धूप
उस दिन जब तुम
खड़ी थी मेज के पास,
खिडकी से आकर
धूप का एक कतरा,
छूं लिया था
तुम्हारे चेहरे को ।
आज भी हर रोज़
ठीक उसी समय,
वो आता है खिडकी से,
और ढूंढते रहता है
वो छुवन !
चाँद
देखो कितना शैतान है
ये चाँद !
जब तुम थी तो
फैलाकर चांदनी,
मुस्कुराता था ।
आज कितनी देर से
खड़ा हूँ खिडकी के सामने,
और वो छुपकर बैठा है
बादलों के पीछे !
रंग – खुशबू
वो जो ख्वाबों के पौधे
लगाये थे हमने
साथ मिलकर;
उनपर आज खिले हैं
सुख के फूल ।
रंगीन, दिलकश !
पर न जाने क्यूँ,
नहीं है
उनमें खुशबू ।
बहुत ही बढ़िया बिम्ब और भाव.
ReplyDeleteकमाल कर दिया सर!
सादर
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बापू! फिर से आ जाओ
तीनो क्षणिकाएं अलग अलग रंग बिखेर रहीं हैं और विलक्षण हैं...मेरी बधाई स्वीकारें...
ReplyDeleteनीरज
तीनो क्षणिकाएं बढ़िया हैं.
ReplyDeleteबहुत खूब ... क्या बात ... लगे रहिये जनाब ! शुभकामनाएं !
ReplyDeletekahut khub
ReplyDeletetino hi sunder hai
प्रिय बंधुवर इन्द्रनील जी
ReplyDeleteसस्नेहाभिवादन !
बहुत अच्छी प्रेम कविताएं हैं… सुंदर और शालीन ! धूप और चांद तो बहुत पसंद आई ।
रंग-ख़ुशबू के लिए यही कहूंगा कि सुख के फूल शीघ्रातिशीघ्र सुवासित हों … आमीन !
( हां , "उन पर आज खिला है सुख के फूल" … # यहां 'खिला है' को सुधार कर खिले हैं कर लीजिए …
हार्दिक बधाई और मंगलकामनाएं !
- राजेन्द्र स्वर्णकार
स्वर्णकार जी,
ReplyDeleteआपके सुझाव के लिए धन्यवाद ... सुधार कर दिया गया है ...
भाई इंद्रनील जी
ReplyDeleteआभार !
अभी तृप्ति बहन के यहां कमेंट करके आया हूं…
आप तो बहुत अच्छे कलाकार हैं ।
आपकी लेखनी और तूलिका दोनों को नमन है !
- राजेन्द्र स्वर्णकार
yah vatvriksh ke liye chahiye
ReplyDeleteअरे दीदी, बोलने कि क्या ज़रूरत है ... :)
ReplyDeletesail bhai...
ReplyDeleteteeno rachnaayein boht achi hain....
zara maatraa ka dhyaan rakhiyega...
pehli kavita mein chhu ki jagah CHHOO ho sakta tha.....
बेहतरीन "धुप" सबसे बेहतर लगी
ReplyDeleteवाह! के अलावा क्या लिखूँ? वाह!
ReplyDeleteअच्छी रचनाएं...सोंचने को मजबूर करतीं .... शुभकामनायें !
ReplyDeleteबिम्बों में जो बात कही है आपने उस पर मुझे कहना है,
ReplyDeleteआंख और हाथ का बस इतना फलसफा है।
समझो तो ठीक वरना हर मौसम ख़फ़ा है।
आज भी हर रोज़
ReplyDeleteठीक उसी समय,
वो आता है खिडकी से,
और ढूंढते रहता है
वो छुवन !
wahhhh........!!!! bas...aur kya kahun.....wahhh
bahut hi sundar likha bhaiji aapne lajvab badhai
ReplyDeleteलंबी अनुपस्थिति के बाद आया हूँ, पहचान तो लेंगे न? हा हा हा।
ReplyDeleteतीनों रचनायें बेहद खूबसूरत, चाँद वाली यकीनन सबसे ज्यादा।
@संजय जी,
ReplyDeleteअरे कैसे नहीं पह्चंनेंगे भई, आपका हमेशा स्वागत है ...
@ सुरेन्द्र जी,
सही कहा, टंकण गलती थी, सुधार ली गई है
धुप , खुशबू , चाँद ...कुदरत की नुमयिशों में शामिल है हर रंग उसकी याद का ...
ReplyDeleteसुबह की खिली धूप- सी, पत्तो पर ओस की बूंदों- सी मोहक क्षणिकाएं !
कुदरत को कैद कर दिया
ReplyDeleteकमाल कर दिया…………तीनो ही शानदार, लाजवाब, बेहतरीन्।
ReplyDeleteतीनो रचनायें शानदार, अलग अलग भाव दर्शाती हुई । बहुत सुन्दर ।
ReplyDeleteतीनों क्षणिकायें लाज़वाब..बहुत सुन्दर
ReplyDeleteबहुत दिनों बाद आज टिपण्णी कर रहा हूँ...तीनो नज़्म बहुत अच्छी लगीं और आपको आपकी कलाकारी के लिए भी बधाई देनी थी....
ReplyDeleteवाह...
वाकई दिल से निकली अभिव्यक्ति
ReplyDeleteउनपर आज खिले हैं
ReplyDeleteसुख के फूल
बहुत ही बढ़िया बिम्ब ......दिल से निकली ....
लाज़वाब..बहुत सुन्दर....
बधाई
हमें तो वैसे भी धूप चाँद और खुशबू बहुत पसंद हैं फिर आपका अंदाज़ उसमें चार चाँद लगा गया
ReplyDeleteतीनो रचनायें शानदार, अलग अलग भाव दर्शाती हुई । बहुत सुन्दर|
ReplyDeleteTino kshanikaayen man ko tarangit karati hain.
ReplyDeleteSundar abhivyakti ke liye abhaar
teeno hi khoobsurat hain.
ReplyDeleteसुंदर क्षणिकाएं..... धूप तो बहुत ही पसंद आई.....
ReplyDeletebahut khoob ! very Gulzaresqe
ReplyDeleteinvite you to visit :
http://poeticbreak.blogspot.com/2011/01/blog-post_23.html
आपकी ये तीनो क्षणिकाएं बहोत ही अच्छी लगी .....लाजवाब
ReplyDeletetino rachnaye bahut khubsurab lagi.....
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