कहते हैं, कि ग़म से ही
होता है ख़ुशी का एहसास !
पर करो बंद मुट्ठी
तो रेत की तरह
फिसल जाता है !!
लेकर चाहत हंसने की,
रोते रोते आये,
ज़िन्दगी के आँगन में;
हंसा हंसा कर,
रुलाती है !
अब, डर लगने लगा है,
ख़ुशी की आहट से !
न जाने कितने ग़म छिपे होंगे
उसके आँचल में !!
ख़ुशी की चाहत में,
हर सितम सह रहे हैं !
अँधेरी रात के बाद
आता है,
आयेगा,
सवेरा !
बस यही उम्मीद है !!
ab dar lagne .................aanchal men.
ReplyDeletebahut sunder abhivyakti.
बहुत खूबसूरत एहसास
ReplyDeleteज़िन्दगी का अहसास ओर ख़ुशी का अहसास करना हर किसी के बस की बात नहीं ज़नाब
ReplyDelete.......
वो जिन्हें अश्कों की खार नहीं मालूम,
क्या जान देंगे जिन्हें प्यार नहीं मालूम
सवेरा जरूर आयेगा. इंतजार नही प्रयास चाहिये
ReplyDeleteसुन्दर रचना के लिये साधुवाद
bahut bhavpurna abhivyakti...
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