Indranil Bhattacharjee "सैल"

दुनियादारी से ज्यादा राबता कभी न था !
जज्बात के सहारे ये ज़िन्दगी कर ली तमाम !!

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May 22, 2011

नई दुनिया में एक लघुकथा !

लो जी दुनिया कल शाम छे बजे खतम भी हो गई और हमें पता भी नहीं चला ... वो तो श्रीमती जी ने सुबह सुबह याद दिला दी कि कल दुनिया खतम हो गई थी ... तब बात ध्यान में आई ... बड़ी नाइंसाफी है जी ... इतने सारे दोस्त बना रखे हैं ब्लॉग में किसीने नहीं बताया कि दुनिया खतम होने वाली है, जो करना है अभी कर लो ... वरना करने को तो बहुत कुछ बाकी था ....
खैर अब क्या हो सकता है ... और फिर एक ब्लॉगर को इन बातों से कोई मतलब होना भी नहीं चाहिए ... एक ब्लॉगर किसी सिद्धि प्राप्त महापुरुष से कहाँ कम होता है ... वो तो इन तुच्छ बातों से कब के ऊपर उठ चूका होता है ... दुनिया पुराणी हो या नई, खतम होने जा रही हो या खतम हो चुकी हो ... हम तो जी बस ब्लॉग्गिंग करते रहेंगे ...
लेकिन इस नई दुनिया का थोडा सा ख्याल रखते हुए आज पहली बार एक लघुकथा लिखने की कोशिश की है मैंने ... वही आप सबके सामने प्रस्तुत है ...


रामरतन
दो साल लग गए थे उस भव्य ईमारत को बनने में । किसी बहुत बड़े उद्योगपति का मकान था । ठेकेदार ने पचासों मजदूर लगा दिए थे उस काम के लिए । रामरतन भी उन्ही में से एक था । दिनरात की कड़ी मेहनत के बाद ५० रुपये दिहाड़ी मिला करता था । पर अब तो वो भी बंद हो गया ।
ईमारत बन जाने के बाद उसके पास अब तक कोई काम नहीं था । उसके साथ काम करने वाले मजदूर कहीं न कहीं काम पे लग गए थे । एक ऐसा ही था श्यामलाल । उसे तो उसी ईमारत के रखवाली करने का काम मिल गया था । रामरतन और श्यामलाल हमेशा साथ साथ ही काम करते रहे हैं ।
इसलिए  आज बड़ी उम्मीद के साथ रामरतन उसी ईमारत के गेट पे आया था कि अंदर बैठे साहब से मिलके कुछ अनुरोध करेगा, शायद कुछ बात बन जाय, कुछ काम मिल जाय ।
पर बहुत बड़ा धक्का लगा था, जब उसीका दोस्त श्यामलाल उसे अंदर जाने नहीं दिया । गेट से ही यह कहकर भगा दिया कि साहब किसीसे मिलते नहीं हैं । ज्यादा मिन्नतें करने पर एक धक्का देकर उसे वहाँ से हटा दिया था ।
उस  ईमारत से कुछ दूरी पर एक पेड़ के छांव में बैठके रामरतन सुनी आँखों से क्षितिज की ओर देख रहा था । शायद इस सवाल का जवाब ढूँढ रहा था कि इंसान इतनी जल्दी बदल कैसे जाता है ।

27 comments:

  1. वक्त के साथ इंसानी सोच भी बदल जाती है.कहानी अपनी जड़ों को न भूलने का सन्देश देती है क्योंकि किसी का भी वक्त कभी भी अच्छा-बुरा हो सकता है.

    सादर

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  2. जीवन की कठिन परिस्थितियों में, जिजीविषा इसी तरह मजबूर कर देती है...बेहतर...

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  3. नई दुनिया का आरम्भ भी ऐसा ही

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  4. इंसानी फ़ितरत का सटीक चित्रण किया है।

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  5. बड़ी टेढ़ी स्थिति होती है जब हम किसी किरदार को उसी के परिप्रेक्ष्य में देखते हैं. मुश्किल और भी बढ़ जाती है जब हम प्रत्येक किरदार को अपने परिप्रेक्ष्य में देखने लगते हैं.
    सुंदर कहानी.

