सोयी रात के सिरहाने पर
जग रहा था चाँद ।
चिंता के हाथों को कसके
नींद रखी थी बाँध ।
ओढ़ ली है थकी आँखों ने
पलकों की चादर ।
दफ्तर छोड़ा होश का
अब चलो नींद के घर ।
अँधेरे ने बेहोशी में
छेड़ा मन का तार ।
दूर सपनों के वादी में
बज उठा गिटार ।
चित्र साभार गूगल सर्च