Indranil Bhattacharjee "सैल"

दुनियादारी से ज्यादा राबता कभी न था !
जज्बात के सहारे ये ज़िन्दगी कर ली तमाम !!

अपनी टिप्पणियां और सुझाव देना न भूलिएगा, एक रचनाकार के लिए ये बहुमूल्य हैं ...

May 26, 2010

अब चलो नींद के घर



सोयी रात के सिरहाने पर
जग रहा था चाँद

चिंता के हाथों को कसके
नींद रखी थी बाँध

ओढ़ ली है थकी आँखों ने 
पलकों की चादर

दफ्तर छोड़ा होश का
अब चलो नींद के घर

अँधेरे ने बेहोशी में
छेड़ा मन का तार

दूर सपनों के वादी में
बज उठा गिटार

चित्र साभार गूगल सर्च

May 23, 2010

भालू भाग रहा था, उसके पीछे मैं


चलिए आज आप सबको एक घटना के बारे में बताता हूँ । ये घटना तब घटी जब मैं अपने काम के सिलसिले में मध्य प्रदेश के सीधी जिले के एक गाँव में कुछ महीनों के लिए ठहरा हुआ था 
 
एक भू-वैज्ञानिक होने के नाते मध्य भारत के कई स्थानों में रहना भी हुआ और काम के सिलसिले में घूमना फिरना भी किसी गांव में अपना शिविर लगाता था और आसपास के जंगलों में, पहाड़ों में घूम घूम कर मानचित्र तैयार करता था, और खनिज अन्वेषण का काम करता था
 
तो हुआ यूँ, कि उस साल हम लोगों को सीधी के दक्षिण में एक बड़े से क्षेत्र से पानी के नमूने इकट्ठे करने थे शोध के लिए हम मड्वास नामक एक गाँव में शिविर लगाये थे । हम मतलब मैं, एक वरिष्ठ अधिकारी, एक ड्राईवर, और कुछ स्थानीय कर्मचारी
 
हम रोज़ सुबह तैयार होकर अपनी जीप से निकल जाते थे और दिनभर नमूने इकट्ठे करने के बाद शाम तक लौट आते थे । कभी कभी पानी के साथ साथ हम मिटटी के नमूने भी इकट्ठे करते थे
दिसंबर का महिना था । मेरी पत्नी भी मेरे साथ शिविर में रहने आई थी

एक दिन की बात है, (मेरा वरिष्ठ अधिकारी उस वक़्त छुट्टी पर घर गए हुए थे) मैं सुबह नमूना इकठ्ठा करने के लिए निकलने ही वाला था, कि मेरी पत्नी ने मुझसे कहा कि शिविर में अकेले बोर लगता है, इसलिए आज वो भी मेरे साथ चलेगी । मैं राज़ी हो गया और हम निकल पड़े । उसदिन हम जिस तरफ गए वहां काफी घना जंगल था । जंगल के बिच बिच में कहीं कहीं पर छोटे छोटे गाँव भी थे । हम उन गाँव में जाते, वहां के ट्यूबवेल से पानी के नमूने बोतल में भर लेते, जी.पी.एस. से उस जगह की स्थिति नापते, उस बोतल को एक खास नंबर देते, और फिर वहां से दूसरी जगह की ओर अग्रसर हो जाते
 
कुछ देर बाद जब कुछ पानी के नमूने इकट्ठे हो चुके थे, हम जंगल में ही एक जगह रुक कर दोपहर का खाना खा लेने का निश्चय किये
 
खाना हो गया, और हम दस मिनिट विश्राम के बाद फिर से काम पे लग गए । चूँकि, अब कोई गाँव आस पास नहीं बचा था, इसलिए हम सोचे कि चलो अब मिटटी के कुछ नमूने इकट्ठे कर लिया जाय । हम मिटटी के नमूने दीमक के टीलो से इकट्ठे करते थे । घूम घूम कर दीमक के टीले ढूँढ़ते थे, और जब कोई मिल जाता था, तो एक लोहे के पाइप कि मदद से मिटटी के नमूने लेते
 
चार पांच नमूने इकट्ठे हो गए थे कि अचानक मेरी पत्नी तबियत नासाज़ होने की शिकायत करने लगी । तो हमने सोचा कि चलो काफी काम हो गया है अब शिविर लौट चलते हैं

उस समय शाम के करीब चार या पांच बज रहे थे, ठीक से याद नहीं   हम जीप पर सवार  लौटने लगे   जंगल के बीच से होकर रास्ता गुज़र रहा था   सामने के सीट पर ड्राईवर, मैं और मेरी पत्नी बैठे थे, और पीछे चार स्थानीय कर्मचारी जो हमारे साथ काम करते थे । हमलोग काफी तेजी से लौट रहे थे, कि अचानक मेरी नज़र रास्ते के बाजू में खड़ा एक भालू पर पड़ी । जी हाँ, एक भालू ! एक पूरा, सम्पूर्ण भालू !

