Indranil Bhattacharjee "सैल"

दुनियादारी से ज्यादा राबता कभी न था !
जज्बात के सहारे ये ज़िन्दगी कर ली तमाम !!

अपनी टिप्पणियां और सुझाव देना न भूलिएगा, एक रचनाकार के लिए ये बहुमूल्य हैं ...

Jan 31, 2011

धूप – चाँद – रंग – खुशबू !

धूप
उस दिन जब तुम
खड़ी थी मेज के पास,
खिडकी से आकर
धूप का एक कतरा,
छूं लिया था
तुम्हारे चेहरे को
आज भी हर रोज़  
ठीक उसी समय,
वो ता है खिडकी से,
और ढूंढते रहता है
वो छुवन !

चाँद
देखो कितना शैतान है
ये चाँद !
जब तुम थी तो
फैलाकर चांदनी,
मुस्कुराता था
आज कितनी देर से
खड़ा हूँ खिडकी के सामने,
और वो छुपकर बैठा है
बादलों के पीछे !

रंग – खुशबू
वो जो ख्वाबों के पौधे
लगाये थे हमने
साथ मिलकर;
उनपर आज खिले हैं 
सुख के फूल
रंगीन, दिलकश !
पर न जाने क्यूँ,
नहीं है
उनमें खुशबू ।

35 comments:

  1. बहुत ही बढ़िया बिम्ब और भाव.
    कमाल कर दिया सर!

    सादर

    ------
    बापू! फिर से आ जाओ

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  2. तीनो क्षणिकाएं अलग अलग रंग बिखेर रहीं हैं और विलक्षण हैं...मेरी बधाई स्वीकारें...
    नीरज

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  3. तीनो क्षणिकाएं बढ़िया हैं.

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  4. बहुत खूब ... क्या बात ... लगे रहिये जनाब ! शुभकामनाएं !

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  5. प्रिय बंधुवर इन्द्रनील जी
    सस्नेहाभिवादन !

    बहुत अच्छी प्रेम कविताएं हैं… सुंदर और शालीन ! धूप और चांद तो बहुत पसंद आई ।
    रंग-ख़ुशबू के लिए यही कहूंगा कि सुख के फूल शीघ्रातिशीघ्र सुवासित हों … आमीन !

    ( हां , "उन पर आज खिला है सुख के फूल" … # यहां 'खिला है' को सुधार कर खिले हैं कर लीजिए …

    हार्दिक बधाई और मंगलकामनाएं !

    - राजेन्द्र स्वर्णकार

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  6. स्वर्णकार जी,
    आपके सुझाव के लिए धन्यवाद ... सुधार कर दिया गया है ...

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  7. भाई इंद्रनील जी

    आभार !

    अभी तृप्ति बहन के यहां कमेंट करके आया हूं…
    आप तो बहुत अच्छे कलाकार हैं ।
    आपकी लेखनी और तूलिका दोनों को नमन है !

    - राजेन्द्र स्वर्णकार

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  8. अरे दीदी, बोलने कि क्या ज़रूरत है ... :)

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  9. sail bhai...
    teeno rachnaayein boht achi hain....
    zara maatraa ka dhyaan rakhiyega...
    pehli kavita mein chhu ki jagah CHHOO ho sakta tha.....

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  10. बेहतरीन "धुप" सबसे बेहतर लगी

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  11. वाह! के अलावा क्या लिखूँ? वाह!

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  12. अच्छी रचनाएं...सोंचने को मजबूर करतीं .... शुभकामनायें !

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  13. बिम्बों में जो बात कही है आपने उस पर मुझे कहना है,

    आंख और हाथ का बस इतना फलसफा है।
    समझो तो ठीक वरना हर मौसम ख़फ़ा है।

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  14. आज भी हर रोज़
    ठीक उसी समय,
    वो आता है खिडकी से,
    और ढूंढते रहता है
    वो छुवन !


    wahhhh........!!!! bas...aur kya kahun.....wahhh

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  15. लंबी अनुपस्थिति के बाद आया हूँ, पहचान तो लेंगे न? हा हा हा।

    तीनों रचनायें बेहद खूबसूरत, चाँद वाली यकीनन सबसे ज्यादा।

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  16. @संजय जी,
    अरे कैसे नहीं पह्चंनेंगे भई, आपका हमेशा स्वागत है ...

    @ सुरेन्द्र जी,
    सही कहा, टंकण गलती थी, सुधार ली गई है

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  17. धुप , खुशबू , चाँद ...कुदरत की नुमयिशों में शामिल है हर रंग उसकी याद का ...
    सुबह की खिली धूप- सी, पत्तो पर ओस की बूंदों- सी मोहक क्षणिकाएं !

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  18. कुदरत को कैद कर दिया

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  19. कमाल कर दिया…………तीनो ही शानदार, लाजवाब, बेहतरीन्।

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  20. तीनो रचनायें शानदार, अलग अलग भाव दर्शाती हुई । बहुत सुन्दर ।

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  21. तीनों क्षणिकायें लाज़वाब..बहुत सुन्दर

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  22. बहुत दिनों बाद आज टिपण्णी कर रहा हूँ...तीनो नज़्म बहुत अच्छी लगीं और आपको आपकी कलाकारी के लिए भी बधाई देनी थी....
    वाह...

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  23. वाकई दिल से निकली अभिव्यक्ति

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  24. उनपर आज खिले हैं
    सुख के फूल

    बहुत ही बढ़िया बिम्ब ......दिल से निकली ....
    लाज़वाब..बहुत सुन्दर....
    बधाई

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  25. हमें तो वैसे भी धूप चाँद और खुशबू बहुत पसंद हैं फिर आपका अंदाज़ उसमें चार चाँद लगा गया

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  26. तीनो रचनायें शानदार, अलग अलग भाव दर्शाती हुई । बहुत सुन्दर|

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  27. Tino kshanikaayen man ko tarangit karati hain.
    Sundar abhivyakti ke liye abhaar

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  28. सुंदर क्षणिकाएं..... धूप तो बहुत ही पसंद आई.....

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  29. bahut khoob ! very Gulzaresqe
    invite you to visit :

    http://poeticbreak.blogspot.com/2011/01/blog-post_23.html

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  30. आपकी ये तीनो क्षणिकाएं बहोत ही अच्छी लगी .....लाजवाब

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  31. tino rachnaye bahut khubsurab lagi.....

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