१)
शांत मन के झील में जो
अक्सर उतर आता था
उज्जवल और स्पष्ट कभी,
आज इस अस्थिर चित्त
में नहीं दिख पाता है
अस्पष्ट चाँद !
२)
बड़ी कुटिल है
मुस्कान उसकी !
चुभती बड़ी है दिल में !
खुद झुककर मैंने
हिला दिया पानी के
शांत सतह को,
जाओ नहीं देखना है मुझे
नष्ट चाँद !
३)
क्यूँ ढके रहते हो
एक पक्ष अँधेरे में ?
कहाँ जाते हो
अमाबस के दिन ?
इतना क्यूँ देते हो मुझे
कष्ट चाँद ?
अतिसुन्दर
ReplyDeleteजय माता दी.. दुर्गा पूजा की हार्दिक शुभकामनाए...
doosri bandish khoobsoorat lagee mujhe...
ReplyDeleteआते-जाते-भाते चांद.
ReplyDeletesundar rachnaa hai.. chand na tabhi amawas hoti hai... amawas par hi chand ki mahatwtaa aur badhati hai...
ReplyDeleteक्यूँ ढके रहते हो
ReplyDeleteएक पक्ष अँधेरे में ?
कहाँ जाते हो
अमाबस के दिन ?
इतना क्यूँ देते हो मुझे
कष्ट चाँद ?
बेहतरीन क्षणिकाएं ...।
भाव पूरी तरह संप्रेषित हुए हैं. सुंदर क्षणिकाएँ.
ReplyDeleteचाँद अर्थात चंद्रमा मन का कारक होता है और आपकी यह रचना मनभावन है।
ReplyDeleteबड़ी कुटिल है
ReplyDeleteमुस्कान उसकी !
चुभती बड़ी है दिल में !
खुद झुककर मैंने
हिला दिया पानी के
शांत सतह को,
जाओ नहीं देखना है मुझे
नष्ट चाँद !
ये क्षणिका मुझे बहुत पसंद आई
तीनो ही अद्भुत शानदार दिल को छूती हैं।
ReplyDeleteउद्वेलित करती मन को भाव कणिकाएं .अच्छे बिम्ब प्रतिबिम्ब उभरते बिगड़ते .
ReplyDeleteछा गए भाई साहब भाव कणिका एक तरफ और नैन सुख सरकार के लिए एक बायोनिक आई आपकी टिपण्णी का व्यंग्य विनोद एक तरफ .बहुत खूब .
ReplyDeleteteeno kshanikayen behad achhi hain
ReplyDeletekitni badi baat kah di -asthir chitt mein spasht chaand nahi deekhta !
ReplyDeleteचान्द के माध्यम से आपने मन की बात कही। बहुत ही स्पंदित कर गई ये क्षणिकाएं।
ReplyDeleteएक ही कविता की तीन अलग-अलग पर्तें !
ReplyDeleteअस्पष्ट चांद, नष्ट चांद और कष्ट चांद...
सुंदर प्रयोग।
आप सब को विजयदशमी पर्व शुभ एवं मंगलमय हो।
ReplyDeleteबहुत बढ़िया लिखा है आपने! अद्भुत सुन्दर क्षणिकाएं ! लाजवाब प्रस्तुती!
ReplyDeleteआपको एवं आपके परिवार को दशहरे की हार्दिक बधाइयाँ एवं शुभकामनायें !
bahut achi rachna,kum shabdon me ache bhaav sampreshit kie hain aapne,badhaai!
ReplyDeleteसुन्दर क्षणिकाएं हैं. बधाई.
ReplyDeleteसुन्दर क्षणिकाएं,शुभकामनायें आपको !
ReplyDeleteहर क्षणिका में चाँद का सौंदर्य अक्षुण्ण है.
ReplyDeleteबहुत सुंदर क्षणिकाएँ ...
ReplyDeleteकहाँ जाते हो
ReplyDeleteअमाबस के दिन ?
बहुत अच्छा प्रश्न।अच्छी प्रस्तुती।
अच्छी प्रस्तुति ...
ReplyDeleteबहुत बहुत धन्यवाद शेखर !
ReplyDeleteइतने कम शब्दों में जो जिगाषाएं और प्रश्न प्रतुत किये ,
ReplyDeleteअतुलनीय !
धन्यवाद अस्थाना जी !
Deleteबहुत सुन्दर कविता.....
ReplyDeleteफोटोग्राफी भी मुझे पसंद है मगर कविता की खोज में इतना पीछे आना पड़ा :-)
अनु
अनु जी, कविता तो आपको मेरे ब्लाग पर बहुत सारी मिल जायेगी, धन्यवाद !
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