आराम से रास्ते के बाजू में खड़ा होकर एक दीमक के टीले से दीमक निकाल कर खाने में व्यस्त था उसे ध्यान भी नहीं था कि रास्ते पर से कोई गाड़ी गुज़र रही है । पता नहीं मेरे दिमाग पर क्या भूत चड़ा, मैंने अपने ड्राईवर से कहा 'ज़रा गाड़ी रोकना मैं उस भालू की एक तस्वीर लेना चाहता हूँ'   ड्राईवर ने गाड़ी रोकी   मैं झट से उतरा, और अपना कैमरा निकाल कर, उस भालू की तस्वीर लेने की कोशिश करने लगा । शायद ले भी लेता, पर मेरी पत्नी डर गयी और उतर के चिल्ला कर मुझे गाड़ी के अन्दर आने के लिए बोलने लगी । उसकी आवाज़ सुनकर पीछे बैठे सारे लोग भी उतर आये और भालू देखकर चिल्लाने लगे । अब जाकर भालू महाराज का ध्यान भंग हुआ और वो मुंह उठाकर हमारे तरफ देखा । इस हल्ला गुल्ला में, मेरा फोटो लेना रह गया । अचानक, वो भालू, शायद हमारी बचकानी हरकतों से परेशां होकर मुंह घुमाकर जंगल कि तरफ भागा । मैंने देखा कि मेरा मौका, एक सुन्दर फोटो सेशन का, हाथ से छुटा जा रहा है, और मेरा मॉडल, मुझसे दूर भाग रहा है । शायद मेरा दिमाग उस समय काम करना बंद कर दिया था, मैं उस भालू के पीछे जंगल कि तरफ भागा । मुझे भागते देख मेरी पत्नी भी मेरे पीछे भागी । हमें जाते देख, वो चार कर्मचारी जो हमारे साथ थे, वो भी हमारे पीछे हो लिए अब ड्राईवर अकेला रह गया था, और चूँकि वो काफी बहादुर था, उसने सोचा कि वहां अकेले इंतज़ार करने से बेहतर है कि वो भी हमारे पीछे आ जाये करीब आधे मिनिट तक भालू भाग रहा था, उसके पीछे मैं, कैमरा लेकर, मेरे पीछे मेरी पत्नी, और हमारे पीछे, हमारा ड्राईवर और बाकी के कर्मचारी । पर भालू हम से काफी तेज निकला और बहुत जल्दी जंगल में पेड़ो के पीछे खो गया उस भालू के नज़रों के ओझल होते ही मेरा होश लौट आया । अचानक मैंने यह महसूस किया कि मैं जो भी कर रहा था वो कितना गलत और खतरनाक था । क्षणिक उत्तेजना के बस में आकर, मैं एक बहुत बड़ा जोखिम उठा रहा था न केवल अपनी, बल्कि औरों की जान खतरे में डाल रहा था । भालू यदि मुड़कर आक्रमण करने का अनुचित निर्णय ले लेता, तो हम गए थे काम से । पर पता नहीं क्यूँ, उसको हमसे बहुत चिढ आ गई थी, या वो बहुत ज्यादा शर्मीला किस्म का भालू थापहले कभी शायद तस्वीर नहीं निकलवाया था, उसने न तो मुड़कर आक्रमण किया, और नाही फोटू खिंचवाने के लिए रुका
 
खैर, मुझे तस्वीर के बग़ैर ही लौटना पड़ा । पत्नी की गालियाँ अगले एक हफ्ते तक लगातार बरसती रही सो अलग । और कान पकड़ा कि ऐसी गलती जीवन में दुबारा नहीं करूँगा आज भी जब वो घटना याद करता हूँ, तो वो पल याद आता है जब, भालू के पीछे पीछे हम सब दौड़े थे