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  6. @भूषण जी
    धन्यवाद, हर किरदार का एक अलग परिप्रेक्ष्य होता है ... कौन जाने क्या सही है और क्या गलत ...

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  7. पहले जो सिर्फ दोस्त था वो अब नौकरी के बन्धन के साथ ही जिम्मेदारी के बन्धन में भी तो बंध गया था ।

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  8. २१ मई को सिर्फ जीसस के भक्तो को स्वर्ग में प्रवेश मेला है, आप और हम जैसे पापीयो को नहीं ! आपका और हमारा नंबर अक्टूबर में आएगा !

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  9. २१ मई को तो बच गए ...
    अब कब ??

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  10. आदमी के मन की तासीर को समझना मुश्किल है।
    विचारणीय लघुकथा।

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  11. कुछ तो मजबूरी रही होगी
    वर्ना कोई यूँ ही बेवफा नही होता

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  12. स्वामिभक्ति, लॉयल्टी? सद्गुण, अमानवीयता?
    मजबूरी?
    अच्छी लघुकथा। एक ही आचरण की कई विमायें हो सकती हैं।

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  13. विचारणीय लघुकथा, सटीक चित्रण....

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  14. @ अनुराग शर्मा जी
    हर किसीका का सच अलग अलग होता है ... और कई बार एक का सच दूसरे के सच से टकरा जाता है ...

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  15. इंसानी फ़ितरत का सटीक चित्रण किया है। धन्यवाद|

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  16. श्यामलाल को अपनी नौकरी दोस्त से अधिक प्यारी है।

    निदा फाजली ने लिखा है..

    यहां किसी का कोई साथ नहीं देता
    मुझे गिरा के अगर तुम संभल सको तो चलो

    बहुत कठिन है सफर जो चल सको तो चलो
    ....

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  17. श्याम लाल किसी का दोस्त होने के अलावा किसी का नौकर भी है। और भूख भी पहले अपनी ही नजर आती है।
    अच्छी लगी ’नई दुनिया’ की लघुकथा।

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  18. ड्यूटी -ड्यूटी की बात है ,दोस्ती की नहीं.ड्यूटी में सेंटीमेंट्स कहाँ?
    झूठी भविष्यवाणियों का पर्दाफ़ाश मेरे ब्लॉग पर पहले ही हो चुका है-'प्रलय की भविष्यवाणी झूठी है-यह दुनिया अनूठी है'आलेख बहुत पहले लिखा और दोहराया जा चुका है.

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  19. बहुत ही सुन्दर, शानदार, सटीक और विचारणीय लघुकथा प्रस्तुत किया है आपने!

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  20. isliye aese gaane bane matlab nikal gaya to pahchante nahi .......sundar katha .

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  21. यहाँ तो पल पल बदलता है इंसान सच ही लिखा है अपने

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  22. @ ईमारत से कुछ दूरी पर एक पेड़ के छांव में बैठके रामरतन सुनी आँखों से क्षितिज की ओर देख रहा था ।
    *** रामरतन .. क्या देख रहे हो ..
    “ऊपर वाला दुखियो की नहीं सुनता रे ..
    कौन है जो उसको गगन से उतारे! ....”

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  23. ...laghukatha to laa-jawaab hai!...nai duniya ko dekhne keliye lagta hai ab naye chashmen ki jarurat hai!...dhanyawaad!

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  24. वक्त के साथ सब कुछ बदलता है.. इंसान भी.. यही अकाट्य सत्य है...
    लघु कथा लिखने का प्रयास अच्छा है पर कोशिश रहे कि अंत काफी दमदार हो जो पढने वाले को अपने बहाव में ले जाए और लघु कथा सार्थक हो..
    इस लघु कथा का अंत और ज़ोरदार हो सकता था.. आशा है कि अगले लघु कथा में वह ज़रूर देखने को मिलेगा..

    आभार
    सुख-दुःख के साथी पर आपके विचारों का इंतज़ार है..

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  25. प्रतीक जी, आपका बहुत बहुत धन्यवाद जो आपने मेरी पोस्ट को ध्यान से पढ़ा और अपने अमूल्य सुझाव दिए ... भविष्य में और बेहतर लिखने की कोशिश ज़रूर करूँगा ... आपका हमेशा स्वागत है और आप हमेशा इसी तरह अपने सुझावों से नवाजें ...

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