Indranil Bhattacharjee "सैल"

दुनियादारी से ज्यादा राबता कभी न था !
जज्बात के सहारे ये ज़िन्दगी कर ली तमाम !!

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Jul 13, 2010

हाथी


इससे पहले मैंने आप को भालू का किस्सा सुनाया था

भालू भाग रहा था, उसके पीछे मैं



आज फिर हाज़िर हूँ आप सबके सामने मेरे जीवन का एक किस्सा लेकर ।

किस्सा सुनाने से पहले मैं आप सबको मेरे जन्मस्थान ‘जोड़ा’ के बारे में कुछ बता दूँ । बताना जरूरी भी है । जोड़ा नामक उपनगर, उड़ीसा राज्य के केन्दुझर जिले में बसा हुआ है । उड़ीसा और झाड़खंड के सीमा से लगभग २० किमी दक्षिण में स्थित यह उपनगर लौह तथा मंगानिज़ अयस्क के कारण प्रसिद्द है । यहाँ टिस्को के अलावा कई और निजी कम्पनिओं के खान, कारखाना इत्यादि है । यह इलाका घने जंगलों से घिरा हुआ है जिसमें कई प्रकार के जंगली जानवर पाए जाते हैं । इन जंगली जानवरों में से एक हैं सबसे बड़ा स्थलचर प्राणी ‘हाथी’, जो उड़ीसा के केन्दुझर, सुंदरगढ़, मयूरभंज, सम्बलपुर, बरगढ़, अनगुल, सोनापुर, बोलांगीर जिले तथा झाड़खंड के पूर्व/पश्चिम सिंघभूम जिलों में बहुतायत में पाए जाते हैं । ये साधारणत झुण्ड में चलते हैं पर कभी कभार इनमे से कुछ अपने दल से निकल कर अकेले भी इधर-उधर चरने लग जाते हैं और कई बार तो खाद्य के खोज में लोकालय में भी आ जाते हैं । जोड़ा शहर पहाड़-जंगलों के बीच बसा हुआ है । अकसर ऐसा होता है, खास कर गर्मी या बारिश के दिनों में, कि हाथी खाने कि तलाश में पहाड़ से उतरकर शहर में आ जाते हैं और खेत से अनाज या किसी के बगीचे के पेड़ से फल इत्यादि खा जाते हैं ।  पहाड़ के आस पास बसे आदिवासियों के बस्ती पर आक्रमण कर उनका घर तोड़ देना, उनके अनाज खा लेना, ऐसी बातें अकसर होती रहती है । हाथी के आक्रमण से कई लोग अपने जान भी गवां बैठते हैं ।

आज का किस्सा ऐसे ही एक घटना से जुड़ा हुआ है ।

बात उन दिनों की है जब मेरी शादी हुई थी । शादी के बाद, नई दुल्हन और बारातियों सहित हम अपने शहर जोड़ा लौट आये ।  

आने के एक दो दिन बाद की बात है, बारिश का मौसम, शाम का समय था, हम सब साथ में बैठ बातें कर रहे थे कि बाहर से कुछ आवाजें आने लगी । हम बाहर जाकर देखें तो पता चला कि एक हाथी जंगल से निकल आया है और हमारे घर के आसपास ही कहीं छुपा हुआ है ।

मुह्हले के लोग अपने अपने घरों से बाहर आ गए थे और चिल्ला चिल्ला कर, या फिर कनस्तर वगैरह बजाकर हाथी को डराने की कोशिश में लगे हुए थे । कुछ लोग तो फटाके भी फोड़ रहे थे हाथी को भगाने के लिए ।

गर्मी के अंत तक पके हुए आम और कठहल की खुशबू दूर दूर तक फ़ैल जाती है । हमारे बगीचे मैं भी चार पांच आम के और दो तिन कठहल के पेड़ हैं जो पके हुए फलों से लदे हुए थे । उनका सुगंध उस हाथी को हमारे बगीचे तक ले आया था ।

चिल्लाते, भागते लोगों से परेशान होकर हाथी, शाम के अँधेरे का फायदा उठाते हुए इधर उधर छुपता जा रहा था । तभी किसीने दौड़ते हुए आकर खबर दी, कि हाथी भागते हुए, हमारे घर के पिछवाड़े जो बगीचा है, उस बगीचे में घुस गया है ।

