1.
सिरहाने चांदनी रखकर
सो गया था मैं,
रातभर ...
सोने नहीं दिया
ख्वाबों के उजाले ।
2.
बहुत उदास होकर
आँखें बंद कर ली मैंने,
जैसे थक गई हो आँख
उजालों के शोर से ।
3.
तुम जो कल
ख्वाबों में आ गई थी,
मेरी अँधेरी रात के बदन पर
लग गए थे
कुछ उजालों के दाग ।
सिरहाने चांदनी रखकर
सो गया था मैं,
रातभर ...
सोने नहीं दिया
ख्वाबों के उजाले ।
2.
बहुत उदास होकर
आँखें बंद कर ली मैंने,
जैसे थक गई हो आँख
उजालों के शोर से ।
3.
तुम जो कल
ख्वाबों में आ गई थी,
मेरी अँधेरी रात के बदन पर
लग गए थे
कुछ उजालों के दाग ।
उजाला स्प्शल :)
ReplyDeleteपहले वाले में ’ने’ जोड़ कर देखें इन्द्रनील जी, शायद रह गया।
धन्यवाद !
Deleteअँधेरा, ख्वाब और उजाले के समिश्रण से सुंदर छटा है इस प्रस्तुति में.
ReplyDeleteकाफी समय बाद परन्तु बहुत सुंदर,
धन्यवाद !
Deleteवाह..... बहुत खूब!
ReplyDeleteधन्यवाद !
Deleteउजाले के यह रंग बहुत अच्छे लगे सर!
ReplyDeleteसादर
धन्यवाद !
Delete
ReplyDeleteदिनांक 11/03/2013 को आपकी यह पोस्ट http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर लिंक की जा रही हैं.आपकी प्रतिक्रिया का स्वागत है .
धन्यवाद!
धन्यवाद !
Deleteएहसासों का शब्दमाला
ReplyDeleteधन्यवाद !
Deleteसार्थक रचना .....
ReplyDeleteआप भी पधारो स्वागत है ...
http://pankajkrsah.blogspot.com
very nice...शुभकामनायें
ReplyDeleteBeautiful lines............
ReplyDeleteआज कल आप ब्लॉग छोडकर फोटोग्राफी में ही व्यस्त हैं, लेकिन कुछ लिखा पढ़ने का भी इंतज़ार है....
ReplyDeleteAmazing blog and very interesting stuff you got here! I definitely learned a lot from reading through some of your earlier posts as well and decided to drop a comment on this one!
ReplyDeleteबहुत अच्छी रचना है।
ReplyDelete2अंश की अन्तिम पंक्ति " उजालों के शोर से " में यदि उपयुक्त लगे तो 'शोर' के स्थान पर 'चमक' लिखा जाए तो शायद उपयुक्त होगा