अभी ऐसे और बहुत किस्से हैं जो मैं आप लोगों को सुनाऊँगा पर आज यहीं तक

चित्र साभार गूगल सर्च 

May 16, 2010

ताकि तस्वीर, साफ़ दिखती रहे

शिवम मिश्र जी के ब्लॉग "बुरा भला" से एक अच्छी जानकारी मिली कि कल, यानि की १५ मई, शहीद सुखदेव का जन्मदिन है । इत्तफाकन ये दिन मेरा और शिवम मिश्र जी का भी जन्मदिन है ! मुझे यह जानकर बड़ा अच्छा लगा कि मैं अपना जन्मदिन भारत माता के इस सच्चे सपूत सुखदेव के साथ साँझा कर रहा हूँ । अपने देश के लिए लड़ते हुए  कितने ही वीर जवान हँसते हँसते मृत्युवरण कर लिए । जीवन उनके लिए तो बस एक बहाना था कुछ कर गुजरने को । कल काफी देर बैठकर जीवन के बारे में, हमारे आज के जीवन के बारे में सोचता रहा । और कुछ ख्यालात को शब्दों में पिरोकर इस कविता में लिख दिया



अनगिनत पल,
अनवरत सांसें,
प्याज की परतों की तरह
उधड़ता जीवन
इसे यूँ ही
परत दर परत,
निकल जाने दो,
बेजा उम्मीदों की धार से
काटने की कोशिश,
आंसूं ही लाएगी
सच्चाई की कडवी गोली,
शिष्टाचार की मीठी
चाशनी में डुबोकर,
रिश्तों के पानी के साथ
गटक जाओ
ये आईने का प्रदर्शन है;
यहाँ तुम्हे
अपना अक्स ही दिखेगा
इस टेलीविज़न का
रिमोट नहीं है,
यहाँ चैनल बदलने के लिए,
आदत के सोफे से
उठना पड़ता है
तकलीफों की हवा चलती है,
तो चरित्र के मजबूत
हाथों से,
ऐन्टेना पकड़ कर
रखना है,
ताकि
तस्वीर,
साफ़ दिखती रहे


चित्र साभार गूगल सर्च 
 

May 12, 2010

जातिप्रथा

यह कुतर्क हमेशा दिया जाता है कि जातिप्रथा की शुरुआत इसलिए की गयी थी कि हमारा समाज कर्म के अनुसार सुव्यवस्थित हो सके । इन जातिप्रथा के समर्थकों से ये पूछिए कि दुनिया के दुसरे देशों में यह व्यवस्था नहीं है तो क्या वहां का समाज व्यवस्थित नहीं है? बल्कि उल्टा ही है । जातिप्रथा के कारण हमारे देश में, समाज में केवल अव्यवस्था ही फैली है, हमारे अंदर भाईचारा की कमी आई है, सद्भावना की कमी आई है, एक दुसरे के प्रति द्वेष पनप रहा है तथा एकता बलि चढ गयी है । 

जातिप्रथा एक सर्वथा त्यज्य कुप्रथा है !

इसीके कारण हमारा देश हमेशा से गुलाम रहा है । पहले बाहरी शत्रुयों के और अब अपने ही देश में, अपने ही लोग हमें गुलाम बनाकर रख रहे हैं, केवल इस प्रथा के बलबूते पर । यह अत्यंत दुर्भाग्य की बात है कि हम में से कई आज भी इस साधारण सी बात को समझने में असमर्थ हैं । या शायद समझकर भी समझना नहीं चाहते हैं । कुछ लोगों को अपनी तथाकथित उच्च जाति होने का दंभ है तो कुछ लोग आरक्षण का फायदा लेना चाहते हैं और इसलिए जातिप्रथा को समर्थन करते हैं ।

हमारे राजनैतिक दल तो सत्ता और पैसे के पीछे अंधे हो गए हैं । वो समाज को बांटकर, वोट बैंक की राजनीति खेल रहे हैं । समाज रसातल में जाये इससे उन्हें कोई फर्क नहीं पढता है ! उन्हें तो बस वोट चाहिए और उसके लिए यदि उन्हें समाज को बांटना पड़े तो यही सही, यदि इससे समाज में अव्यवस्था फैले तो ठीक है । आज कोई भी यह नहीं देखता है कि चुनाव में खड़े उम्मेदवार अच्छा आदमी है या कोई अपराधी है । हर कोई यही देखता है कि ये हमारी जाति से है या कोई दूसरी जाति से । यही कारण है कि देश में अब कोई भी एक दल चुनाव जीत नहीं पाता है, हमेशा ही मिली-जुली (वैसे तो कोई मिला हुआ नहीं होता है, बस कहने की बात है, सभी दल आपस में बस झगडा ही करते रहते हैं), सरकार बनती है, जो देश का कार्यभार ढंग से संभाल नहीं पाती है और बहुत जल्दी टूटकर बिखर भी जाती है । इसका नतीजा यह है कि एक तो शासन व्यवस्था चरमरा जाती है, और दूसरा यह कि बार बार चुनाव करवाकर जनता का धन लुटाया जा रहा है ।

