मेरे इस ग़ज़ल पर डॉ. डंडा लखनवी जी कुछ सुधार किये हैं ! इसके लिए मैं उनका आभारी हूँ ! उनके द्वारा बताये हुए संसोधन को मैं इसमें शामिल कर रहा हूँ ... मुझे यकीन है कि इससे इस ग़ज़ल में और निखार आ गया है .... सभी बड़ों एवं बुजुर्गों से निवेदन है कि जब भी मौका मिले इसी तरह से मार्गदर्शन करते रहे ...
यही दौर चल रहा शाम से ।
टकराया है जाम जाम से ॥
क्या सलाम क्या एहतिराम से॥
बात वो लिख डाली ग़ज़ल में !
चुभ रही थी जो कल शाम से !!
बंद बस कर ले आँखों को !
बेफिक्र हो जा आराम से !!
आया है ख़त उस मुकाम से॥
सब है पता खरीद्दार को!
बिकता है कौन किस दाम से !!
सोचता है जो औरों के लिए !
डर है क्या उसे अंजाम से ?
राम हो तुम या फिर रहीम हो !
पढता है फर्क क्या नाम से ?
मत ऐसे सवाल करो ‘सैल’ !
तुम बस काम रखो काम से !!
oh! Wah! Phir ekbaar sashakt rachana!
ReplyDeletemere best friend ka naam bhi indranil bhattacharjee hai :) what a coincidence :) glanced through your blog. will come back later after going through it. couldnt stop myself after seeing you comment on my blog.
ReplyDeletejab mann snehsikt na ho to har baat vyarth hai....bahut badhiyaa
ReplyDeleteगज़ब, कमाल एक दम!बेहतरीन ख्याल,कमाल का लफ़्ज़ों का इस्तेमाल.
ReplyDeleteachha likhte hain aap ... jaari rakhen...
ReplyDeletearsh
bahut hi khubsurat rachna...
ReplyDeleteachha laga aapko padhkar...
yun hi likhte rahein...
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mere blog par is baar
इंतज़ार...
jaroor aayein...
http://i555.blogspot.com/
सुन्दर प्रस्तुति,बधाई हो।
ReplyDeleteबेहद ही खुबसूतर लफ्ज़ .... जो चुभन थी शाम से लिख डाली गजल में क्या बात है यार ..... याद रहेगी ...
ReplyDeleteतबियत गुलाब गुलाब हो गयी .बहुत अच्छे .
ReplyDeleteलिखते रहो लिखाते रहो
यूँ ही हमें सुनाते रहो
बेहद ही खुबसूतर लफ्ज़ ....
ReplyDeletekaam rakho kaam se .....bahut sahi aur bahut khoobsurat
ReplyDeleteबहुत खूबसूरत ग़ज़ल....काम से काम रखो...
ReplyDeleteबेहद ख़ूबसूरत और लाजवाब ग़ज़ल लिखा है आपने जो प्रशंग्सनीय है! आपकी लेखनी को सलाम!
ReplyDeletebadhiya ghazal ....
ReplyDeletebahut khoob...sarkar dil khush ho gaya...
ReplyDeletebaat wo likh daali gazal me...
jo chubh rahi hai sham se....
in panktiyon ne dil jeet liya...
डा. डंडा लखनवी जी तो मेरे भी प्रिय हैं...
ReplyDeleteग़ज़ल प्रभावशाली कही आपने.
"राम हो तुम या फ़िर रहीम हो
ReplyDeleteपढ़ता है फ़र्क क्या नाम से?"
बहुत खूब।
आभार आपका इतनी अच्छी प्रस्तुति पर।
बहुत खूब!! अब डॉ डंडा लखनवी जी का आशीर्वाद है तो क्या बात है..सौभाग्यशाली हैं आप!!
ReplyDeletesundar koshish hai badhai. abhi to bahut sadhanaa kareani hai aur main dekh rahaa hu, ki aap taiyaar bhi hai, yah achchhi baat hai. bhaile logon ki, vidvaano ki salaah le karaage chalate rahe, shubhkaamanaye.
ReplyDeleteखूबसूरत गज़ल, बधाई.
ReplyDeleteबहुत ही खूबसूरत ग़ज़ल...
ReplyDeleteआपका अंदाज़ अच्छा लगा...और अगर बड़ों का आशीर्वाद भी है, आपके साथ तो फिर कौन रोकेगा भला आपको ....आपकी लेखनी दिन दुनी रात चौगुनी नयी मंजिलें पाती रहे...
शुक्रिया....
बहुत ही खूबसूरत ग़ज़ल है ... हर शेर खिलता हुवा गुलाब है ... रोजमर्रा की भाषा में इतनी लाजवाब ग़ज़लें कम ही पढ़ने को मिलती हैं ... बधाई कबूल करें ...
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