ये खबर पढ़ लो, ये खबर गर्म है !
हादसों से अभी ये शहर गर्म है !!
नादान सही पर इतनी तो है समझ!
इस दिल में ठंडक है, ये नज़र गर्म है !!
रह गए जमकर ये लम्हात वहीँ पर !
तन्हाई की जो ये दोपहर गर्म है !!
अभी से तो न मुझ पर लिखो मर्सिया !
अभी तो रगों में ये ज़हर गर्म है !!
देख लो लगाकर हाथ एकबार 'सैल' !
जहाँ पर दफ़न है वो कबर गर्म है !!
मर्सिया - शोक काव्य
ehsaas bhi aansuon se garm hain
ReplyDeleteachchhi ghazal....
ReplyDeleteबहुत सुन्दर ग़ज़ल लिखा है आपने जो काबिले तारीफ है! बधाई!
ReplyDeleteमेरे ब्लोगों पर आपका स्वागत है!
bahut sundar.Badhai!!
ReplyDeleteएक अलग गर्म अंदाज़ की ग़ज़ल है.
ReplyDeleteअलग ढंग की सुन्दर गज़ल
ReplyDeleteअभी से न पढ़ो मस्रिया कयोंकि जिन्दगी का ज़हर ठंडा नहीं हुआ है। तल्खी है अनुभूतियों की जो संवेदनशीलता का प्रमाण है।
ReplyDeleteशायद इसलिए इंद्रनील हैं साहब!
अच्छे भाव ।
ये खबर गर्म है ..
ReplyDeleteबहुत सुन्दर रचना...इसे अगली चर्चा में शामिल कर रही हूँ...लेकिन कॉपी नहीं कर पायी हूँ..
मेरे ब्लॉग से मेरा ईमेल एड्रेस मिल जाएगा ..अगर इस कविता को भेज दें तो मेरे लिए आसानी होगी..
शुक्रिया...
गर्म खबर देने के लिए धन्यवाद, इसी तरह से दिलों में ठंडक पहुंचाते रहना
ReplyDeleteचर्चामंच के माध्यम से आपके ब्लाग तक पहुंचा हूं,
ReplyDeleteरचना बहुत खूबसूरत है, आते रहना होगा अब यहां पर
आभार।
आप सभी का तहे दिल से शुक्रिया !
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