Indranil Bhattacharjee "सैल"

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Sep 16, 2011

जानिए सौंदर्य प्रतियोगिताओं के पीछे का सच !


कुछ दिनों पहले ब्राजील के साओ पाओलो शहर में मिस यूनिवर्स प्रतियोगिता का आयोजन हुआ जिसमे विजयिनी रही अंगोला देश की मिस लीला लोपेज । इस प्रतियोगिता में भारत से मिस वासुकी सुन्कवाल्ली गई हुई थी जो अंतिम १६ प्रतियोगी में भी न आ सकी । ज़ाहिर है इस बात को लेके भारत में हंगामा तो मचना ही था । तरह तरह के लोग तरह तरह की बातें करने लगे
कुछ लोग यह कह रहे थे कि मिस वासुकी इस लायक नहीं थी कि उन्हें इस प्रतियोगिता में भेजा जाय । ज़रूर कोई घोटाला हुआ होगा और भारत में सही प्रतियोगी को चुना नहीं गया होगा (वैसे हमारे देश का अब तक का रिकार्ड देखते हुए ये बात असंभव नहीं लगती है) । कई लोग यह कह रहे थे, कि ऐसी कोई बात नहीं है । सबसे अच्छी प्रतियोगी को ही भेजा गया था । अब बाकी के बेहतर निकले तो इसमें बेचारी मिस वासुकी की क्या गलती है  

कई लोग यह भी कह रहे थे कि मिस वासुकी कोई इतनी सुन्दर तो नहीं है । काली सी दुबली सी लड़की है । ऐसी लड़की को मिस यूनिवर्स जैसे प्रतियोगिता में भेजने के पीछे क्या तर्क था । इसके जवाब में कुछ लोगों ने यह कहा कि यह तो एक प्रकार का भेद भाव है, त्वचा के रंग के आधार पर और यह सर्वथा गलत है । आखिर जीतने वाली भी तो अफ्रीका से है और श्याम रंग की है । और फिर सौंदर्य प्रतियोगिता में केवल रंग रूप थोड़ी न देखे जाते हैं, उसमे तो बुद्धि, विवेचना शक्ति इत्यादि भी जाँची जाती है । हाँ ये बात तो सच है कि बाकी देशों के मुकाबले भारत में ज्ञान-बुद्धि-विवेचन से कहीं ज्यादा महत्व रंग-रूप को दिया जाता है । दरअसल २०० साल से गोरे अंग्रेजों के गुलाम बने रहने का फल यह हुआ कि हमारे दिलो दिमाग में गोरा रंग एक अत्यंत महत्वपूर्ण स्थान ले चूका है । हमारी गुलाम मानसिकता हमें यह बताती है कि लड़की (कभी कभी लड़के भी) सुन्दर तभी मानी जायेगी जब वो गोरी हो । लड़का, चाहे वो कितना भी काला क्यूँ न हो, पर जब शादी करने जाता है तो उसे गोरी लड़की ही चाहिए होती है । गोरे गोरे बच्चे देखते है तो हम तपाक से गोद में उठाके प्यार करने लग जाते हैं । काले बच्चों की तरफ तो कोई मुड़कर भी नहीं देखता । बचपन से ही हम बच्चों में भी रंग-रूप के आधार पर भेद-भाव के बीज बो देते हैं

खैर ब्राजील में क्या हुआ और क्या नहीं हुआ यह बहुत ज़रुरी बात नहीं है । ज़रुरी है यह समझना कि दरअसल यह सौंदर्य प्रतियोगिता होती क्या है कई लोगों का कहना है कि ऐसी प्रतियोगिताओं में रूप-रंग, बुद्धि-विवेचना, ज्ञान, जोश, हाज़िर-जवाबी, सभी कुछ जांचा परखा जाता है । 

मुझे ऐसी बातें सुनकर बड़ी हंसी आती है । ऐसी बातें करने वाले चार प्रकार के लोग होते हैं । एक वो जो इन प्रतियोगिताओं से जुड़े होते हैं, उन्हें अपनी दुकान चलानी होती है । ऐसे लोगों में शामिल हैं सौंदर्य प्रतियोगिताओं के आयोजक, प्रायोजक (ज्यादातर प्रसाधन सामग्री बनाने वाले), मिडिया वाले, विज्ञापन वाले) दूसरे वो जिनको इन प्रतियोगिताओं में भाग लेना होता है या भाग लेने के सपने देखते रहते हैं । तीसरे होते हैं नारीवादी लोग, जिन्हें लगता है कि हज़ारों लोगों के सामने सुन्दर कपड़ों से सजकर, या फिर आधी नंगी होकर स्टेज पे चढ़ने से ही नारी मुक्ति संभव है और चौथे विशाल जन समूह जिन्हें इस सौंदर्य महा-यज्ञ के पीछे की असलियत पता नहीं होती है


