Indranil Bhattacharjee "सैल"

दुनियादारी से ज्यादा राबता कभी न था !
जज्बात के सहारे ये ज़िन्दगी कर ली तमाम !!

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Nov 19, 2010

हमने देखी है ये समा अक्सर


हमने देखी है ये समा अक्सर
तन्हा महफ़िल में दिल रहा अक्सर
अश्क जो हमने यूँ छुपाया था
उससे अपना ही दिल जला अक्सर
फिर किसी बात पे न रोयेंगे
रोये हैं करके फैसला अक्सर ॥
पीठ पीछे जो चोट करता था
हंसके फिर वो गले मिला अक्सर
साथ चलने की कसमें खाई थी
वो मिला है जुदा जुदा अक्सर
अब तो मुझको भी मौत आ जाये
“सैल” मांगी है ये दुआ अक्सर ॥

39 comments:

  1. सच कहूँ सर इस पोस्ट की मै तारीफ नहीं कर पाऊंगा ........
    क्योकि इसके लिए तारीफ के शब्द ढूँढू तो आखिर कहाँ से...

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  2. waah, kya khub likha hai indranil ji. Ashish ji ne sahi kaha shabd nahi mere paas bhi.

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  3. शेखर सुमन और प्रतिभा जी, आप दोनों को धन्यवाद !

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  4. "फिर किसी बात पे न रोयेंगे ।
    रोये हैं करके फैसला अक्सर ॥"
    बहुत खूब दादा।

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  5. हमने भी यही महसूस किया अक्‍सर।

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  6. धन्यवाद, संजय जी और राजेश जी

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  7. फिर किसी बात पे न रोयेंगे ।
    रोये हैं करके फैसला अक्सर ॥

    ये पंक्तियाँ नए अंदाज़ से बात कह गईं. बहुत ही सुंदर रचना.

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  8. पीठ पीछे जो चोट करता था ।
    हंसके फिर वो गले मिला अक्सर ॥
    साथ चलने की कसमें खाई थी ।
    वो मिला है जुदा जुदा अक्सर ॥

    बहुत सुंदर लिखा है आपने।

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  9. फिर किसी बात पे न रोयेंगे ।
    रोये हैं करके फैसला अक्सर

    अच्छी प्रस्तुति

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  10. भुसंजी, महेंद्र जी और मासूम जी, आप सभी को बहुत बहुत शुक्रिया !

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  11. वाह! गजब की रचना, शब्दों का सुन्दर जादू, भावनाओं की कारीगरी, एक दम कमाल!! वाह, वाह!!

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  12. बहुत सुन्दर..............गहरी अभिव्यक्ति.............

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  13. सुन्दर अभिव्यक्ति !

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  14. सुमन जी, दिव्या जी और और ktheLeo, आप सब को शुक्रिया हौसला अफजाही के लिए ...

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  15. आदरणीय“सैल”जी
    नमस्कार !
    बहुत शानदार ग़ज़ल लिखते है आप तो, पूरी रवां-दवां , मुकम्मल बह्रो-वज़्न में !

    फिर किसी बात पे न रोयेंगे
    रोये हैं करके फैसला अक्सर


    हासिले-ग़ज़ल शे'र है
    पूरी ग़ज़ल के लिए मुबारकबाद कुबूल फ़रमाएं ।

    शुभकामनाओं सहित

    - राजेन्द्र स्वर्णकार

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  16. Jo baatein hum likhjne ko shabd dhundhte reh gaye... wahi dusro ki zubaani sun k mann khush hua aksar...

    फिर किसी बात पे न रोयेंगे ।
    रोये हैं करके फैसला अक्सर
    Ab ye to khuda hi jaane k aisa hua kyu kar

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  17. फिर किसी बात पे न रोयेंगे ।
    रोये हैं करके फैसला अक्सर ॥
    पीठ पीछे जो चोट करता था ।
    हंसके फिर वो गले मिला अक्सर ...

    BAHUT HI LAJAWAAB SHER HAIN DONO ... AKSAR AISA HOTA HAI ...

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  18. बहुत उम्दा ग़ज़ल कही आपने ...बधाई
    यहाँ भी पधारे
    दुआएँ भी दर्द देती है

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  19. 6.5/10

    अश्क जो हमने यूँ छुपाया था ।
    उससे अपना ही दिल जला अक्सर ॥
    बहुत खूब
    यह ग़ज़ल हर दिलजले को घायल करेगी. गारंटी

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  20. umda ghazal hui hai sahab


    फिर किसी बात पे न रोयेंगे ।
    रोये हैं करके फैसला अक्सर ॥

    ye to sabse hi shandar sher laga...matalab is ghazal ke baki sher par sawa sher.. :)

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  21. kyun mila hai wo juda aksar
    maine to maandi thi dua milne ki aksar ...

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  22. इन्द्रोनील दादा बाक़ी सब तो ठीक है, पर आपकी दुआ पूरी न हो यह दुआ हमने मांगी है। बहुत अच्छी प्रस्तुति। हार्दिक शुभकामनाएं!
    फ़ुरसत में .... सामा-चकेवा
    विचार-शिक्षा

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  23. पीठ पीछे जो चोट करता था ।
    हंसके फिर वो गले मिला अक्सर

    बहुत खूब कही आपने...सुंदर रचना..

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  24. @ राजेंद्र स्वर्णकार जी
    ब्लॉग पर पधारने के लिए शुक्रिया ... आपकी टिप्पणी तो हासिले-पोस्ट टिप्पणी है ... यूँ ही आते रहिये और हौसला अफजाही करते रहिये ...

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  25. @ मोनाली जी
    मैंने तो सिर्फ कोशिश की है ... आपको ये अपनी बात लगी ये मेरी खुशकिस्मती है

    @ नासवा जी, रानीविशाल जी, अंजना जी, विनोद जी, स्वप्निल जी - बहुत बहुत शुक्रिया

    @ उस्ताद जी - अजी दिल जलते हैं तभी तो ग़ज़ल पैदा होती है उसकी राख से ... क्यूँ ...

    @ मनोज जी - अरे आप इतना संजीदा न होइए ... आपने हमारे लिए दुआ की ... इससे ज्यादा और क्या चाहिए ...

    @ रश्मी दीदी - कुछ दुआ शायद खुदा को मंज़ूर नहीं होती है ..

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  26. कमाल की रचना ! हार्दिक शुभकामनायें

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  27. बहुत लाजवाब गज़ल है जैसे सबके दिलों का हाल लिख दिया

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  28. बहुत ही सुन्दर गज़ल. शुभकामनाएं.

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  29. आज पहली बार आपके ब्लॉग पर आया हूँ बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति ........

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  30. blog par aane ko
    aapka aabhar
    yuhi margdarsan karte rahiye
    dhanyvad

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  31. aapki rachna bahut hi sunder hai
    aabhar

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  32. सुंदर और सार्थक ग़ज़ल.
    कुछ शेर तो बहुत ही उम्दा बन पड़ें हैं .
    इसके लिए आपको बधाई.

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  33. रचना तो उमदा है लेकिन इस उम्र मे मरने की बात अच्छी नही लगी। बहुत बहुत आशीर्वाद।

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  34. निर्मला जी,
    आपको रचना अच्छी लगी मेरा सौभाग्य है ...
    ग़ज़ल की बात है, आप दुखी न होइए ...

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