Indranil Bhattacharjee "सैल"

दुनियादारी से ज्यादा राबता कभी न था !
जज्बात के सहारे ये ज़िन्दगी कर ली तमाम !!

अपनी टिप्पणियां और सुझाव देना न भूलिएगा, एक रचनाकार के लिए ये बहुमूल्य हैं ...

Nov 23, 2010

लो जी ... ये कहते हैं कि आज मिडिया मर गया ... मैं कहता हूँ, जिंदा ही कब था !

मैं यह नहीं मानता हूँ कि यह आज हो रहा है । हाँ, आजकल पकडे जाते हैं ।
वो भी इसलिए कि आजकल इतना ज्यादा माध्यम हो गए हैं, खासकर अंतरजाल की उपस्थिति भी है, कि कुछ भी छुपाना मुश्किल हो गया है ।
कहीं न कहीं, कोई न कोई, अंतरजाल पर जुड रहा है, कुछ डाल रहा है या कुछ देख रहा है ।
और हाँ, हम ये कैसे, कब और कहाँ समझ लिए कि कलम बेदाग़ है ?  और क्यूँ ?
आखिर कलम चलाने वाले भी इंसान है, जैसे की हैं पुलिस, राजनेता, वकील, सरकारी नौकर, डॉक्टर और गुंडा ।
जब से इंसान पढ़ना-लिखना सीखा है तब से भ्रष्टाचार कर रहा है, कोई नई बात थोड़े न है ।
अच्छा एक बात बताएं, राजनीति में लोग जाते क्यूँ है ?
अगर कोई यह समझता है, या कहता है कि राजनीति, देश सेवा के लिए की जाती है, तो मैं उसे या तो मुर्ख समझूंगा या फिर राजनेता ।
कॉलेज के स्तर से ही छंटे हुए बदमाश राजनीती करने लग जाते है । मकसद एक ही । कैसे देश को और आम जनता को चुना लगाकर पैसा कमाया जाए । आगे चलकर इनमे से ही बनते हैं मंत्री, मुख्यमंत्री, प्रधानमंत्री, राष्ट्रपति, या फिर कम से कम सांसद ।
तो जिस बात के लिए वो राजनीति में आये हैं, जब वो पद मिल जाए, तो उनको मौका मिलता है कि अब तक वो जो वक्त, पैसा और शक्ति व्यय किये हैं कुर्सी प्राप्त करने के लिए, उसका फायदा उठाया जाए ।
बस शुरू हो जाता है भ्रष्टाचार । और आप कहते हैं वो भ्रष्टाचार ही छोड़ दें । कमाल हैं भाई आप । ये तो सरासर मौलिक अधिकारों का हनन है जी । आखिर जिस काम के लिए वो इतने पापड़ बेले हैं ... करोड़ों खर्चा किये, इतने प्रचार किये, हज़ारों लाखों में पैसा और दारु बंटवाए ... वोही न करें ।
और इसमें योगदान देते थे, देते हैं और देते रहेंगे -
पुलिस - इनकी तनख्वाह बहुत कम है । बिचारे घर कैसे चलाएंगे ? अब भोली भली जनता और मंत्री माई-बाप के भरोसे इनका घर चलता है । यानी कि ऐश ।
सरकारी नौकर - सरकारी नौकरी मतलब बाप का माल है । आप कुछ भी करो पर काम मत करो, नौकरी कहीं नहीं जा रही है । तो खाली दिमाग क्या होता है ? अरे हाँ जी, ठीक कहा आपने । शैतान का घर । और तनख्वाह भी तो बहुत ज्यादा नहीं । पर सपने बड़े बड़े । तो ऐश कैसे हो ?  बस लग जाओ मंत्री जी के पीछे, और लेते रहो घुस ।
वकील – मेरा कंप्यूटर जब भी खराब होता है, मैं उसे IT इंजिनियर के पास ले जाता हूँ । अगर वो कहता है ये-ये पुर्जे  बदलना है, तो है । बदलना ही पड़ता है । अब वो सही कह रहा है या नहीं, इस बात की पुष्टि मैं कैसे करूं ? क़ानून भी कुछ ऐसा ही है । आपको देश के कानून के बारे में कुछ पता है ? मुझे भी नहीं । 90 प्रतिशत जनता को देश के क़ानून के बारे में कुछ भी नहीं पता है । तो हुए न हम वकीलों के हाथ के कठपुतली । जैसे नचाये वैसे नाचे । इससे बेहतर मौका और क्या हो सकता है । जनता को चुना लगाओ, शातिर अपराधी को छुडाओ, खूब माल कमाओ । और मंत्रिओं का प्रियपात्र भी बने रहो ।