चलिए आप सबको बताते हैं ऐसी प्रतियोगिताओं के पीछे का सच । दरअसल ऐसी प्रतियोगिताओं में बिजेताओं को न तो रंग-रूप, ना ही बुद्धि-विवेचना, या फिर ज्ञान, जोश या हाज़िर-जवाबी के आधार पर चुना जाता है । विजेताओं को चुनने वाला होता है लागत और राजस्व एकाउंटेंट । अरे नहीं नहीं चौंकिये मत । यही सच है । 

विजेताओं को चुनने का आधार होता है:
१. सौंदर्य प्रसाधन और designer-wear के देश के बाजार में पैठ
२. भू-राजनैतिक सोच-विचार


प्रथम स्थान मिलने का मौका सबसे ज्यादा उन देशों के प्रतियोगी को है जिस देश में सौंदर्य प्रसाधनों के उपयोग का बाजार/पैठ कम है इन सौंदर्य प्रतियोगिताओं के विजेताओं को तो सौंदर्य प्रसाधन और डिजाइनर पहनावों के उपयोग को बढ़ावा देने के लिए एक माध्यम के रूप में किया जाता है । एक बार ऐसे किसी देशके प्रतियोगी को विजेता बना दो और फिर देखते रहो कि इस देश में सौंदर्य प्रसाधन और डिजाइनर पहनावो के बाज़ार में किस तरह उछाल आता है


रनर अप के लिए उन देशों के प्रतियोगी को चुना जाता है जिन देशों में किसी तरह का उथलपुथल या अशांति मचा हो या फिर अकाल, संघर्ष इत्यादि चल रहा हो । उदाहरण स्वरुप दक्षिण अफ्रीका के प्रतियोगी को एक सांत्वना रनर उप पुरस्कार दिया गया जब रंगभेद नीति के पतन के बाद दक्षिण अफ्रीका पहली बार ऐसी प्रतियोगिता का आयोजन किया । इसी तरह सीरिया, अफगानिस्तान, इरान, लीबिया के सुन्दरिओं को ऐसी प्रतियोगिताओं में रनर उप स्थान प्राप्त होने का मौका ज्यादा है


इससे पहले भारत ने ४ से ५ बार इन प्रतियोगिताओं में जीत हासिल की क्योंकि पश्चिमी कंपनियों द्वारा निर्मित सौंदर्य प्रसाधनों का उपयोग भारत में बहुत कम था अब भारतीय लड़के-लड़की पश्चिमी/अमेरिकी फैशन के नशे में पूरी तरह डूब चुके हैं । यह कहना गलत नहीं होगा कि आज हमारे युवा वर्ग फैशन लिए एक तरह से पागल हो चुके हैं । पश्चिमी सभ्यता के साथ साथ पश्चिमी विलास-व्यसन भी अपना चुके हैं । अब तो पश्चिमी फैशन, प्रसाधन सामग्री इत्यादि का भारत में विशाल बाज़ार बन चूका है । इसलिए अब तो आने वाले एक लंबे समय तक के लिए एक और भारतीय मिस यूनिवर्स बनवाने की जरूरत नहीं है । हाँ, अगर अचानक किसी कारण से पश्चिमी प्रसाधन सामग्रीओं तथा फैशन सामग्रीओं के खपत के कोई गिरावट आती है तो ज़रूर एक-दो भारतीय मिस यूनिवर्स या मिस वर्ल्ड फिर से बन जायेंगे


असलियत तो यह है कि करोड़ों के व्यापार करने वाली पश्चिमी कंपनियों को भारत में घुसने के लिए एक माध्यम, एक जरिया चाहिए था । अचानक भारत से कई लड़कियां (ऐश्वर्या, लारा, सुष्मिता, प्रियंका, दीया मिर्जा) सौंदर्य प्रतियोगिताओं में जीतने लगे । ये कंपनियां चाहती थी कि भारत के युवा वर्ग, खासकर लड़कियां इन भारतीय विजेताओं को देखकर, उन्हें अपना आदर्श मानकर सौंदर्य प्रसाधनों का उपयोग ज्यादा से ज्यादा शुरू कर दे । यह इन शक्तिशाली और अर्थशाली कंपनियों के लिए केवल एक आर्थिक योजना मात्र था । ऐसी बात तो नहीं है कि भारतीय महिलाएं इससे पहले सुन्दर नहीं थी । फिर अचानक कुछ सालों तक, एक के बाद एक भारतीय ललनाओं का इन प्रतियोगिताओं में जीतना, सोचने वाली बात है । 

