वक़्त कहाँ है, बैठ के सोचूं
क्या खोया क्या पाया है,
ढल रहा है दिन का सूरज
मुझसे लम्बा साया है।
बस यही हासिल है मेरा
तनहा लम्हा, टूटे ख्व्वाब,
कुछ बेरंग सी तसवीरें,
जीवन के उतार चढ़ाव।
सुबह की किरणें नहीं है
शाम का अँधेरा है।
हँसते चेहरे, हाथ में खंजर
दोस्तों का घेरा है।
अपनों के दिए हुए कुछ
घाव है मेरे खाते में,
सावन के दिन बता गया है
छेद है कितने छाते में।
अक्सर मैंने दिल से बोला
चल मैं हारा, तू जीता।
हँसते हुए कुछ लम्हे बीते
रोता हुआ जीवन बीता।
मेरी खामोशी को मिला
चुभते रिश्ते, बिगड़े बोल।
टूटे अरमानो ने खोले
मेरी कोशिशो के पोल।
चाहत की गुड़िया थी मेरी
ज़िद्द की आंधी तोड़ गई,
जमा किये थे छुट्टे सारे
तेज़ हवाएं फोड़ गई।
फिर भी "सैल" आज मुझे
शिकवा न कोई गिला है।
हर शै को अलग मंज़िल
अलग रास्ता मिला है।।
अपनी कुछ कवितायेँ, कुछ ग़ज़ल, कुछ बात रख रहा हूँ ............... मेरी ज़िन्दगी के कुछ एहसासात रख रहा हूँ
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Indranil Bhattacharjee "सैल"
दुनियादारी से ज्यादा राबता कभी न था !
जज्बात के सहारे ये ज़िन्दगी कर ली तमाम !!
अपनी टिप्पणियां और सुझाव देना न भूलिएगा, एक रचनाकार के लिए ये बहुमूल्य हैं ...
जज्बात के सहारे ये ज़िन्दगी कर ली तमाम !!
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Jul 1, 2021
चल मैं हारा, तू जीता
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आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" रविवार 04 जुलाई 2021 को साझा की गयी है.............. पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
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Deleteआपका बहुत बहुत धन्यवाद मेरी रचना को शामिल करने के लिए
वक़्त कहाँ है, बैठ के सोचूं
ReplyDeleteक्या खोया क्या पाया है,
ढल रहा है दिन का सूरज
बहुत सुन्दर
धन्यवाद उषा जी
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