कमज़ोर न्याय हुआ, ताकतवर भ्रष्टाचार ।
फैला है चारों तरफ आज कैसा अन्धकार ॥
पूछते हैं जाति फिर हाथ मिलाते हैं अब ।
पानी मिले ना मिले शराब पिलाते हैं अब ॥
अब तो रिश्तों के भव्य महल सारे ढह गए ।
भरोसे की छत न रही, बस ये बाड़े रह गए ॥
आतंक के साये तले अपराधी पल रहे ।
मज़हबी उन्माद से अब देशवासी जल रहे ॥
एकता का गान अब कैसे कोई गायेगा ।
दिल में देशभक्ति का जज़्बा कौन लाएगा ॥
‘सारे जहाँ से अच्छा’ कैसे बनेगा ये फिर ।
कब जगेगी आत्मा, निडर कब उठेगा सिर ॥
अवतरित जाने कब होगा कृष्ण या के राम ।
करेगा फिर पाप पर कुठाराघात परशुराम ॥
अब तो राख से ही चिनगारी निकालेंगे हम ।
अपना गरम श्वास से कोहरा हटाएंगे हम ॥
राह दिखे ना दिखे कदम चलाते रहो ।
दिल में उम्मीद का एक दीप जलाते रहो ॥
है घना अँधेरा पर आयेगा सूरज कभी ।
जोड़कर दरारें फिर बनेगा महल तभी ॥
चित्र साभार गूगल सर्च
इसी उम्मीद में जी रहा हूँ
ReplyDeleteहमसफर हैं।
ReplyDeleteअच्छे देशभक्त विचार...साथ ही खड़ा हूँ आपके!!
ReplyDeleteआप सबको धन्यवाद जो आपने रचना को सराहा ...
ReplyDeleteबाहर से और अन्दर से, हर तरीके से समर्थन!
ReplyDeleteयह कविता एक संवेदनशील मन की निश्छल अभिव्यक्तियों से भरा-पूरा है
ReplyDeleteबहुत सुन्दर ....आज ऐसे ही जोश की ज़रूरत है
ReplyDeleteबहुत सुन्दर! परशुराम तो चिरंजीवी हैं!
ReplyDeleteसुंदर प्रस्तुति!
ReplyDeleteसारे जहाँ से अच्छा’ कैसे बनेगा ये फिर ।
ReplyDeleteकब जगेगी आत्मा, निडर कब उठेगा सिर ॥
..... jab her vyakti khud ka aahwaan karega , bahut achhi rachna
है घना अँधेरा पर आयेगा सूरज कभी ।
ReplyDeleteजोड़कर दरारें फिर बनेगा महल तभी ॥
bahut hee badhiya sail bhai.
आप सबको अनेक धन्यवाद ... आप लोग आये और हौसला अफजाही किये ...
ReplyDelete@ रश्मि जी
आपने सही कहा है ... अपनी आत्मा को अंदर से जगाना होगा तभी चेतना जागृत होगी ...
बस उसी सूरज का इंतज़ार है !
ReplyDeleteआतंक के साये तले अपराधी पल रहे ।
ReplyDeleteमज़हबी उन्माद से अब देशवासी जल रहे ॥
sahi keha...haliya kashmir iska jeeti jagti misaal hai..
@ पारुल जी,
ReplyDeleteकश्मीर क्यूँ, क्या हमारा ब्लॉग जगत इससे अछुता है ?
Sir ji...bahut achha likhaa hai. AAp ko ab bhi ummeed hai ki ek din sabkuchh theek ho jaayegaa.
ReplyDeleteMay God fulfill your this dream.
@ विरेन्द्र जी
ReplyDeleteउम्मीद नहीं, शायद विश्वास है ... क्यूंकि ये सपना भगवान नहीं हमें खुद पूरी करनी है ... एक न एक दिन तो सबको जागना ही है ... कब तक सोते रहेंगे ...
बहुत सुन्दर संदेश देती सार्थक रचना……………।बधाई।
ReplyDeleteआपकी टिपण्णी के लिए बहुत बहुत शुक्रिया! मैंने दोनों ब्लॉग पर नयी शायरी और कविता पोस्ट की है देखिएगा! आपकी टिपण्णी का इंतज़ार रहेगा!
ReplyDeleteबहुत ही सुन्दर भाव और अभिव्यक्ति के साथ आपने देशभक्त विचार को प्रस्तुत किया है जो बेहद पसंद आया ! बेहतरीन प्रस्तुती!
अच्छी कोशिश है हम आपके साथ है,लगे रहे जी।
ReplyDeleteइन्द्रनील जी,
ReplyDeleteआपके विचार बहुत अच्छे हैं। आपका विश्वास यूं ही जीवित रहे और दिनोंदिन मजबूत हो, शुभकामनायें।
इसी आशा और उमीद पर दुनिया टिकी है .... बहुत प्रभावी रचना ...
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