Indranil Bhattacharjee "सैल"

दुनियादारी से ज्यादा राबता कभी न था !
जज्बात के सहारे ये ज़िन्दगी कर ली तमाम !!

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Nov 25, 2010

शुरुआत नई जिंदगी की

कहीं होता है दर्द तो चल पड़ती है कलम ... मानो बनकर स्याही दर्द भर जाता है कलम में ... मानो बनकर शब्द बोल पड़ती है आंसू, मानो बनकर लकीरें बह निकलता है एहसास ...
दो क्षणिकाएं प्रस्तुत है हर उस नारी के नाम जिसने देखी है जिंदगी !

१. 
मन के किसी कोने में बैठी,
आज भी,
कोई छोटी सी बच्ची  है !
चाहो तो कह लो कल्पना, 
या कविता, 
पर बिलकुल सच्ची है ...

२. 
आपदा अपने पीछे, 
छोड़ जाती है खंडहर  ।
पर इंसान
हर आपदा के बाद,
नए सिरे से करता है निर्माण ।
बसता है नया शहर, 
होती है शुरुआत,
नई जिंदगी की ।

31 comments:

  1. वाह बहुत खूब...
    दूसरी क्षणिका बहुत अच्छी लगी....
    पहली में काफी बचपना झलकता है, और दूसरी में काफी गहरी सोच...
    कुल मिलकर बहुत सुन्दर....

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  2. @ शेखर सुमन जी
    जिसे आप बचपना समझ रहे हैं, वो दरअसल मन के अंदर बैठा वही छोटा सा बच्चा है जिसके बारे में मैंने लिखा है ...

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  3. वाह !!!!!!!!! क्या बात है..... अच्छी है .शानदार जानदार और क्या कहूँ.......

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  4. सिर्फ एक शब्द ..वाह वाह....और क्या कहें

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  5. अच्छी क्षणिकाएं
    मन हर्षित हो गया!!

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  6. दोनों रचनाएँ अच्छी लगीं.

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  7. इन्द्रनील भाई ..... बहुत खूब !!

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  8. आह जिंदगी......
    वाह जिंदगी.....
    इस मैले में..
    दुनिया के झमेले में...
    देखो कहीं खो गयी जिंदगी......

    प्रणाम आपकी रचना को ....... उसे पढ़ कर मैं भी बक बक करने लग गया.

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  9. दोनो ही क्षणिकायें बेहद गहन और उम्दा।

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  10. ....अति सुंदर इन्द्रनील जी!...कल्पनाओं के भी कितने सुंदर पंख!...

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  11. आप सबको बहुत बहुत शुक्रिया कि आप सबने इस रचनाओं को सराहा है ...

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  12. पहली कविता बड़ी प्यारी लगी. दूसरी सुन्दर सार लिए.

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  13. बसता है नया शहर,
    होती है शुरुआत,
    नई जिंदगी की -----बहुत खूब.
    दोनों क्षणिकाएं अच्छी लगी.

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  14. सुंदर क्षणिकायें।

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  15. बहुत खूब सैल साहब,
    दूसरी वाली क्षणिका कुछ ज्यादा ही अच्छी लगी।
    आभार।

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  16. सही कहा दोस्त। आदमी या तो नए निर्माण करता है या फिर अपनी यात्रा पर चल पड़ता है। अगर नहीं चलता तो समय धक्का मारकर उसे आगे भेजता रहता है। जिदंगी अच्छी हो या बुरी नए तरह से ही शुरु होती है फिर।

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  17. मन के किसी कोने में बैठी,
    आज भी,
    कोई छोटी सी बच्ची है !
    चाहो तो कह लो कल्पना,
    या कविता,
    पर बिलकुल सच्ची है ...

    दोनों क्षणिकाएं कमाल हैं.... यह ज्यादा अच्छी लगी....

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  18. आपदा नई भोर , नए हौसले की सीढ़ी है

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  19. सहज और सच्ची बात....खूबसूरत क्षणिकाएँ ...पढ़ कर बहुत अच्छा लगा...बधाई

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  20. हर आपदा के बाद,
    नए सिरे से करता है निर्माण ।
    बसता है नया शहर,
    होती है शुरुआत,
    नई जिंदगी की ।
    आपदाओं से ही आदमी जीना सीखता है। बहुत अच्छी लगी आपकी रचनायें। धन्यवाद।

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  21. आपदा अपने पीछे,
    छोड़ जाती है खंडहर ।
    पर इंसान
    हर आपदा के बाद,
    नए सिरे से करता है निर्माण ।
    बसता है नया शहर,
    होती है शुरुआत,
    नई जिंदगी की ..

    बहुत लाजवाब ... सच लिखा है इंसान की फितरत ... जिन्दा रहने की चाह ... बार बार टूटने पर भी जिन्दा रहने को उकसाती है ...

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  22. कल्पना...Imagination कई बार एक छोटी बच्ची-सी ही तो जान पड़ती है!

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  23. पर इंसान
    हर आपदा के बाद,
    नए सिरे से करता है निर्माण ..

    Beautiful imagination !

    .

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  24. आपदा अपने पीछे,
    छोड़ जाती है खंडहर ।
    पर इंसान
    हर आपदा के बाद,
    नए सिरे से करता है निर्माण ।
    बसता है नया शहर,
    होती है शुरुआत,
    नई जिंदगी की ।
    सोचने के लिए कुछ भी नहीं यह सच्चाई है .....शुक्रिया
    चलते -चलते पर आपका स्वागत है ....

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  25. बेहतरीन अभिव्यक्ति...................

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  26. वाकई वो छोटी सी बच्ची हर किसी के मन में बसती है! कितना सही कहा है आपने!

    हर आपदा के बाद,
    नए सिरे से करता है निर्माण ।
    बसता है नया शहर,
    होती है शुरुआत,
    नई जिंदगी की ।

    हर परिस्थिति में जिंदगी गतिमान रहती है, हादसों के बाद नवनिर्माण में जुटती है. जिंदगी ऐसी ही होती है. दिल की गहराईयों को छूने वाली, गहन संवेदनाओं की बेहद मर्मस्पर्शी अभिव्यक्ति. आभार.
    सादर
    डोरोथी.

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  27. आप सबको अनेक अनेक धन्यवाद !
    @Dorothy jee
    यही तो सच्चा ई है जिंदगी की ... ये नहीं रूकती है ... तकलीफ कितनी भी हो ... चलना ही जिंदगी है

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  28. बहुत खूब लिखा है.... सैल जी . आपकी ये रचना पसंद आई.

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