

Oct 28, 2010

क्यूँ झगडा होता है ?

आज मैं आप सबके समक्ष एक ऐसी पोस्ट पेश करने जा रहा हूँ जो मेरे अब तक के सारे पोस्ट से थोडा 'हट के' है । मैं आज एक पिता-पुत्री संवाद के बारे में लिखूंगा जो काल्पनिक भी हो सकता है और सच भी । ज़रूरी यह नहीं है की यह संवाद काल्पनिक है या सच, ज़रूरी है इसका निहितार्थ । उम्मीद है इसके द्वारा कहीं न कहीं मैं आप सब के मन का calling bell दबा पाऊँ ... :)
दूरदर्शन में दिखाई जा रही द्वितीय विश्व युद्ध के दृश्य देखते हुए पुत्री अपने पिता से प्रश्न करती है -
पुत्री: बाबा, ये क्या हो रहा है ?
पिता: बेटी, ये युद्ध का दृश्य दिखाया जा रहा है
पुत्री: ये युद्ध क्या होता है ?
पिता: जब दो देश लढाई झगडा करते हैं तो युद्ध होता है
पुत्री: पर ये टीवी पर क्या  दिखा रहे हैं ?
पिता: देखो किस तरह दुश्मन के हवाई जहाज से बम गिर रहा है और फुट रहा है
पुत्री: तो क्या इससे लोग मर जाते हैं ?
पिता: हाँ, अगर बम उनके ऊपर आकर गिरे तो वो कैसे बचेंगे?
पुत्री: ओहो, इससे तो बहुत लोग मर जाते होंगे ... कितनी तकलीफ होती होंगी ...
पिता: हाँ बेटी, हजारों लोग मर जाते हैं, लाखों लोग घायल हो जाते हैं, बेघर हो जाते हैं...
पुत्री: फिर ये लोग युद्ध क्यूँ करते हैं बाबा?
पिता: क्यूंकि उनमे झगडा हो जाता है बेटी
पुत्री: क्यूँ झगडा होता है ?
पिता: अब झगडा तो किसी भी बात पे हो सकता है, है न ? जैसे की तुम्हारे दोस्त के साथ कभी कभी झगडा हो जाता है ...
पुत्री: हाँ, वो तो है ....... पर ....... पर ...
पिता: पर क्या बेटी?
पुत्री: पर हम एक दुसरे को मारते नहीं है बाबा । अगर हम झगडा करते हैं तो, वो मुझसे बोलती नहीं है, मैं उससे नहीं बोलती हूँ । फिर कुछ देर बाद हम फिर से दोस्ती कर लेते हैं । एक झगड़ने वाले देश अपने अपने देश में क्यूँ नहीं रहते, फिर बाद में जब गुस्सा कम हो जाय तो फिर से दोस्ती कर सकते हैं, है न ?
अब पिता के पास जवाब देने के लिए कुछ नहीं बचा था ... बस इतना ही कह पाया ...
- काश ये सोच हर इन्सान के दिमाग में होती बेटी ... काश ....

चित्र  साभार गूगल सर्च

Oct 15, 2010

रेखाएं

१.

वो हाथ की रेखाएं
दिखाता फिरा उम्र भर,
जानने के लिए
भविष्य अपना
और उसका अतीत
उभरता चला,
उसके चेहरे की
झुर्रियों में

२.
डूबते को तिनके का
सहारा ही काफी है,
जैसे किस्मत के मारो को
भाग्य रेखा का
काश तिनके बचा पाते,
डूबने से



Oct 9, 2010

राही तू बस चलता चल

राही तू बस चलता चल 

कलका देखना तू कल 

गांव, शहर और मफ्सल 

पीछे छोड़, आगे बढ़ चल 

कोई सोये या जागे 

सर पे धुन है बढ़ आगे 

राही पथ पे कितने छांव 

फिरभी न रुकते हैं पांव 

पर्वत या नदीया नाले 

पैरों में पढते छाले 

लेकर साथियों को बढ़ 

सामने नज़रों को गढ़ 

धरती उठेगी थर्रा 

रोशन हो ज़र्रा ज़र्रा 

बाज़ी पे लगा दे जान 

छोड़ क़दमों के निशान 

राही ना मंज़िल कोई 

आँखें थकी न सोई 

गर्मी, सर्दी या बरसात 

शाम, सुबह या दिन रात 

पग में चुभते है कांटे 

किस्मत ने है दुःख बांटे 

करके बाधाओं को पार 

सहके नाकामी की मार 

राही चलना अपना काम 

रुकना कहाँ, क्या मुकाम 

नभ हो, स्थल हो, या के जल 

राही तू बस चलता चल ...
राही तू बस चलता चल 


Oct 4, 2010

कुछ पानी के छींटे


सोचकर गया था कि बस महीने भर का काम है, निपट जायेगा पर देखते देखते दो महीने हो गए इन दो महीनों में फुर्सत नहीं मिली कि ब्लॉग जगत में आ पाऊँ
आज फिर समय मिला है कि बैठूं, कुछ पोस्ट करूं और सबके पोस्ट को पढ़ पाऊँ तो लीजिए आपके लिए प्रस्तुत है ये रचना उम्मीद है आप सबको पसंद आयेगी

१)
सुबह से बारिश हो रही है
हवा, मिटटी और मौसम,
मन भी गीला गीला सा
इस भीगी शाम का
क्या करूं
एकबार बता दो,
आ जाओ

२)
रास्ते के बाज़ू में,
पानी के छींटे,
जैसे कि तुम आये
और चले गए,
जीवन में कुछ
यादों के धब्बे छोड़कर

३)
उसने पुछा
"रुक क्यूँ नहीं जाते?"
मैंने कहा
"बारिश आ रही है"
अब, उसे कैसे कहूँ
मौसम तो बस बहाना है

 

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