उसे बारिश में भीगना,
पसंद है बहुत !
मुझे नहीं ।
बस इसी बात पे,
हमारे बीच
कडकती है बिजलियाँ ।
पहाड़ की पगडण्डी पर,
तुम बढ़ गए थे आगे,
और थोड़ी देर के लिए,
सुस्ता कर,
मैंने चुपके से
सोख लिया था
सन्नाटा ।
३
सिलबट्टा, मिक्सी, फ़ूड-प्रोसेस्सर
चिट्ठी, ईमेल और चैटिंग
फैन, कूलर और एसी
साईकिल, बस और हवाई जहाज
माँ, पत्नी और बेटी !
चित्र साभार गूगल सर्च
चित्र साभार गूगल सर्च
बहुत सुन्दर रही ये पगडंडियाँ
ReplyDeleteउसे बारिश में भींगना,
ReplyDeleteपसंद है बहुत !
मुझे नहीं ।
बस इसी बात पे,
हमारे बीच
चमकती है बिजलियाँ ।
वाह्…………क्या खूब लिखा है।
क्या कहने .............बहुत बढ़िया !! लगे रहिये !
ReplyDeleteआपकी पगडंडीयों को पढ़ कर मुझे भी याद आ गयी कुछ लाइने जो अभी तक डायरी में ही क़ैद हैं ...
ReplyDeleteसर्दी में ठिठुरती
बरसात में नहाती
इक पहाड़ से दूजे पहाड़
सुख दुःख ले जाती
मौन तपस्वी सा
राह दिखाती
गाँव से गाँव का
सम्बन्ध बनाती
खेत की मुंडेर से
खेत के मुंडेर तक
बलखाती इठलाती
छोटी सी
पथरीली सी
पगडण्डी.........
बेहतरीन
ReplyDeletekhubsurat pagdandiyaan...aur ye to kamaal..
ReplyDeleteउसे बारिश में भींगना,
पसंद है बहुत !
मुझे नहीं ।
बस इसी बात पे,
हमारे बीच
चमकती है बिजलियाँ ।
:)
Pahli aur teesari rachna niyahan sundar hai...
ReplyDeleteऔर थोड़ी देर के लिए,
ReplyDeleteसुस्ता कर,
मैंने चुपके से
सोख लिया था
सन्नाटा ।
Waah !...kya baat keh di.
उसे बारिश में भींगना,
ReplyDeleteपसंद है बहुत !
मुझे नहीं ।
बस इसी बात पे,
हमारे बीच
चमकती है बिजलियाँ ।
adbhutt...taliyaaaaan ek dum is bat pe....baki dono bhi khub bhali hain ..par pahli lazawaab lagi /...
मंगलवार 06 जुलाई को आपकी रचना ... चर्चा मंच के साप्ताहिक काव्य मंच पर ली गयी है आभार
ReplyDeletehttp://charchamanch.blogspot.com/
सुन्दर,बेदतरीन रचना है।
ReplyDeleteक्षणिकाएं गहरे विचारों से परिपूर्ण है। शैली चमत्कृत और प्रभावित करती है। सर्जनात्मकता के लिए विभिन्न बिम्बों का उत्तम प्रयोग अद्भुत प्रभाव उत्पन्न करता है।
ReplyDeleteसिलबट्टा, मिक्सी, फ़ूड-प्रोसेस्सर
ReplyDeleteचिट्ठी, ईमेल और चैटिंग
फैन, कूलर और एसी
साईकिल, बस और हवाई जहाज
माँ, पत्नी और बेटी !
वाह वाह वा...आपकी नूतन सोच को नमन...कमाल की रचना प्रस्तुत की है आपने...ढेरों बधाई..
नीरज
इन्द्रनील भाई पहली दो कविताएं बहुत सुंदर हैं। आपने गजब के बिम्ब लिए हैं। पहली कविता में अगर चमकती की जगह कड़कती या तड़कती हो तो मेरे हिसाब से कविता में और गहराई आएगी।
ReplyDeleteदूसरी कविता लगभग चमत्कृत करती है। तीसरी के बारे में मेरा मत आपसे बिलकुल अलग है। पहली बात तो यही की जीवन से भरी मां,पत्नी और बेटी को कृपया इन बेजान चीजों के साथ मत रखिए। अव्वल तो वे चीज नहीं हैं। दूसरी बात यह कि यह तुलना बेमानी है। यह अंतर समय के सापेक्ष है।
एक और बात शब्द भीगना है,भींगना नहीं। हां भींजना शब्द है।
ReplyDeleteक्या बात है ..एकदम अलग और दिलकश अंदाज ..बेहद सुन्दर.