डॉक्टर - अब ये भी समझाना पड़ेगा । आप भी हद करते हो भाई । अब सब लोग अगर तंदुरुस्त हो जायेंगे, तो इनकी दुकान कैसे चलेगी ?  इसलिए कोई भी मरीज को एकदम सही तरीके से स्वस्थ नहीं करना है । झूला कर रखो । बार बार दौड़ने दो । जितनी बार आयेगा, उतनी कमाई ।
गुंडा - ये न होते तो जनता मंत्रियों कि ठुकाई न कर देती । ये हैं, तभी तो राजनेताओं का बाजार चल रहा है ।  वोट आ रहे है, गद्दी सुरक्षित है, और किसीने आवाज़ उठाई, तो ... "अय छोरा, अरे वो अखबार वाली कुछ ज्यादा ही छाप रही है आजकल, तनिक उसको समझाए आओ, और उ गांव के लोगन पिछली बार वोट नहीं दिए रहे । सालो के घर जला देना, और दस बारह को ठिकाने लगा देना, अकलवा ठिकाने आ जाही"
मिडिया - अब ये क्यूँ पीछे रहे ? आप बड़े संत महात्मा हो, अच्छी और सच्ची खबर छाप रहे हो । तो कोई तो चाहिए न हमारे नेताओं के गुणगान करने वाले । पहले भी राजा महाराजाओं के गुणगान करने वाले होते थे । आज भी है । सही को गलत और गलत को सही कहकर प्रचार कौन करेगा ?
नेता – हाँ तो आप क्या कह रहे थे ? आप कहते हो कि राजा महाराजों के दिन लद गए । आप किस ग्रह में रहते हो भाई ।
अजी होश में आओ । ये लो शरबत पियो, दिमाग ठंडा होगा, कुछ समझ पाओगे ।
राजा-महाराजा कहीं नहीं गए । यहीं हैं । उनका राजत्व भी बढ़िया चल रहा है, thank you । बस नाम बदल गए हैं, भेस बदल गया है । आजकल हम इन्हें मंत्री कहते हैं और ये खादी पहनते है । गाँधी जी तो खादी और सत्य के सेवक रहे । उनको क्या पता था कि जिस महान स्वदेशी की बात वो कर रहे थे, एकदिन इसी देश में भ्रष्टाचार का सबसे बड़ा प्रतीक अगर कुछ होगा तो वो खादी ही होगा ।
अब जहाँ करोड़ों रुपये की बात आ जाती है, वहां आप उम्मीद करते हैं कि सब राजा हरिश्चंद्र के औलाद बनकर सब बढ़िया से संपन्न कर दे और एक पैसा भी न खाए ! धन्य हो आप !
करोड़ों के काम में कमाई भी करोड़ों में ही होती है । पर पकडे जाने का डर किसे नहीं है । तो पकड़ने वाले कौन हैं ? हमारे fourth estate । पर अगर इनको भी मालामाल कर दिया जाए तो किसी को कुछ पता ही न चले । अब सांवादिक भी इंसान है । कोई सर पे दो सिंग तो नहीं है कि अपवाद बने । सच्चाई उजागर करो और फिर मार खाओ, उससे अच्छा है चुप चाप पैसा ले लो, और हजम कर लो । मुंह बंद रखो, जनता को समझा दो कि जो हो रहा है उनके भलाई के लिए हो रहा है ।
ज़मीर तो कब के मर चूका था । वो तो आम आदमी को पता चला तो थोड़ी हलचल हुई ।
चलो, नाच लो कब्र के इर्द गिर्द । कर लो तसल्ली । मरा हुआ जागने वाला नहीं है ।

30 comments:

  1. बेहतरीन व्यंग्य्।

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  2. सच सच बात व्यंग के माध्यम से अच्छी तरह से कही गई है.

