Indranil Bhattacharjee "सैल"

दुनियादारी से ज्यादा राबता कभी न था !
जज्बात के सहारे ये ज़िन्दगी कर ली तमाम !!

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Apr 8, 2010

यहाँ न कोई ठौर होगा


आज यहाँ मुकाम है, कल कहीं और होगा !
आने जाने का ज़माने में यूँ ही दौर होगा  !!
कौन रुका है हमेशा के लिए मेरे दोस्त !
न हुआ था यहाँ कभी न कोई ठौर होगा !!

7 comments:

  1. बहुत बहुत शुक्रिया शैल जी आपने ब्लॉग पर पधार कर हौसला अफजाई की,आप का ब्लोग्दर्शन कर के मन को अत्यंत प्रसन्नता हुई ,आपकी शायरी में बहुत परिपक्वता है हम जैसे नवागन्तुको को बहुत कुछ सिखने को मिल सकता है
    सादर धन्यवाद

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  2. वाह वाह क्या बात है! बिल्कुल सही कहा है आपने!

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  3. आखि‍री लाईन कुछ गड़बड़ लगी

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  4. हॉं कुछ बेहतर सूझने पर आपको सूचि‍त करेंगे।

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  5. aha! Behad sundar!Kaash aisa fan mujhe bhi hasil ho!

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