क्या किया है तुने खुदा बनके ।
तू बता सब का आसरा बनके ॥
जिंदगी ने छुड़ा लिया दामन ।
मौत आई है मेहरबां बनके ॥
ये न पूछो कि कैसे महफ़िल में ।
जलते रहता हूँ मैं शमा बनके ॥
दर्द मुझको पता न था क्या है ।
उसने समझाया बेवफा बनके ॥
क्यूँ खड़ा फिर वही नज़ारा है ।
सामने आज इम्तहां बनके ॥
इतने पागल हैं, आह भी दिल से ।
आज निकली है बस दुआ बनके ॥
क्या तूफां से गिला है जब छोड़ा ।
“सैल” कश्ती को नाखुदा बनके ॥
अरे ठहरिये ठहरिये , इतनी भी जल्दी क्या है ... टिप्पणी दे दीजियेगा ... पर अभी फिलिम खतम नहीं हुई है ... कहानी अभी बाकि है मेरे भाई ...
आपको ये बताना है कि वो कौन सी ग़ज़ल है जिसे सुनकर मेरे जेहन में ये पंक्तियाँ आई है ...
हिंट दे देता हूँ ... इस ग़ज़ल को जगजीत सिंह जी ने गाई है ...
आप बहर पे ध्यान दीजिए ... सवाल बहुत आसान है ... जवाब का इंतज़ार रहेगा ...
चित्र साभार मेरी प्रियतमा तृप्ती .
जलते रहता हूँ मैं शमा बनके ॥
ReplyDeleteदर्द मुझको पता न था क्या है ।
aur ye bhee..
क्या तूफ़ान से गिला है जब छोड़ा ।
“सैल” कश्ती को नाखुदा बनके ॥
Kya gazab ke ashaar hain!
अजी जगजीत जी के बारे में बाद में सोचेंगे..
ReplyDeleteफिलहाल तो आपकी ग़ज़ल में ही डूब जाते हैं....बहुत ही सुन्दर...वाह...
पहचान कौन...
भा गयी आपकी गजल ........शुक्रिया
ReplyDeleteबहुत ही भावभीनी गज़ल्।
ReplyDeleteबहुत ही सुन्दर गज़ल्. पहेली के बारे में सोचा नहीं जब याद आ गई तो बता दूंगी
ReplyDeleteबहुत सुन्दर रचना................
ReplyDeleteजगजीत जी तो जगजीत जी हैं .पर आपका भी जबाब नहीं.
ReplyDeleteबहुत अच्छी गजल लिख दी..
ReplyDeleteआप सबको बहुत बहुत शुक्रिया ग़ज़ल को सराहने के लिए :)
ReplyDeleteपर शायद कोई भी सवाल का जवाब देना नहीं चाहता है ... :(
ग़ज़ल तो लाजवाब है परन्तु पहेली हमारे लिए कठिन है.
ReplyDeleteraam raam ji,
ReplyDeleteshekhar suman ji bilkul sahi keh rahe hai!
abhi yaha raspaan kar le,baaki baad me sochenge....
kunwar ji,
बहुत बढ़िया ग़ज़ल प्रस्तुति ..... आभार
ReplyDeleteइतनी बढ़िया ग़ज़ल कही है कि लगता नहीं कि इसे कहने वाला बंगलाभाषी है. सैल जी, सुपर्ब.
ReplyDeleteदर्द मुझको पता न था क्या है ।
ReplyDeleteउसने समझाया बेवफा बनके ॥
ग़ज़ल में दर्द और उम्मीद दोनों है
http://www.youtube.com/watch?v=PmvhORbmlMo&feature=related
http://www.youtube.com/watch?v=Vk4Q832wKC8&feature=related
pariksha me paas hue ?
didi hun, cheating kar sakte the , imaandari ke liye shabashi milegi n bhai
ReplyDeletehttp://www.youtube.com/watch?v=0aL31Z_cXUA&feature=related
सॉरी दीदी, जवाब सही नहीं है ...
ReplyDeleteपर आपने ईमानदारी से कोशिश की है ... शुक्रिया !
भूषण जी, शुक्रिया ... बस कोशिश कर रहे हैं इस भाषा को सीखने की ...
ReplyDeletegazal ke sath-sath aapka prastuti ka tarika bahut hi rochak laga .
ReplyDeletesail bhai....khoobsurat rachna hai!
ReplyDeleteदर्द मुझको पता न था क्या है ।
ReplyDeleteउसने समझाया बेवफा बनके ॥
दिल को भा गयी पंक्तियाँ ...पूरी गजल बांधे रखती है ..शुक्रिया
चलते -चलते पर आपका स्वागत है
sail ji
ReplyDeleteitani sundarta se gazal likhne v padhwane ke liye aapko bauhut bahut dhanyvaad.xhma kijiyega main ye nahi bata sakti ki gazal koun si hai.
par jo aapne likhi vo bhi man ko bahut hi bhayi.
poonam
दर्द मुझको पता न था क्या है ।
ReplyDeleteउसने समझाया बेवफा बनके ।
बहुत अच्छा शे‘र...पूरी ग़ज़ल काबिले तारीफ़ है।
दर्द मुझको पता न था क्या है ।
ReplyDeleteउसने समझाया बेवफा बनके
वाह बहुत सुन्दर गज़ल है. सभी शेर सुन्दर हैं.
खुबसूरत........
ReplyDeleteदर्द मुझको पता न था क्या है ।
ReplyDeleteउसने समझाया बेवफा बनके ॥
... bahut khoob !!!
"दर्द मुझको पता न था क्या है ।
ReplyDeleteउसने समझाया बेवफा बनके !"