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  3. चलो, नाच लो कब्र के इर्द गिर्द । कर लो तसल्ली । मरा हुआ जागने वाला नहीं है ।

    वाह! पैना व्यंग है, व्यवस्था पर!

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  4. बहुत ही अच्छी तरह से कहा है आपने

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  5. आप सबको अनेक धन्यवाद !

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  6. पूरे कुएं में भांग पड़ी हुई है।

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  7. आपने एकदम सही कहा राजेश जी ...

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  8. क्या किया जा सकता है.....सिवाय अपनी कब्र के चारों ओर हूला ला ला झींगा ला ला करने के....

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  9. बस यही तो कर रहे हैं हम सब ..:)

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  10. .

    अच्छा एक बात बताएं, राजनीति में लोग जाते क्यूँ है ?
    अगर कोई यह समझता है, या कहता है कि राजनीति, देश सेवा के लिए की जाती है, तो मैं उसे या तो मुर्ख समझूंगा या फिर राजनेता ।
    कॉलेज के स्तर से ही छंटे हुए बदमाश राजनीती करने लग जाते है॥

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    बिलकुल सही बात कही आपने। बेसिकली ये पैदायशी गुंडे ही हैं। लेकिन हम आम लोग इनसे उम्मीद बाँध लेते हैं की ये कुछ करेंगे। और बार-बार निराश होते हैं।


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  11. बेहद प्रभावी .... सुंदर कटाक्ष

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  12. आपके व्यंग की धार पैनी होती जा रही है.

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  13. बेहतरीन अंदाज़ मैं आप ने हकीकत को सामने रखा.

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  14. सच है। इसे झुठलाया नहीं जा सकता। रोज़ कुछ न कुछ नया घोटाला पर्दाफ़ाश हो रहा है।

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  15. सही है आपका पोल-खोल अभियान!

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  16. सही लपेटा है जी सबको, इस हमाम में सब...।

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  17. बहुत सुन्दर और शानदार व्यंग्य प्रस्तुत किया है आपने! उम्दा पोस्ट!

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  18. @ दिव्या जी
    कुछ वैज्ञानिक कहते हैं कि हम क्या हैं ये वंशगत रूप से तय होता है तो कुछ कहते हैं कि नहीं परिस्थिति हमें वो बनाती है जो हम हैं ... यानि कि जो लंका गया वही रावण ... पर मैं सोचता हूँ कि लंका में और भी तो थे ...
    खैर, आज तो हर कॉलेज में ही भावी नेता नज़र आते हैं ... यानि कि पुट के पाऊँ पलने में ही नज़र आते हैं ...

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  19. आप सबको अनेक धन्यवाद !

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  20. करारा व्यंग है ... तेज़ धार का चाकू ...पर इन नेताओं को असर नही होने वाला कुछ भी ...

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  21. बहुत करार और सार्थक व्यंग ....

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  22. बहुत ही सुन्‍दर लेखन .....।

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  23. क्या जबरदस्त कटाक्ष किया है आपने...बहुत खूब। लेकिन सब चिकने घड़े हैं, किसी पर कुछ असर नहीं होने वाला।

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  24. @ नासवा जी और महेंद्र वर्मा जी
    मुझे उस मच्छर को नहीं समझाना है जो आपका खून चूस रहा है ... मुझे आप सबको बताना है कि खून कौन सा मच्छर चूस रहा है ...

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  25. व्यंग के माध्यम से आज का सच । बहुत सटीक व्यंग है। बधाई।

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  26. निर्मला जी, उदय जी और वंदना जी,
    आप सबको अनेक धन्यवाद सराहने के लिए !

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  27. जिनके हाथ में कलम हैं (लेखक हो कवि हो शिक्षक या पत्रकार) वो राष्ट्र और जनता के लिए चोव्किदार का काम करे तो अच्छा. लेकिन जब चोव्किदार गलत हो जाए तो जनता किस पर भरोसा करे...न्याय-तंत्र से पहले से ही मोह-भंग हो चूका है....
    सोचने योग्य विषय..

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