कहने में बुरा लगता है और सुनने में भी, पर हमारे समाज में दायित्वज्ञान का बड़ा अभाव है ।
हम अक्सर सुनते हैं कि यदि किसीने कभी किसी गलती की वजह से SORRY कह दिया, तो लोग कहते हैं कि ये SORRY क्या है भई । ये अंग्रेज लोग चले गए लेकिन अपने पीछे SORRY छोड़ गए ।
मैं कई बार सोचता हूँ, कि कम से कम उनमें किसी गलती के लिए SORRY कहने की तमीज तो है । हम में तो वो भी नहीं है ।
हमारे समाज में केवल दूसरों की गलतियाँ देखने-गिनने के संस्कार हैं ।
अपनी गलती कोई मानना ही नहीं चाहता । दूसरों को आईना दिखाओ । खुद अपना चेहरा आईने में मत देखो । अपने गिरेबान में झांकना ही नहीं है । विवेक नाम की चीज़ का हमारे व्यक्तित्व में कोई स्थान ही नहीं है ।
हमारे समाज की हर परत में भ्रष्टाचार इस कदर घर कर गया है कि यदि आज के तारीख में हम हर भ्रष्ट इंसान को सज़ा देने लगें तो बच्चो और पागलों के अलावा एक भी इंसान सज़ा से बच नहीं पायेगा । भ्रष्टाचार एक ज़माने में समाज में बीमारी माना जाता था, और था भी । आज यह हमारा जीवनधारा बन चूका है । कितनी शर्म और दुःख की बात है । लेकिन क्या हमें कोई फर्क पड़ता है ? बिलकुल नहीं ।
यदि ज़रा सा भी फर्क पड़ता तो आज एक ७३ साल के बूढ़े को हमारे लिए आमरण अनशन पे बैठने की ज़रूरत नहीं होती ।
कितनी आसानी से हम सारी गलती हमारे राजनेताओं के सर पे थोप देते हैं । क्या हम खुद दूध के धुले हैं ? सबसे ज्यादा कसूरवार तो जीवन के हर मोड़ पे भ्रष्टाचार करते और भ्रष्टाचार का साथ देते हम आम भारतीय हैं । किस मुंह से हम दूसरों को दोष देते हैं ? ये भ्रष्ट राजनेता, पुलिस, वकील, डॉक्टर, ठेकेदार, सरकारी बाबु, ये सब आये कहाँ से हैं ? कोई मंगल ग्रह से तो नहीं आये । हमारे बीच से ही आये हैं । ये सब हमारे ही समाज का हिस्सा है । और जब समाज ही सड़ चूका है तो केवल कुछ लोगों को दोष देने का क्या मतलब ?
क्या हमको किसीने कसम खिलाई थी कि एक भ्रष्ट नेता को चुनना है ? नहीं न ? फिर भी पचास सालों से लगातार हम गुण-दोष को अनदेखा करते हुए केवल जाती, धर्म, प्रांतीयता के आधार पर चुनाव करते आ रहे हैं । आखिर क्यूँ ?
कब तक हम यूँ ही भ्रष्टाचार को जन्म देते रहेंगे ? आखिर कब तक ?
बन्दर को राजसिंहासन पर बिठाओगे तो अराजकता ही फैलेगी । ऐसे में हम एक स्वस्थ, स्वच्छ समाज की उम्मीद ही क्यूँ करें ? यदि अच्छा समाज चाहते हो तो पहले खुद को सुधारना ज़रूरी है । पहले अपने मन को टटोला जाय । पहले अपने मन से गन्दगी हटाया जाय । ये जात-पात, ये धर्म-मज़हब, ये यहाँ-वहां, ये भाई-भातिजाबाद, ये सब बातें हमारे मन में जड़ जमा चुकी है । सबसे पहले ज़रूरी है इन गलत बातों को जड़ से उखाड फेंकना । तब जाके हम इस लायक बन पाएंगे कि किसी और से इमानदारी की उम्मीद करें ।
चित्र गूगल सर्च से ली गई है !