लो जी दुनिया कल शाम छे बजे खतम भी हो गई और हमें पता भी नहीं चला ... वो तो श्रीमती जी ने सुबह सुबह याद दिला दी कि कल दुनिया खतम हो गई थी ... तब बात ध्यान में आई ... बड़ी नाइंसाफी है जी ... इतने सारे दोस्त बना रखे हैं ब्लॉग में किसीने नहीं बताया कि दुनिया खतम होने वाली है, जो करना है अभी कर लो ... वरना करने को तो बहुत कुछ बाकी था ....
खैर अब क्या हो सकता है ... और फिर एक ब्लॉगर को इन बातों से कोई मतलब होना भी नहीं चाहिए ... एक ब्लॉगर किसी सिद्धि प्राप्त महापुरुष से कहाँ कम होता है ... वो तो इन तुच्छ बातों से कब के ऊपर उठ चूका होता है ... दुनिया पुराणी हो या नई, खतम होने जा रही हो या खतम हो चुकी हो ... हम तो जी बस ब्लॉग्गिंग करते रहेंगे ...
लेकिन इस नई दुनिया का थोडा सा ख्याल रखते हुए आज पहली बार एक लघुकथा लिखने की कोशिश की है मैंने ... वही आप सबके सामने प्रस्तुत है ...
रामरतन
दो साल लग गए थे उस भव्य ईमारत को बनने में । किसी बहुत बड़े उद्योगपति का मकान था । ठेकेदार ने पचासों मजदूर लगा दिए थे उस काम के लिए । रामरतन भी उन्ही में से एक था । दिनरात की कड़ी मेहनत के बाद ५० रुपये दिहाड़ी मिला करता था । पर अब तो वो भी बंद हो गया ।
ईमारत बन जाने के बाद उसके पास अब तक कोई काम नहीं था । उसके साथ काम करने वाले मजदूर कहीं न कहीं काम पे लग गए थे । एक ऐसा ही था श्यामलाल । उसे तो उसी ईमारत के रखवाली करने का काम मिल गया था । रामरतन और श्यामलाल हमेशा साथ साथ ही काम करते रहे हैं ।
इसलिए आज बड़ी उम्मीद के साथ रामरतन उसी ईमारत के गेट पे आया था कि अंदर बैठे साहब से मिलके कुछ अनुरोध करेगा, शायद कुछ बात बन जाय, कुछ काम मिल जाय ।
पर बहुत बड़ा धक्का लगा था, जब उसीका दोस्त श्यामलाल उसे अंदर जाने नहीं दिया । गेट से ही यह कहकर भगा दिया कि साहब किसीसे मिलते नहीं हैं । ज्यादा मिन्नतें करने पर एक धक्का देकर उसे वहाँ से हटा दिया था ।
उस ईमारत से कुछ दूरी पर एक पेड़ के छांव में बैठके रामरतन सुनी आँखों से क्षितिज की ओर देख रहा था । शायद इस सवाल का जवाब ढूँढ रहा था कि इंसान इतनी जल्दी बदल कैसे जाता है ।
वक्त के साथ इंसानी सोच भी बदल जाती है.कहानी अपनी जड़ों को न भूलने का सन्देश देती है क्योंकि किसी का भी वक्त कभी भी अच्छा-बुरा हो सकता है.
ReplyDeleteसादर
badhiya lagu laghu katha...
ReplyDeleteजीवन की कठिन परिस्थितियों में, जिजीविषा इसी तरह मजबूर कर देती है...बेहतर...
ReplyDeleteनई दुनिया का आरम्भ भी ऐसा ही
ReplyDeleteइंसानी फ़ितरत का सटीक चित्रण किया है।
ReplyDeleteबड़ी टेढ़ी स्थिति होती है जब हम किसी किरदार को उसी के परिप्रेक्ष्य में देखते हैं. मुश्किल और भी बढ़ जाती है जब हम प्रत्येक किरदार को अपने परिप्रेक्ष्य में देखने लगते हैं.
ReplyDeleteसुंदर कहानी.
@भूषण जी
ReplyDeleteधन्यवाद, हर किरदार का एक अलग परिप्रेक्ष्य होता है ... कौन जाने क्या सही है और क्या गलत ...
