आज के समाज में निरंतर निरर्थक होते जाते रिश्तों पर यह मतला पढ़िए ....
बिखर चुके टूटकर जो, अब उनको जोड़े कैसे !
निकल आए इतना आगे, राहों को मोड़े कैसे !!
निकल आए इतना आगे, राहों को मोड़े कैसे !!
बचपन में साथ खेलने वाले भाईयों के बीच उठती दीवार पर ये शेर अर्ज़ है ....
बंटवारा किस तरह होगा बचपन की यादों का अब !
कैसे बांटे माँ की ममता, वो आँचल तोड़े कैसे !!
कैसे बांटे माँ की ममता, वो आँचल तोड़े कैसे !!
भारतीय समाज में ब्याहकर लड़कियां ससुराल चली जाती हैं .... उनकी मनोव्यथा .....
जाते हैं सब छोडके इक दिन बाबुल का घर आँगन !
चलना सीखा पकड़कर जिन हाथों को, छोड़े कैसे !!
चलना सीखा पकड़कर जिन हाथों को, छोड़े कैसे !!
अब पढ़े लिखों के लिए भी अच्छी नौकरी पाना मुश्किल ही नहीं असम्भव हो गया है .... ये तो वही बात हुई कि ...
मैया ने है बाँधी मटकी को इतनी ऊँचाई पर !
नीचे खड़े लल्ला सोचे, मटकी को फोड़े कैसे !!
नीचे खड़े लल्ला सोचे, मटकी को फोड़े कैसे !!
लेखक वर्ग आज अवहेलित हैं .... उनपर ये मकता ....
स्याही नहीं अब लिखेंगे खूने दिल से ग़ज़ल हम !
सूखे हुए दिल को लेकिन "सैल" निचोड़े कैसे !!
वाह जी वाह,
ReplyDeleteसभी शेर एक से बढ़कर एक हैं.
बधाई स्वीकर करें।
Behad sundar ashar hain! Yah blog mujhse chook kaise gaya?
ReplyDeleteवाह वाह । हर शेर एक दूसरे को मात देता हुआ, लाज़वाब । बधाई स्वीकारे ।
ReplyDeleteohh...
ReplyDeletepehla hi sher ne kayal bana diya..
bahut hi behtareen....
yun hi likhte rahein...
aane wali rachnaon ka intzaar rahega,,,
regards..
http://i555.blogspot.com/
सुन्दर विचार, उत्तम प्रस्तुति,I see a pattern in the color of fonts nice!
ReplyDeleteबहुत खूब सब के सब शेर लाजवाब .... और अंतिम शेर ने जान ही ले ली ....
ReplyDeleteबहुत बढ़िया विचारों से सजी सुन्दर कृति
ReplyDeleteअच्छा लगता है आपको पढ़ना, लाजवाब , बहुत बढ़िया लगी ये पोस्ट
ReplyDeleteBahut achchha likha hai apne Badhai!!
ReplyDeleteसभी शेर एक से एक बढ कर है। लाजवाब ..
ReplyDeleteसुन्दर गज़ल, नये अन्दाज़ में. बधाई.
ReplyDeleteबहुत बढ़िया लिखा है आपने जो काबिले तारीफ़ है! इस उम्दा प्रस्तुति के लिए बधाई!
ReplyDeleteबहुत ही अच्छी प्रस्तुति आपकी...
ReplyDeleteधन्यवाद...
bahut hi achhe lage sare sher . yatharth darshati prastuti.
ReplyDeletepoonam
बहुत खूब कही आपने अच्छी प्रस्तुति।
ReplyDeleteबहुत सुन्दर
ReplyDeleteलाजवाब
सारे शेर अपने आप में बहुत ही अच्छे हैं .... बधाई !!
ReplyDeleteतारीफ़
ReplyDeleteसिर्फ शेरों की नहीं
बल्कि आपकी उम्दा सोच की है
आपका अध्ययन स्वयं बोलता है
अभिवादन
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ReplyDeleteआपकी गजल पढ़ी। अच्छी लगी। लयात्मकता
की दृष्टि से इस गजल मतले के अलावा दो शेरों
मैंने को नया रूप दिया है। स्वीकार कीजिए.....
यही दौर चल रहा शाम से ।
टकराया है जाम जाम से ॥
जिस दर को मैं भूल चुका था-
आया है ख़त उस मुकाम से॥
अगर नहीं है दिली मोहब्बत
क्या सलाम क्या एहतिराम से॥
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सद्भावी-डॉ० डंडा लखनवी
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bahut hi sundar. Badhai!!
ReplyDeleteयही दौर चल रहा कल शाम से
ReplyDeleteटकराया है जाम जाम से
वह...वाह ....क्या बात है ....!!
बात वो लिख डाली ग़ज़ल में
चुभ रही थी जो कल शाम से
बहुत खूब ....!!
मज़ा आ गया ...बहुत सुंदर ....!!