उम्मीद है कि मेरा यह लेख पढकर आप सबको ऐसी सौंदर्य प्रतियोगिताओं के पीछे का असलियत का पता चलेगा

32 comments:

  1. अन्दर से देखो प्यारे बिल्कुल पोलम पोल है.... जितनी पैठ , उतना सुन्दर

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  2. आपके द्वारा दी गई जानकारी से आँखे खुलनी चाहिएँ. अपने यहाँ से किसी के विश्व सुंदरी चुने जाने का मतलब है अरबों रुपए के सौंदर्य प्रसाधनों का आयात और देश की विदेशी मुद्रा की बरबादी. हम कब चेतेंगे?

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  3. मुझे आपकी बात बहुत सही लग रही है।


    सादर

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  4. Bilkul sacchi baat hai ji.
    ese padhkar lakho ladkiyo ka dil toot jayega.

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  5. ऑंखें खोल दी आपने इस आलेख के माध्यम से , आभार

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  6. एक समय था कि वेनेजुयेला इस काम के लिये ’मोस्ट फ़ेवर्ड नेशन’ था, अपनी नजर में भी इस गेम में सबसे बड़ा फ़ैक्टर मार्केट और मार्केटिंग का ही है।

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  7. बिलकुल सच कहा है...

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  8. असलियत तो यह है कि करोड़ों के व्यापार करने वाली पश्चिमी कंपनियों को भारत में घुसने के लिए एक माध्यम, एक जरिया चाहिए था ।

    यही सच है...अच्छा विश्लेण किया है आपने...

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  9. बात तो सही कही आपने.

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  10. पश्चिमी कंपनियों को भारत में घुसने के लिए एक माध्यम ||
    बहुत बढ़िया |
    बधाई ||

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  11. बहुत बढ़िया आलेख. १००% सच्चाई है. लेकिन हमारा युवा वर्ग तो पगला चुका है. मैं अपने रिश्तेदारों के घर जब जाता हूँ, उनके टोइलेट में रखे प्रसाधन सामग्रियों को देख हैरान हो जाता हूँ.

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  14. seems true, excellent expression

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  15. बिल्‍कुल सही कहा है आपने ...सार्थक व सटीक लेखन ।

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  16. यह कार्यक्रम लाइव देख रहा था। और जब अंतिम दस दिखाने लगे तभी मेरे मुंह से निकला कि इस बार इसे ही मिलेगा। हर बार कोई नया देश इन्हें फंसाना होता है लोगों की जेब में घुसने के लिए। अब तो भारत के गांव-गांव में लोरियाल, गार्नियर पहुंच ही गया है।
    आपका आलेख सटीक है। सही विश्लेषण।

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  17. आपका कहना बिल्कुल सही है।

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  18. आपने सही कहा है.

    परदे के पीछे की जानकारी देने के बहुत बहुत आभार.
    भारत में तो पहले ही सौंदर्य प्रसाधनों की पैठ
    बनाई जा चुकी है,विश्व सुंदरियाँ चुन कर.

    मेरे ब्लॉग पर आपका हार्दिक स्वागत है.

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  19. आपका १११ वा फालोअर बनकर मुझे बहुत खुशी मिल रही है.

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  20. हर तरह मार्केट का बोलबाला है. इन प्रतियोगिताओं का सच बेबाक सामने रखने के लिये बधाई सैल जी.

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  21. बात एकदम सही है, यह प्रतियोगितायें पूरी तरह से व्यवसाय हैं।

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  22. आप सबको अनेक धन्यवाद कि आप सबने इस लेख को पढ़ा और समझा ... मेरा उद्देश्य जागरूकता फैलाना है ... प्रगति के पथ पर रोड़ा बनना नहीं ...
    राकेश कुमार जी को १११ वां फोलोवर बनने के लिए शुक्रिया ... वैसे मैं इस बात से उतना परेशां नहीं होता हूँ कि मेरे कितने फोलोवर बने ... आप सब तक अच्छी गुणबत्ता के लेख/कविता/संस्मरण इत्यादि पहुंचा पाऊँ ही मेरा उद्देश्य है ...

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  23. मेरे ब्लॉग पर आप आये,इसके लिए आभारी हूँ आपका.
    बहुत अच्छा गणित किया है आपने.
    वाह!

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  24. आपका कहना बिलकुल सत्य है ... भौतिक दुनिया का एक कडुवा सच ... आज हर प्रतिस्पर्धा बाजार को माध्यम रख के ही की जाती है ...

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  25. सही पोल उजागर कर दी आपने....

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