हम उस तरफ दौड़े । उस बगीचे में जो कठहल और आम का पेड़ है, ज़रूर उसीके लिए हाथी घुस आया होगा । घर के पीछे एक दरवाज़ा है जो बगीचे में खुलता है । हम सब उसी दरवाज़े की तरफ बढे । हम मतलब, मैं, मेरा भाई, मेरी नव विवाहित पत्नी, मेरी माँ, और पिताजी । हम सब दरवाज़े के पास पहुँच गए और ये सोचने लगे कि अब दरवाज़े को खोलकर देखा जाये । पर डर भी लग रहा था । हाथी बगीचे में कहाँ खड़ा है ये पता नहीं था । खैर, डरते डरते आखिर मैंने ही पहल लिया दरवाज़ा खोलने का । जैसे ही मैंने दरवाज़ा खोला, तो देखा कि हाथी एकदम मेरे सामने खड़ा है । उस आधे अँधेरे में भी उस विशालकाय दंतैल हाथी को एकदम सामने खड़े देख मेरी रूह काँप गयी। उसका वो विशाल काला देह और उसपर दो बड़े बड़े दांत, एक पल को ऐसा लगा जैसे कोई दानव खड़ा हो सामने । बस वो एक पल था, और मैंने देर ना करते हुए झट से दरवाज़ा बंद कर दिया । सब पूछने लगे कि क्या हुआ । मैंने उन्हें बताया कि हाथी दरवाज़े के एकदम पास, बस सामने ही खड़ा है । मेरी पत्नी मुझसे बोली कि उसे भी हाथी देखना है । पर दरवाज़ा फिरसे खोलके देखना खतरे से खाली नहीं था । हाथी लोगों के डर से वहां छिपा हुआ था, अगर उसे समझ में आ जाता कि इस दरवाज़े के पीछे से कुछ लोग उसे देख रहे हैं, वो बौखला कर आक्रमण कर सकता था । उस दरवाज़े को तोडना उसके लिए कोई बड़ी बात नहीं थी । इसलिए फिरसे दरवाज़ा खोलना एक जोखिम भरा काम था ।

हम दरवाज़ा बंद ही रखें । और कपडे का गोला बनाकर, उसपर मिटटी का तेल छिडककर, आग लगा दी गयी और उसे दरवाज़े के ऊपर से उस पार फेंका गया, ताकि हाथी उस डर से वहां से हट जाये । खैर, हाथी कुछ कठहल तोड़ कर खाया, और फिर जंगल के लिए निकल लिया । लोगों की आवाजें काफी देर तक आती रही । हम सब उसके बाद भी काफी देर तक उसी बारे में बातें करते रहें । सुबह पता चला कि हाथी कई लोगों के बगीचे में घुसकर आम, कटहल, केला जो भी मिला खाया था और पेट भरने के बाद जंगल लौट गया था । हम खुदको खुशकिस्मत समझ रहे थे कि हाथी ने घर तोड़ने का गलत फैसला नहीं लिया था ।

इसके बाद भी ऐसा कई बार हुआ कि जंगल से निकलकर हाथी शहर में घुस आया । पर ऐसा केवल एकबार ही हुआ कि हाथी को इतने करीब से देखा था ।

हाथी की तस्वीर गूगल से साभार ली गई है

20 comments:

  1. Bahut badhiya sansmaran likha hai...raungte khade ho gaye!

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  2. अच्छा लगा यहां आकर....पहली विजिट उम्मीद है आगे भी आना होता रहेगा

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  3. दरवाजा खोलते ही हाथी को सामने पा कर आप क्या हुआ होगा!... ऐसी घटनाएं कभी कभी ही घटित होती है!... मनोरंजक पोस्ट, बधाई!

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  4. It feels very nice to visit your blog. I like your story. Really Very interesting one......

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  5. बाप रे, बड़ी भयावह स्थितियाँ रही होंगी उस वक्त!!

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  6. सभी को धन्यवाद ! उम्मीद है आप सबको यह किस्सा पसंद आया होगा ...
    इसी तरह मैं बीच बीच में अपने जीवन से कुछ घटनाएँ आप सबके सामने लाता रहूँगा ...

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  7. हाथियों के उत्पात की समस्या उड़िसा और 36 गढ की साझी समस्या है,ये इन दोनो प्रदेशों में विचरते रहते हैं।
    अच्छा हुआ आपका मिला वो हाथी पियक्कड़ नहीं था, इसलिए बच गए। उसने घर नहीं तोड़ा
    अच्छी पोस्ट

    ब्रह्माण्ड भैंस सुंदरी प्रतियोगिता

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  8. Indranil ji.....dara diya aapne....saans rok-kar pura sansmaran padha.

    I can imagine the spooky state of that day. I wonder how the newly wed might be feeling that moment.

    Beautiful narration !

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  9. heheh..aap ka proffession bhi sahi hai saab....khatai ki zaroorat hi nahi padti hogi ..daant aise hi khatte hote rahe honge samay samay par....:) khair be careful be safe..:)

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  10. achcha hua hathi raja ko gussa nahi aaya ..........

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  11. Indranil ji,
    ऐसे अनुभव बहुत रोमांचकारी होते हैं, लेकिन शहरों में रहने वाले लोग और विशेषकर नई पीढ़ी प्रकृति से दूर होकर कितना कुछ मिस कर रहे हैं? अपने बच्चों को मोर दिखाने के लिये भी चिड़ियाघर ले जाना पड़ता है, और वहां भी कोई गारंटी नहीं होती कि दिख ही जायेंगे।
    बांटते रहिये ऐसे अनुभव हमारे साथ, अच्छा लगता है।

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  12. Romanchak anubhav aur zeevant vivran.

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  13. ...बेहतरीन अभिव्यक्ति!!!

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