ReplyDeleteमेरे ब्लॉग पर इज्जतअफजाई का बहुत बहुत शुक्रिया.
इन्द्रनील जी आपकी पहली दो कविताएं बहुत सुंदर हैं। मेरे हिसाब से अगर पहली कविता में चमकती की जगह आप कड़कती या तड़कती कर लें तो कविता में और गहराई आज जाएगी। दूसरी कविता लगभग चमत्कृत करती है। पर तीसरी कविता के बारे में मेरा मत कुछ भ्रिन्न है। पहली बात तो यह कि जीवन से भरी मां,पत्नी और बेटी की तुलना इन बेजान चीजों से साथ मत करिए। अव्वल तो ये चीज नहीं हैं। दूसरी बात यह अंतर समय के सापेक्ष है।
ReplyDeletePata nahi kitna samajh paayi...magar padh k khushi huyi...
ReplyDeleteराजेश जी, आप ने सही कहा चमकती की जगह कडकती बेहतर लगेगी ... पहले मैं भी यही सोचा था पर जाने क्या सोचकर नहीं लिखा ... अब उसे कडकती कर दिया है ...
ReplyDeleteजहाँ तक तीसरी कविता कि बात है, वो माँ, पत्नी और बेटी कि तुलना बेजान चीजों से नहीं की गई है ... यहाँ तीन पीढ़ी में आया बदलाव को दर्शाने की कोशिश की गई है ... अलबत्ता, सिलबट्टे से पीसी हुई मसाले से खाने में जो स्वाद आता है वो किसी भी मिक्सी से नहीं आ सकता है ....
विज्ञान के कारण जीवन में भी बदलाव आते जा रहे हैं ... उसे भी नकार नहीं सकते ... पीढ़ी दर पीढ़ी हमारी जिंदगी बदलती जा रही है ... यह क्षणिका उसीकी तस्वीर है ... उम्मीद है अब मैं अपने विचार स्पष्ट कर पाया हूँ ....
इन्द्रनील जी सुझाव पर विचार करने और अपनाने के लिए शुक्रिया। तीसरी कविता में आपकी भावना मैं पहले भी समझ पा रहा था। वह बहुत स्पष्ट है। लेकिन अंतत: पीढि़यों का अंतर दिखाने के लिए आपने बेजान चीजों को ही लिया है। उससे भी ज्यादा मेरा कहना है कि स्त्रियां चीज नहीं हैं। हमें इस मानसिकता से उबरना चाहिए।खैर यह विमर्श का विषय है।
ReplyDeleteसन्नाटे को सोखने का यह अन्दाज ... बहुत सुन्दर
ReplyDeleteऔर फिर बिजली कडकने का कारण भी तो समझ में आ गया.
पहाड़ की पगडण्डी पर,
ReplyDeleteतुम बढ़ गए थे आगे,
और थोड़ी देर के लिए,
सुस्ता कर,
मैंने चुपके से
सोख लिया था
सन्नाटा ।
...सुंदर भाव बेहतरीन रचना.
मेरी रचना को सराहने के लिए आप सबको मेरा हार्दिक धन्यवाद !
ReplyDelete'मैंने चुपके से सोख लिया था सन्नाटा 'बहुत सुन्दर पंक्ति \अच्छी भावपूर्ण रचना |
ReplyDeleteआशा
भावपूर्ण रचना..............शुभकामनायें !
ReplyDeleteअच्छी पगडंडिया खासतौर पर ...
ReplyDeleteउसे बारिश में भींगना,
पसंद है बहुत !
मुझे नहीं ।
बस इसी बात पे,
हमारे बीच
चमकती है बिजलियाँ ।
सबसे पहले तो यशवंत को धन्यवाद कि उसने मेरी इस पोस्ट को अपने चर्चा में स्थान दिया ...
ReplyDeleteवंदना जी, निधि जी और आशा जी को भी अनेक धन्यवाद जो वो आकर मेरी इस पोस्ट पर अपनी बहुमूल्य टिपण्णी दिए ...
बेहद भावमयी और खूबसूरत अभिव्यक्ति. आभार.
ReplyDeleteसादर,
डोरोथी.