१)
झोपड़े में
दीपक की रौशनी को देख,
फिर इर्ष्या से जल गया,
महल का
झाड़ फानूस !
२)
कुछ फूल फैलाते हैं
खुशबू हवा में,
और कुछ,
पास बुलाते हैं भ्रमर को
चमकीले रंगों की मदद से !
३)
धर्म ने फिर साथ दिया
भ्रष्टाचार का,
क्या खूब दोस्ती है दोनों में !
एक जनता को बांटता है,
दूसरा लूटता है !
झोपड़े में
ReplyDeleteदीपक की रौशनी को देख,
फिर इर्ष्या से जल गया,
महल का
झाड़ फानूस !...
Your deep insight is reflected in it.
.
आपकी तीनों क्षणिकाएँ अच्छी हैं. तीसरी सामयिक है और सम दृष्टि से देखती है.
ReplyDeleteबहुत सुंदर क्षणिकाएं
ReplyDelete....शब्दों को पिरोया है आपने
ReplyDeletebahut badhiya kataaksh..
ReplyDeletekunwar ji,
झोपड़े में
ReplyDeleteदीपक की रौशनी को देख,
फिर इर्ष्या से जल गया,
महल का
झाड़ फानूस !
यूं तो सभी अच्छी हैं...पर यह सबसे अच्छी लगी....
कुछ फूल फैलाते हैं
ReplyDeleteखुशबू हवा में,
और कुछ,
पास बुलाते हैं भ्रमर को
चमकीले रंगों की मदद से !achhi kshanikayen
धर्म ने फिर साथ दिया
ReplyDeleteभ्रष्टाचार का,
क्या खूब दोस्ती है दोनों में !
एक जनता को बांटता है,
दूसरा लूटता है !
गहन भाव लिए सुंदर क्षणिकाएं. बधाई.
क्षणिकाएं अच्छी हैं। पर कुछ शब्द कम किए जा सकते हैं,ऐसा करने से वे और प्रभावी हो जाएंगी।
ReplyDeleteइसे कहते हें गागर में सागर समेट लेना।
ReplyDelete---------
बाबूजी, न लो इतने मज़े...
चलते-चलते बात कहे वह खरी-खरी।
कुछ फूल फैलाते हैं
ReplyDeleteखुशबू हवा में,
और कुछ,
पास बुलाते हैं भ्रमर को
चमकीले रंगों की मदद से!
वाह!
आपकी उत्साहवर्धक टिप्पणी के लिए बहुत बहुत शुक्रिया!
ReplyDeleteवाह! बहुत खूब लिखा है आपने! तीनों क्षणिकाएँ बहुत अच्छी लगी!
uttam hai ji...bahut badhiya!
ReplyDeleteबहुत सुन्दर भावाव्यक्ति।
ReplyDeleteवाह ... बहुत खूब बेहतरीन प्रस्तुति ।
ReplyDeleteबेहतरीन क्षणिकाएँ तीनों ही.
ReplyDeleteये क्षणिकायें सिद्ध करती हैं उस कथन को, 'small is BIG'
ReplyDeleteখুব ভাল লাগল পড়ে।
ReplyDeleteআপনি বাংলায় লেখেন না কেন?
आप सबको अनेक धन्यवाद ...
ReplyDelete@ राजेश जी, ज़रूर कोशिश रहेगी बेहतरी की ... आपके सुझाव के लिए शुक्रिया ...
@ संजय जी, जब कोई छोटी रचना लिखता है ... तो वो बहुत कुछ पाठकों की समझ पर छोड़ देता है ... समझदार को इशारा ही काफी होता है ...
@ Mahasweta, আমার পড়াশোনা ইংলিশ মিডিয়ামে ... তাই ইংলিশ আর হিন্দিতে স্বচ্ছন্দ অনুভব করি ... বাংলা লিখতে পড়তে জানি কিন্তু বাংলাতেই কোনো রচনা লেখা আমার পক্ষে সত্যিই খুব কঠিন ...
beautiful !!!
ReplyDeleteझोपड़े में
ReplyDeleteदीपक की रौशनी को देख,
फिर इर्ष्या से जल गया,
महल का
झाड़ फानूस !
यह है क्षणिका सुंदर अतिसुन्दर .......
छोटी किन्तु गंभीर - बहुत सुन्दर - क्या बात है?
ReplyDeleteसादर
श्यामल सुमन
09955373288
www.manoramsuman.blogspot.com
दमदार ... तीनों ही लाजवाब ... कुछ शब्दों में गहरी और दूर की बात कहते हुवे ...
ReplyDeleteबहुत ख़ूब
ReplyDeleteसुंदर क्षणिकाएं...प्रभावी
ReplyDeleteसुंदर , सार्थक
ReplyDeleteधर्म ने फिर साथ दिया
ReplyDeleteभ्रष्टाचार का,
क्या खूब दोस्ती है दोनों में !
एक जनता को बांटता है,
दूसरा लूटता है !
धर्म और भ्रष्टाचार साथ-साथ...
वाह, सटीक है....।
बढ़िया क्षणिकाएं।
झोपड़े में
ReplyDeleteदीपक की रौशनी को देख,
फिर इर्ष्या से जल गया,
महल का
झाड़ फानूस !
...बहुत सटीक टिप्पणी...सभी क्षणिकाएं बहुत सुन्दर..
kamaal ki kshnikayen..jabardast..
ReplyDeletehar kshnikayen laazwaab...
ReplyDeleteबिना सवालों के जबाब बहुत ही अछे लगे ,शुक्रिया जी
ReplyDeleteझोपड़े में
ReplyDeleteदीपक की रौशनी को देख,
फिर इर्ष्या से जल गया,
महल का
झाड़ फानूस !...
सभी क्षणिकाएं बहुत सुन्दर..
छोटे-छोटे बिम्बों में गहरी बात कह गए हैं. वाह !
ReplyDeleteसुन्दर भाव -कणिकाएं .
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