पहले जो सिर्फ दोस्त था वो अब नौकरी के बन्धन के साथ ही जिम्मेदारी के बन्धन में भी तो बंध गया था ।
ReplyDelete२१ मई को सिर्फ जीसस के भक्तो को स्वर्ग में प्रवेश मेला है, आप और हम जैसे पापीयो को नहीं ! आपका और हमारा नंबर अक्टूबर में आएगा !
ReplyDelete२१ मई को तो बच गए ...
ReplyDeleteअब कब ??
आदमी के मन की तासीर को समझना मुश्किल है।
ReplyDeleteविचारणीय लघुकथा।
कुछ तो मजबूरी रही होगी
ReplyDeleteवर्ना कोई यूँ ही बेवफा नही होता
स्वामिभक्ति, लॉयल्टी? सद्गुण, अमानवीयता?
ReplyDeleteमजबूरी?
अच्छी लघुकथा। एक ही आचरण की कई विमायें हो सकती हैं।
विचारणीय लघुकथा, सटीक चित्रण....
ReplyDelete@ अनुराग शर्मा जी
ReplyDeleteहर किसीका का सच अलग अलग होता है ... और कई बार एक का सच दूसरे के सच से टकरा जाता है ...
इंसानी फ़ितरत का सटीक चित्रण किया है। धन्यवाद|
ReplyDeleteश्यामलाल को अपनी नौकरी दोस्त से अधिक प्यारी है।
ReplyDeleteनिदा फाजली ने लिखा है..
यहां किसी का कोई साथ नहीं देता
मुझे गिरा के अगर तुम संभल सको तो चलो
बहुत कठिन है सफर जो चल सको तो चलो
....
श्याम लाल किसी का दोस्त होने के अलावा किसी का नौकर भी है। और भूख भी पहले अपनी ही नजर आती है।
ReplyDeleteअच्छी लगी ’नई दुनिया’ की लघुकथा।
ड्यूटी -ड्यूटी की बात है ,दोस्ती की नहीं.ड्यूटी में सेंटीमेंट्स कहाँ?
ReplyDeleteझूठी भविष्यवाणियों का पर्दाफ़ाश मेरे ब्लॉग पर पहले ही हो चुका है-'प्रलय की भविष्यवाणी झूठी है-यह दुनिया अनूठी है'आलेख बहुत पहले लिखा और दोहराया जा चुका है.
बहुत ही सुन्दर, शानदार, सटीक और विचारणीय लघुकथा प्रस्तुत किया है आपने!
ReplyDeleteisliye aese gaane bane matlab nikal gaya to pahchante nahi .......sundar katha .
ReplyDeleteयहाँ तो पल पल बदलता है इंसान सच ही लिखा है अपने
ReplyDelete@ ईमारत से कुछ दूरी पर एक पेड़ के छांव में बैठके रामरतन सुनी आँखों से क्षितिज की ओर देख रहा था ।
ReplyDelete*** रामरतन .. क्या देख रहे हो ..
“ऊपर वाला दुखियो की नहीं सुनता रे ..
कौन है जो उसको गगन से उतारे! ....”
...laghukatha to laa-jawaab hai!...nai duniya ko dekhne keliye lagta hai ab naye chashmen ki jarurat hai!...dhanyawaad!
ReplyDeleteबहुत गहरी बात कह गये आप।
ReplyDeleteबहुत गम्भीर बात कह गये आप।
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हंसते रहो भाई, हंसाने वाला आ गया।
अब क्या दोगे प्यार की परिभाषा?
वक्त के साथ सब कुछ बदलता है.. इंसान भी.. यही अकाट्य सत्य है...
ReplyDeleteलघु कथा लिखने का प्रयास अच्छा है पर कोशिश रहे कि अंत काफी दमदार हो जो पढने वाले को अपने बहाव में ले जाए और लघु कथा सार्थक हो..
इस लघु कथा का अंत और ज़ोरदार हो सकता था.. आशा है कि अगले लघु कथा में वह ज़रूर देखने को मिलेगा..
आभार
सुख-दुःख के साथी पर आपके विचारों का इंतज़ार है..
प्रतीक जी, आपका बहुत बहुत धन्यवाद जो आपने मेरी पोस्ट को ध्यान से पढ़ा और अपने अमूल्य सुझाव दिए ... भविष्य में और बेहतर लिखने की कोशिश ज़रूर करूँगा ... आपका हमेशा स्वागत है और आप हमेशा इसी तरह अपने सुझावों से नवाजें ...
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