Indranil Bhattacharjee "सैल"

दुनियादारी से ज्यादा राबता कभी न था !
जज्बात के सहारे ये ज़िन्दगी कर ली तमाम !!

अपनी टिप्पणियां और सुझाव देना न भूलिएगा, एक रचनाकार के लिए ये बहुमूल्य हैं ...

Apr 26, 2010

सीधी बात है कहने दो !

सीधी बात है कहने दो !
जो जैसा है रहने दो !!
ज़ब्त हम में है बहुत !
हर सितम को सहने दो !!
बेरहम जज़्बात के !
अब शहर को ढहने दो !!
हाथ-पैर जकड़े हुए !
कुछ जुबां से कहने दो !!
मोहलत से आये बड़ी !
अश्कों को अब बहने दो !!
दिल में मुहब्बत नहीं !
सैल तकल्लुफ रहने दो !!

Apr 22, 2010

काम रखो बस काम से


मेरे इस ग़ज़ल पर डॉ. डंडा लखनवी जी कुछ सुधार किये हैं ! इसके लिए मैं उनका आभारी हूँ ! उनके द्वारा बताये हुए संसोधन को मैं इसमें शामिल कर रहा हूँ ... मुझे यकीन है कि इससे इस ग़ज़ल में और निखार आ गया है .... सभी बड़ों एवं बुजुर्गों से निवेदन है कि जब भी मौका मिले इसी तरह से मार्गदर्शन करते रहे ...


यही दौर चल रहा शाम से ।
टकराया है जाम जाम से ॥

अगर नहीं है दिली मोहब्बत !
क्या सलाम क्या एहतिराम से॥

बात वो लिख डाली ग़ज़ल में !
चुभ रही थी जो कल शाम से !!

बंद बस कर ले आँखों को !
बेफिक्र हो जा आराम से !!

जिस दर को मैं भूल चुका था !
आया है ख़त उस मुकाम से॥

सब है पता खरीद्दार को!
बिकता है कौन किस दाम से !!

सोचता है जो औरों के लिए !
डर है क्या उसे अंजाम से ?

राम हो तुम या फिर रहीम हो !
पढता है फर्क क्या नाम से ?

मत ऐसे सवाल करो सैल !
तुम बस काम रखो काम से !!

Apr 17, 2010

कैसे …


आज के समाज में निरंतर निरर्थक होते जाते रिश्तों पर यह मतला पढ़िए ....

बिखर चुके टूटकर जो, अब उनको जोड़े कैसे !
निकल आए इतना आगे, राहों को मोड़े कैसे !!

बचपन में साथ खेलने वाले भाईयों के बीच उठती दीवार पर ये शेर अर्ज़ है ....

बंटवारा किस तरह होगा बचपन की यादों का अब !
कैसे बांटे माँ की ममता, वो आँचल तोड़े कैसे !!

भारतीय समाज में ब्याहकर लड़कियां ससुराल चली जाती हैं .... उनकी मनोव्यथा .....

जाते हैं सब छोडके इक दिन बाबुल का घर आँगन !
चलना सीखा पकड़कर जिन हाथों को, छोड़े कैसे !!

अब पढ़े लिखों के लिए भी अच्छी नौकरी पाना मुश्किल ही नहीं असम्भव हो गया है .... ये तो वही बात हुई कि ...

मैया ने है बाँधी मटकी को इतनी ऊँचाई पर !
नीचे खड़े लल्ला सोचे, मटकी को फोड़े कैसे !!

लेखक वर्ग आज अवहेलित हैं .... उनपर ये मकता ....

स्याही नहीं अब लिखेंगे खूने दिल से ग़ज़ल हम !
सूखे हुए दिल को लेकिन "सैल" निचोड़े कैसे !!

Apr 14, 2010

तुम एक दिन हो

आजकल यहाँ जुदाई का मौसम चल रहा है ! इसलिए मन उदास ! इस उदासी में कहीं किसी दरार से रिसने लगे कुछ भावों को कविता में ढाल दिया जो आपके समक्ष प्रस्तुत है ! इस कविता को समर्पित करता हूँ अपनी अर्धांगिनी को जो इस वक़्त मुझसे काफी दूर है ! कहा न ... आजकल जुदाई का मौसम चल रहा है ...

तुम एक दिन हो !
हाँ,
पूरा एक दिन !
मुझे देखते ही
तुम्हारे चेहरे पर
खिल जाती है सुबह की किरणे !
तुम्हारी बातें,
जैसे दिन भर
इस डाल से उस डाल,
इस पेड़ से उस पेड़,
चिड़ियों का फुदकना
चहचहाना !
उदासी में भी मुस्कुराती हो
तो लगता है कि,
बादलों की ओट से
चांदनी झलक रही हो !
और नाराज़ होती हो
तो रात घनेरी घिर जाती है !
मनाता हूँ,
तो बहुत मुश्किल से
फिर एक हलकी सी मुस्कान,
जैसे सुबह कि पहली किरण !
इसलिए तो कहता हूँ कि,
तुम एक दिन हो,
पूरा एक दिन !

Apr 9, 2010

काफिर हूँ, पर …..

मैं एक बहता दरिया हूँ, ठहर नहीं सकता हूँ मैं !
मैं हूँ शायर का एहसास, कि मर नहीं सकता हूँ मैं !!
जलता रहता है आंधियों में भी जो वो चराग हूँ  !
इन ज़रा सी हवाओं से अब डर नहीं सकता हूँ मैं !!
मैं आया था जिन राहों को ज़िन्दगी में पीछे छोड़ !
उन राहों से अब दुबारा गुज़र नहीं सकता हूँ मैं !!
मज़हब के आड़ में खुदा को भी बेच डाले लोग !
काफिर हूँ, पर इतना नीचे उतर नहीं सकता हूँ मैं !!
अच्छे कपड़े न सही पर दिल तो "सैल" अच्छा है !
तेरे लिए इससे ज्यादा संवर नहीं सकता हूँ मैं !!

Apr 8, 2010

यहाँ न कोई ठौर होगा


आज यहाँ मुकाम है, कल कहीं और होगा !
आने जाने का ज़माने में यूँ ही दौर होगा  !!
कौन रुका है हमेशा के लिए मेरे दोस्त !
न हुआ था यहाँ कभी न कोई ठौर होगा !!

Apr 5, 2010

उलझन में हूँ


खिजां भी देखी है मैंने तो, देखी है बहार भी !
मैदाने जंग में देखी है जीत भी है हार भी !!

रूक रूक के आँखों से कैसे टपकता है अश्के ग़म !
पानी देखा है ठहरा हुआ, देखी है धार भी !!

कहीं ईद-होली है तो कहीं गोधरा-बाबरी !
कहीं नफरत पनपते देखा, कहीं दिल में प्यार भी !!

उससे मुझे रूठना है या मनाना है उसको !
वो मेरे ग़म का सबब है वो मेरा ग़मख्वार1 भी !!

उलझन में हूँ पहले कौन सी बात मैं करूँ उससे  !
दिल में मेरे कई सवाल, शिकवे हैं हज़ार भी !!

उनके आने का वादा है झूठा ये है पता हमें !
दिल में शक है लेकिन सैल थोड़ा है ऐतबार2 भी !!

  1. ग़मख्वार - हमदर्द, sympathiser
  2. ऐतबार - विश्वास, trust

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