जो लोग हमेशा उपरोक्त कुतर्क देते हैं, उनसे ये सवाल है कि आप केवल एक उदाहरण दिखाइए जिसमे जातिप्रथा से समाज को कुछ लाभ हुआ हो । पहले तो जातिगत आधार पर समाज के एक वर्ग को शिक्षा और जाग्रति से दूर रखा गया, उन्हें पददलित किया गया, और अब उसी प्रथा के बलबूते फिर से समाज को बांटा जा रहा है, तथा योग्यता की बलि चढ़ाई जा रही है ।

इधर कई जगह ऐसी भी है हमारे देश में जहाँ जाती के नाम पर मारकाट मची है । एक जाती के लोग दुसरे जाती के लोगों को मारते हैं और फिर अनंतकाल तक बदले का सिलसिला शुरू हो जाता है । पहले तो इन्सान को धर्मों में बाँट दो, फिर जातियों में, फिर गोत्र में, फिर ये सोचो कि ये हमारे गाँव से है, ये दुसरे गाँव से है ... और इसी तरह बंटते चले जाओ । मेरा मानना है कि जो जातिप्रथा में विश्वास करता है उसे कोई हक़ नहीं है समाज की दुरावस्था के बारे में कुछ भी कहने का । समाज की ऐसी हालत के लिए वो खुद ज़िम्मेदार है, उसका स्वार्थ, और अदुरदर्शिता ज़िम्मेदार है ।

मुझे कई बार इस बात का सामना करना पढ़ा है कि तुम उच्च जाती का होकर भी जाति व्यवस्था के विरुद्ध क्यूँ कहते हो । मेरा एक ही जवाब है, कि, जब तक एक एक इन्सान समाज के प्रति अपनी ज़िम्मेदारी को महसूस न करे, तब तक समाज में कोई सुधार नहीं आयेगा । केवल जाती प्रथा के बारे में टिपण्णी न करते हुए आइये अपनी सोच में एक आमूलचूल परिवर्तन लाते हैं और आज से जातिप्रथा का त्याग करते हैं । खुद में परिवर्तन लायें तो समाज में परिवर्तन आयेगा ।

May 8, 2010

तब, माँ, तेरी याद आती है

अभी रात के बारह बजे हैं , और मैं ये कविता लिखने बैठा हूँ ! वैसे तो माँ को याद करने के लिए कोई खास दिन की ज़रूरत नहीं होती है । माँ हर पल दिल में होती है । फिर भी आज जब घर से बहुत दूर हूँ, माँ को देखे बहुत दिन हो गया, तब, बहुत जी करता है की बस सब कुछ छोड कर  माँ के पास जाऊं और उनके गोद में सर रखकर सो जाऊं । माँ के बारे में कुछ भी लिखो कम है ... फिर भी बस अपने दिल में कुछ बातें थी जो बाहर आ गयी ...


जब संकट सामने होता है
जब झंझाबात घिर आता है 
जब चारों तरफ अँधेरा हो
तब, माँ, तेरी याद आती है

जब खुशी से पागल होता हूँ
जब मुस्कुराना चाहता हूँ
जब हर तरफ उजियारा हो
तब, माँ, तेरी याद आती है

जब रात नींद नहीं आती है
बचपन की यादें सताती है
जब घर से दूरी खलती हो
तब, माँ, तेरी याद आती है

जब अकेला लगने लगता है
क्या करूँ समझ नहीं आता है
जब भी कोई दुविधा हो
तब, माँ, तेरी याद आती है

हर पल हर दिन बस ऐसे हो 
हर सुख दुःख जाने कैसे हो
पर तू याद बहुत आती है
हाँ तू याद बहुत आती है 