आनंद आ गया ..धन्यवाद आपका
sab ek hi sher quote kiye jaa rahe hain, bhai mujhe to poori ghazal behad umda lagi, aapko padhkar bada accha laga.....
ReplyDeletedil-e-naadan tujhe hua kya hai
bhala is dard ki wajah kya hai
kuch kuch is se milti hai behr, aisa laga mujhe, phir bhi nahin lagta ye sahi jawaab hai, kaii ghazlein is behr si hain, haina. ab aap h bataaiye ;)
@ saanjh
ReplyDeleteचलिए, सब एक ही शेर कोट कर रहे हैं ... तो शायद वो शेर अच्छा बन पड़ा होगा ... सभी को धन्यवाद सराहने के लिए ...
आपने जिस ग़ज़ल की बात की है उससे शायद मेरी ग़ज़ल का बहर थोडा अलग है ... कल एक पोस्ट डाल दूंगा जिसमें उस ग़ज़ल का लिंक दूंगा ... आप सब उसे सुन सकते हैं ...
जब मैंने लुत्फ़ उठाया है तो सबको उठाना चाहिए ... है न ?
सैल जी इस बेहतरीन गज़ल के लिए सबसे पहले दाद कबूल करें...हर शेर बहुत खूबसूरत बन पड़ा है...वाह..वा...आपके इस शेर :
ReplyDeleteजिंदगी ने छुड़ा लिया दामन ।
मौत आई है मेहरबां बनके ॥
को पढ़ कर मुझे एक शेर याद आ गया:
मौत कितनी भी संगदिल हो मगर
जिंदगी से तो महरबाँ होगी
नीरज
इतने पागल हैं, आह भी दिल से ।
ReplyDeleteआज निकली है बस दुआ बनके ॥
ग़ज़ल दिल को छू गई।
बेहद पसंद आई। बहुत अच्छी प्रस्तुति। हार्दिक शुभकामनाएं!
विचार::पूर्णता
दर्द मुझको पता न था क्या है ।
ReplyDeleteउसने समझाया बेवफा बनके ॥
अरे वाह, क्या बात है ,आपमें ग़ज़ल के गुण भी हैं, खूब है खूब ,वाह
@ नीरज गोस्वामी जी, मनोज कुमार जी और कुंवर कुसुमेश जी ...
ReplyDeleteआप सभी का अनेक शुक्रिया ...
बहुत सुन्दर रचना लिखा है आपने ! हर एक पंक्तियाँ लाजवाब लगा! उम्दा प्रस्तुती!
ReplyDeleteदर्द मुझको पता न था क्या है ।
ReplyDeleteउसने समझाया बेवफा बनके..
ये तो हसीनों की अदा है ... सब कुछ सिखा देती हैं .. और दर्द में तो उनकी मास्टरी है ..
@ नासवा जी,
ReplyDeleteक्या खूब कही आपने ... लगता हैं हमदर्द हैं आप ...
@बबली जी
धन्यवाद !
इतने पागल हैं, आह भी दिल से ।
ReplyDeleteआज निकली है बस दुआ बनके ॥
यूं तो हर पंक्ति लाजवाब है, पर यह पंक्तियां कुछ खास बन पड़ी हैं ...बधाई ।
bahut hi sundar gazal. padkar acha laga.
ReplyDeleteबहुत बढ़िया ग़ज़ल....
ReplyDeleteपहेली तो लोग बुझा ही रहे हैं. :)
चर्चा मंच के साप्ताहिक काव्य मंच पर आपकी इस रचना का लिंक मंगलवार 30 -11-2010
ReplyDeleteको दिया गया है .
कृपया अपनी प्रतिक्रिया दे कर अपने सुझावों से अवगत कराएँ ...शुक्रिया ..
आपकी ग़ज़ल बेहद प्यारी है...
ReplyDeleteऔर यकीन मानिये, आपके सवाल के हल की खोज जारी है...
जैसे ही मिलती है सूचित करती हूँ...
sundar kavita badhai indranilji
ReplyDelete.
ReplyDeleteउम्दा ग़ज़ल -आभार।
.
जवाब तो आप अपनी ताज़ी पोस्ट में दे ही चुके है साहब, जहाँ तक आपकी ग़ज़ल का सवाल है, तो अगर ये आपकी पहली ग़ज़ल है, या आप कभी कभार ही लिखते है तो यह काफी अच्छा प्रयास है. आप शायद अ हिंदी भाषी है, इसलिए भाव में कहीं कहीं समझ नहीं बैठती होगी... अगर सुझाव लेना चाहे तो यह है की, बनाते समय अगर आप गुनगुना के बार बार लफ़्ज़ों को आजमाते रहे, तो बहर अपने आप की सही बैठता जाएगा ....बाकी आपकी ग़ज़ल के कुछ शेर खासे अच्छे बने है ... इसी तरह जारी रखिये ....
ReplyDeleteये न पूछो कि कैसे महफ़िल में
ReplyDeleteजलते रहता हूँ मैं शमा बनके....दर्द से भरी भावपूर्ण ग़ज़ल
मज़ा आ गया ये ग़ज़ल पढ़ कर.
ReplyDeleteसादर
@मजाल जी
ReplyDeleteआपके सुझाव के लिए शुक्रिया ! कोशिश करूँगा कि बेहतरी हो पाए ..
इसी तरह मार्गदर्शन करते रहे ...
"मौत आई है मेहरबां बनके"
ReplyDeleteजब जिंदगी ही खुद की उजूल-फिलूल हरकतों से बेजा हो जाए तो फिर मौत तो श्याद मेहरबा ही लगेगी ...
मन को छु लेने वाली गज़ल .....
और नीरज की टीप से
मौत कितनी भी संगदिल हो मगर
जिंदगी से तो महरबाँ होगी
सही में हमारी ही ऑंखें बंद है.