Indranil Bhattacharjee "सैल"

दुनियादारी से ज्यादा राबता कभी न था !
जज्बात के सहारे ये ज़िन्दगी कर ली तमाम !!

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Mar 13, 2010

ये खबर गर्म है

ये खबर पढ़ लो, ये खबर गर्म है !
हादसों से अभी ये शहर गर्म है !!
नादान सही पर इतनी तो है समझ!
इस दिल में ठंडक है, ये नज़र गर्म है !!
रह गए जमकर ये लम्हात वहीँ पर !
तन्हाई की जो ये दोपहर गर्म है !!
अभी से तो न मुझ पर लिखो मर्सिया !
अभी तो रगों में ये ज़हर गर्म है !!
देख लो लगाकर हाथ एकबार 'सैल' !
जहाँ पर दफ़न है वो कबर गर्म है !!

मर्सिया - शोक काव्य

11 comments:

  1. बहुत सुन्दर ग़ज़ल लिखा है आपने जो काबिले तारीफ है! बधाई!
    मेरे ब्लोगों पर आपका स्वागत है!

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  2. एक अलग गर्म अंदाज़ की ग़ज़ल है.

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  3. अलग ढंग की सुन्दर गज़ल

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  4. अभी से न पढ़ो मस्रिया कयोंकि जिन्दगी का ज़हर ठंडा नहीं हुआ है। तल्खी है अनुभूतियों की जो संवेदनशीलता का प्रमाण है।
    शायद इसलिए इंद्रनील हैं साहब!
    अच्छे भाव ।

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  5. ये खबर गर्म है ..
    बहुत सुन्दर रचना...इसे अगली चर्चा में शामिल कर रही हूँ...लेकिन कॉपी नहीं कर पायी हूँ..
    मेरे ब्लॉग से मेरा ईमेल एड्रेस मिल जाएगा ..अगर इस कविता को भेज दें तो मेरे लिए आसानी होगी..
    शुक्रिया...

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  6. गर्म खबर देने के लिए धन्यवाद, इसी तरह से दिलों में ठंडक पहुंचाते रहना

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  7. चर्चामंच के माध्यम से आपके ब्लाग तक पहुंचा हूं,
    रचना बहुत खूबसूरत है, आते रहना होगा अब यहां पर
    आभार।

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  8. आप सभी का तहे दिल से शुक्रिया !

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