बहुत दिनों से कुछ भी लिखा नहीं था। कल नींद नहीं आ रही थी तो जेहन में कुछ पंक्तियाँ यूँ ही उभर आईं । रात को उठकर कुछ लिखने की हिम्मत नहीं थी। सो सुबह उठकर सबसे पहले उन्हें लिख डाला कि कहीं भूल न जाऊं।
यादों के लिफाफे से झांकते
कुछ सूखे बेरंग लम्हे,
टूटकर बिखरती पंखुड़ियां;
पीले पड़ चुके कागज़ को
बहुत संभलकर खोलना,
और उन परतों में लिपटी
कुछ पलों को आँख भरकर
एक एक करके चुनना;
फिर सहेजके रख देना,
कि ऐसे ही फिर से किसी दिन,
यूँ ही किसी
अनमनी सी खुशबू
के बुलावे पर
खो जायेंगे।
यादों के लिफाफे से झांकते
कुछ सूखे बेरंग लम्हे,
टूटकर बिखरती पंखुड़ियां;
पीले पड़ चुके कागज़ को
बहुत संभलकर खोलना,
और उन परतों में लिपटी
कुछ पलों को आँख भरकर
एक एक करके चुनना;
फिर सहेजके रख देना,
कि ऐसे ही फिर से किसी दिन,
यूँ ही किसी
अनमनी सी खुशबू
के बुलावे पर
खो जायेंगे।
सुंदर स्वप्निल रचना।
ReplyDeleteधन्यवाद सुब्रमनियन जी
Deleteआज की ब्लॉग बुलेटिन जन्मदिन भी और एक सीख भी... ब्लॉग बुलेटिन मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
ReplyDeleteबहुत बहुत धन्यवाद आप सबको..... ब्लॉग बुलेटिन को मेरा आभार
Deleteसुन्दर।
ReplyDeleteधन्यवाद सुशील जी
DeleteKhub sundor hoyeche Dada...keep writing more
ReplyDeleteThank you Papai
DeleteKhub sundor hoyeche Dada...keep writing more
ReplyDeleteThanks Papai
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