Indranil Bhattacharjee "सैल"

दुनियादारी से ज्यादा राबता कभी न था !
जज्बात के सहारे ये ज़िन्दगी कर ली तमाम !!

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Apr 17, 2010

कैसे …


आज के समाज में निरंतर निरर्थक होते जाते रिश्तों पर यह मतला पढ़िए ....

बिखर चुके टूटकर जो, अब उनको जोड़े कैसे !
निकल आए इतना आगे, राहों को मोड़े कैसे !!

बचपन में साथ खेलने वाले भाईयों के बीच उठती दीवार पर ये शेर अर्ज़ है ....

बंटवारा किस तरह होगा बचपन की यादों का अब !
कैसे बांटे माँ की ममता, वो आँचल तोड़े कैसे !!

भारतीय समाज में ब्याहकर लड़कियां ससुराल चली जाती हैं .... उनकी मनोव्यथा .....

जाते हैं सब छोडके इक दिन बाबुल का घर आँगन !
चलना सीखा पकड़कर जिन हाथों को, छोड़े कैसे !!

अब पढ़े लिखों के लिए भी अच्छी नौकरी पाना मुश्किल ही नहीं असम्भव हो गया है .... ये तो वही बात हुई कि ...

मैया ने है बाँधी मटकी को इतनी ऊँचाई पर !
नीचे खड़े लल्ला सोचे, मटकी को फोड़े कैसे !!

लेखक वर्ग आज अवहेलित हैं .... उनपर ये मकता ....

स्याही नहीं अब लिखेंगे खूने दिल से ग़ज़ल हम !
सूखे हुए दिल को लेकिन "सैल" निचोड़े कैसे !!

21 comments:

  1. वाह जी वाह,
    सभी शेर एक से बढ़कर एक हैं.
    बधाई स्वीकर करें।

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  2. Behad sundar ashar hain! Yah blog mujhse chook kaise gaya?

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  3. वाह वाह । हर शेर एक दूसरे को मात देता हुआ, लाज़वाब । बधाई स्वीकारे ।

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  4. ohh...
    pehla hi sher ne kayal bana diya..
    bahut hi behtareen....
    yun hi likhte rahein...
    aane wali rachnaon ka intzaar rahega,,,
    regards..
    http://i555.blogspot.com/

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  5. सुन्दर विचार, उत्तम प्रस्तुति,I see a pattern in the color of fonts nice!

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  6. बहुत खूब सब के सब शेर लाजवाब .... और अंतिम शेर ने जान ही ले ली ....

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  7. बहुत बढ़िया विचारों से सजी सुन्दर कृति

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  8. अच्छा लगता है आपको पढ़ना, लाजवाब , बहुत बढ़िया लगी ये पोस्ट

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  9. Bahut achchha likha hai apne Badhai!!

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  10. सभी शेर एक से एक बढ कर है। लाजवाब ..

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  11. सुन्दर गज़ल, नये अन्दाज़ में. बधाई.

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  12. बहुत बढ़िया लिखा है आपने जो काबिले तारीफ़ है! इस उम्दा प्रस्तुति के लिए बधाई!

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  13. बहुत ही अच्छी प्रस्तुति आपकी...
    धन्यवाद...

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  14. bahut hi achhe lage sare sher . yatharth darshati prastuti.
    poonam

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  15. बहुत खूब कही आपने अच्छी प्रस्तुति।

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  16. बहुत सुन्दर
    लाजवाब

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  17. सारे शेर अपने आप में बहुत ही अच्छे हैं .... बधाई !!

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  18. तारीफ़
    सिर्फ शेरों की नहीं
    बल्कि आपकी उम्दा सोच की है
    आपका अध्ययन स्वयं बोलता है
    अभिवादन

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  19. ////////////////////////////////
    आपकी गजल पढ़ी। अच्छी लगी। लयात्मकता
    की दृष्टि से इस गजल मतले के अलावा दो शेरों
    मैंने को नया रूप दिया है। स्वीकार कीजिए.....


    यही दौर चल रहा शाम से ।
    टकराया है जाम जाम से ॥

    जिस दर को मैं भूल चुका था-
    आया है ख़त उस मुकाम से॥

    अगर नहीं है दिली मोहब्बत
    क्या सलाम क्या एहतिराम से॥
    ------------------------------
    सद्भावी-डॉ० डंडा लखनवी
    ////////////////////////////////////

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  20. यही दौर चल रहा कल शाम से
    टकराया है जाम जाम से

    वह...वाह ....क्या बात है ....!!

    बात वो लिख डाली ग़ज़ल में
    चुभ रही थी जो कल शाम से

    बहुत खूब ....!!
    मज़ा आ गया ...बहुत सुंदर ....!!

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