चित्र साभार गूगल सर्च  

दुनिया की अलग-अलग भाषाओँ में “माँ” को किस तरह पुकारा जाता है


माँ ये शब्द दुनिया का सबसे सुन्दर, सबसे मीठा और सबसे प्यारा शब्द है ! आइये देखते हैं की दुनिया की विभिन्न भाषाओँ में माँ को क्या कहा जाता है ...
Language
Mother
Afrikaans
Moeder, Ma
Albanian
Nënë, Mëmë
Arabic
Ahm
Aragones
Mai
Asturian
Ma
Aymara
Taica
Azeri (Latin Script)
Ana
Basque
Ama
Belarusan
Matka
Bergamasco
Màder
Bolognese
Mèder
Bosnian
Majka
Brazilian Portuguese
Mãe
Bresciano
Madèr
Breton
Mamm
Bulgarian
Majka
Byelorussian
Macii
Calabrese
Matre, Mamma
Caló
Bata, Dai
Catalan
Mare
Cebuano
Inahan, Nanay
Chechen
Nana
Croatian
Mati, Majka
Czech
Abatyse
Danish
Mor
Dutch
Moeder, Moer
Dzoratâi
Mére
English
Mother, Mama, Mom
Esperanto
Patrino, Panjo
Estonian
Ema
Faeroese
Móðir
Finnish
Äiti
Flemish
Moeder
French
Mère, Maman
Frisian
Emo, Emä, Kantaäiti, Äiti
Furlan
Mari
Galician
Nai
German
Mutter
Greek
Màna
Griko
Salentino, Mána
Hawaiian
Makuahine
Hindi -
Ma, Maji
Hungarian
Anya, Fu
Icelandic
Móðir
Ilongo
Iloy, Nanay, Nay
Indonesian
Induk, Ibu, Biang, Nyokap
Irish
Máthair
Italian
Madre, Mamma
Japanese
Okaasan, Haha
Judeo Spanish
Madre
Kannada
Amma
Kurdish Kurmanji
Daya
Ladino
Uma
Latin
Mater
Leonese
Mai
Ligurian
Maire
Limburgian
Moder, Mojer, Mam
Lingala
Mama
Lithuanian
Motina
Lombardo Occidentale
Madar
Lunfardo
Vieja
Macedonian
Majka
Malagasy
Reny
Malay
Emak
Maltese
Omm
Mantuan
Madar
Maori
Ewe, Haakui
Mapunzugun
Ñuke, Ñuque
Marathi
Aayi
Mongolian
`eh
Mudnés
Medra, mama
Neapolitan
Mamma
Norwegian
Madre
Occitan
Maire
Old Greek
Mytyr
Parmigiano
Mädra
Persian
Madr, Maman
Piemontese
Mare
Polish
Matka, Mama
Portuguese
Mãe
Punjabi
Mai, Mataji, Pabo
Quechua
Mama
Rapanui
Matu'a Vahine
Reggiano
Mèdra
Romagnolo
Mèder
Romanian
Mama, Maica
Romansh
Mamma
Russian
Mat'
Saami
Eadni
Samoan
Tina
Sardinian (Limba Sarda Unificada)
Mama
Sardinian Campidanesu
mamai
Sardinian Logudoresu
Madre, Mamma
Serbian
Majka
Shona
Amai
Sicilian
Matri
Slovak
Mama, Matka
Slovenian
Máti
Spanish
Madre, Mamá, Mami
Swahili
Mama, Mzazi, Mzaa
Swedish
Mamma, Mor, Morsa
Swiss German
Mueter
Telegu
Amma
Triestino
Mare
Turkish
Anne, Ana, Valide
Turkmen
Eje
Ukrainian
Mati
Urdu
Ammee
Valencian
Mare
Venetian
Mare
Viestano
Mamm'
Vietnamese
me
Wallon
Mére
Welsh
Mam
Yiddish
Muter
Zeneize
Moæ

यह पोस्ट इस लिंक से लिया गया है :

May 6, 2010

इसलिए उनका नाम बहुत है


सर पे उनके इलज़ाम बहुत है
इसलिए उनका नाम बहुत है 

जाते हैं वो विदेश मुफ्त में
देश में उनका दाम बहुत है

अगले चुनाव से पहले बिजली
गाँव गाँव में काम बहुत है

करनी है ना शायरी अबके
शायरी में ताम झाम बहुत है

अब जागो बहुत कठिन डगर है
कर लिया यूँ आराम बहुत है

पूछा है नाम जो उसने हंसके
इतना "सैल" इनाम बहुत है

आप को ये भी पसंद आएगा .....

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