Indranil Bhattacharjee "सैल"

दुनियादारी से ज्यादा राबता कभी न था !
जज्बात के सहारे ये ज़िन्दगी कर ली तमाम !!

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Apr 9, 2010

काफिर हूँ, पर …..

मैं एक बहता दरिया हूँ, ठहर नहीं सकता हूँ मैं !
मैं हूँ शायर का एहसास, कि मर नहीं सकता हूँ मैं !!
जलता रहता है आंधियों में भी जो वो चराग हूँ  !
इन ज़रा सी हवाओं से अब डर नहीं सकता हूँ मैं !!
मैं आया था जिन राहों को ज़िन्दगी में पीछे छोड़ !
उन राहों से अब दुबारा गुज़र नहीं सकता हूँ मैं !!
मज़हब के आड़ में खुदा को भी बेच डाले लोग !
काफिर हूँ, पर इतना नीचे उतर नहीं सकता हूँ मैं !!
अच्छे कपड़े न सही पर दिल तो "सैल" अच्छा है !
तेरे लिए इससे ज्यादा संवर नहीं सकता हूँ मैं !!

18 comments:

  1. SHAIL JI ..BHAV POORN RCHNA..MAN KI ..SUNDER ABHIVKTI....UTTAM

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  2. bilkul sahi kaha aapne jisme jara bhi hogi baki insaniyat vokaise iswar ke naam ki boli laga sakta hai. aaj ke samay me ase bhi log hai bedard jo maa baap ki boli bhi laga sakte hai jinhe iswar ka roop maana gaya hai.

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  3. भाई जी,
    अभिवंदन
    बहुत अच्छी ग़ज़ल के लिए बधाई.
    - विजय

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  4. बहुत खूबसूरत ..उर्जा प्रदान करने वाली सार्थक रचना.....बधाई

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  5. बहुत ख़ूबसूरत रचना! बधाई!

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  6. चुभती हुई सी सुन्दर रचना

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  7. Waah..kya gazab ki rachana hai..!

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  8. Main shayar ka ehsaas..... waah kya baat kah di

    maqta behad pasand aaya

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  9. बहुत खुब बढिया ऱचना,

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  10. bahut sundar ,aakhri 4 line bahut khoob rahi .copy nahi ho rahi nahi to utaar kar batati .umda.

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  11. बहुत खुब बढिया ऱचना,

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  12. क्या ठसक है जी! वाह!

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  13. बढ़िया, भावपूर्ण पंक्तियाँ हैं.

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