1)
जाने से पहले
हर किसीसे
कर लूँगा झगड़ा,
कि मेरे जाने के बाद
किसीको
मेरी कमी न खले ।
2)
झूठ के कठघड़े में
मैंने सच को हमेशा
कांपता पाया,
कि जैसा हो कोई
बलि का बकरा ।
3)
रिश्तों के चौराहे पर
खड़ा मैंने देखी
एक शवयात्रा,
बड़ी धूम धाम से
बढ़ रही थी आगे ।
मैंने पूछा “कौन गुज़र गया”?
तो किसीने कहा “प्यार” ।
पहला सबसे अच्छा, पर आप टैग का सही प्रयोग नहीं कर रहे हैं
ReplyDeleteअब कोई ब्लोगर नहीं लगायेगा गलत टैग !!!
योगेन्द्र जी,
ReplyDeleteसुझाव के लिए धन्यवाद ... मैंने आपकी पोस्ट भी देख ली है ... बढ़िया है ...
दरअसल मैं अपने ब्लॉग के हिसाब से ही टैग करते रहता हूँ ... मेरे विषय इतने विविध नहीं है कि बहुत ज्यादा व्यवस्थित होना पड़े ... आगे जैसे जैसे ब्लॉग्गिंग आगे बढ़ेगा ... आपके सुझाये हुए रास्ते पर भी चल पडूंगा ...
Wonderful!
ReplyDelete३ सरा भाग बहुत अच्छा लगा सर!
ReplyDeleteसादर
सभी भाग बहुत सुन्दर हैं| धन्यवाद|
ReplyDeleteएक शवयात्रा,
ReplyDeleteबड़ी धूम धाम से
बढ़ रहा था आगे ।
मैंने पूछा “कौन गुज़र गया”?
तो किसीने कहा “प्यार” ।
वाह वाह ,क्या क्षणिका है.प्यार का यही हश्र होता है.सच में.
शब्द कम हैं मगर हैं भाव गहरे.
बराबर प्यार पर दुश्मन के पहरे.
आपकी रचनात्मक ,खूबसूरत और भावमयी
ReplyDeleteप्रस्तुति भी कल के चर्चा मंच का आकर्षण बनी है
कल (24-3-2011) के चर्चा मंच पर अपनी पोस्ट
देखियेगा और अपने विचारों से चर्चामंच पर आकर
अवगत कराइयेगा और हमारा हौसला बढाइयेगा।
http://charchamanch.blogspot.com/
रिश्तों के चौराहे पर
ReplyDeleteखड़ा मैंने देखा
एक शवयात्रा,
बड़ी धूम धाम से
बढ़ रहा था आगे ।
मैंने पूछा “कौन गुज़र गया”?
तो किसीने कहा “प्यार” ।
Wah,wah,wah! Ekse badhke ek kshanika! Nihayat sundar!
"... कि मेरे जाने के बाद किसीको मेरी कमी न खले "
ReplyDeleteलगा की मेरे विचार आपने लिखे हों इन्द्रानिल ! शुभकामनायें आपकी संवेदना को ...
समाज को उसका सही आईना दिखा दिया है.
ReplyDeleteओह!
ReplyDeleteदिल छू लेने वाली रचना।
Vaah!
ReplyDeleteपहली क्षणिका बहुत पसन्द आई।
ReplyDelete@ सिमरन, यशवंत, पातली, कुसुमेश जी, वन्दना जी, क्षमा जी, सतीश जी, विजि जी, मनोज जी, ktheleo जी, और अनुराग जी, आप सबको अनेक धन्यवाद कि आप सबने मेरी रचना को सराहा ...
ReplyDeleteझूठ के कठघड़े में
ReplyDeleteमैंने सच को हमेशा
कांपता पाया,
कि जैसा हो कोई
बलि का बकरा ।
dukhad hai, per yah bhi ek sach hai
teenon ke teenon hi kamal ka likhe hain...bahut achchi lagi.
ReplyDeleteBAHUT KHOOB ..LAST ONE IS SUPERB
ReplyDeleteसभी क्षणिकायें लाज़वाब..अंतस को छू जाती हैं..बहुत सुन्दर
ReplyDeleteलगता है कि आप छोटी रचनाओं में अपने को ज्यादा अच्छे से अभिव्यक्त कर पाते हैं। थोड़ा और कसें। बढि़या और प्रभावी रचनाएं हैं।
ReplyDeleteराजेश जी, बहुत बहुत शुक्रिया पसंद करने के लिए ... इसी तरह उत्साह बढ़ाते रहिये और सुझाव देते रहिये ... ज़रूर और बेहतर करने की कोशिश करूँगा !
ReplyDeleteबहुत बढ़िया लगा! इस उम्दा रचना के लिए बधाई!
ReplyDeleteजाने से पहले
ReplyDeleteहर किसीसे
कर लूँगा झगड़ा,
कि मेरे जाने के बाद
किसीको
मेरी कमी न खले ..
बहुत सुन्दर
yekse badhkar yek sunder rachnaye antim aur bhi achhi lagi.........
ReplyDeleteजाने से पहले
ReplyDeleteहर किसीसे
कर लूँगा झगड़ा,
कि मेरे जाने के बाद
किसीको
मेरी कमी न खले ...
ab...
iske aage
kuchh kehne ko reh jata hai bhala...!?!
shaandaar !!
बहुत अच्छी रचना है. पंजाबी में कहावत है कि बिछुड़ना ही हो लड़ कर बिछुड़ना चाहिए. आप एकदम पंजाबी निकले :))
ReplyDeleteजाने से पहले
ReplyDeleteहर किसीसे
कर लूँगा झगड़ा,
कि मेरे जाने के बाद
किसीको
मेरी कमी न खले ...
Fantastic !
.
वाह तीनों ही रचनाएं बहुत सुंदर हैं.
ReplyDelete,आपकी सोच अलग ही है । जानदार
ReplyDeleteभूषण जी, शायद दिल की बात दुनिया के हर प्रान्त में एक ही तरीके से कही जाती है ...
ReplyDeleteराजीव जी, काजल जी, दिव्या जी, दानिश जी, सुमन जी, अमरेन्द्र जी, सबको धन्यवाद !
bahur khoob..har pankti lazwab..
ReplyDeleteसुन्दर, बेहतरीन
ReplyDeleteVivek Jain (vivj2000.blogspot.com)
तीनों रचनाएँ बढ़िया.
ReplyDeleteखासकर तीसरी तो बहुत खूब.
तीनों ही अलग-अलग स्वभाव के !
ReplyDeleteबहुत बढ़िया !
teeno kshanikaayen bhaut sunder....
ReplyDeleteantim waali sabse achhi lagi.........
अपने को पहली सबसे शानदार लगी।
ReplyDeleteतीसरी क्षणिका में ’खड़ा’ के स्थान पर ’खड़े’ शायद ज्यादा मुफ़ीद लगे।
bahut achchhi lagi ...teeno hi ..sach achchha laga..
ReplyDeleteDekhan mein choti lagen ghaav karen gambheer ... bahut lajawab ...
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