बहुत दिन बाद फिर से कुछ क्षणिकाएं लिख रहा हूँ | माफ कीजियेगा पर मुझे कई बार ये समझ में नहीं आता है कि कई लोग रोज इतने सारे लेख, कविता, संस्मरण इत्यादि कैसे लिख लेते हैं | उनके प्रतिभा को प्रणाम | इधर तो ऐसा है कि जब तक अपने आप कोई बात दिमाग में न आये, लाख सर फोड लूँ , एक शब्द नहीं निकलता | और महीने में दो तिन या ज्यादा से ज्यादा ५-६ रचनाओं से ज्यादा कभी लिख भी नहीं पाता हूँ | चलिए इस बार आप सबके लिए ले आया हूँ तीन क्षणिकाएं जो देश के मौजूदा हालात पे टिपण्णी है |
१. विभीषण
रावण के मृत्यु पश्चात
बड़े धूमधाम से
बनाया गया विभीषण को
लंकाधिपति |
और बनते ही राजा,
विभीषण बन गया
रावण !
२. कसूरवार
जब भी जंगल में कोई
बाहर का भेडिया
कर जाता है शिकार,
जंगल का राजा शेर
अपने भेडिया मंत्रियों के साथ
करता है विमर्श,
दहाड़ता है कि लेंगे बदला,
और फिर गहन चिंतन के बाद
तय होता है कि दोष दरअसल
उन भेड़ों का है जो बहुसंख्यक हैं,
क्यूंकि उनका रंग सफ़ेद है |
३. हिम्मत
हमें करना होगा
हिम्मत से सामना,
आतंकवाद और मुश्किलों का,
यह कहकर मंत्री जी
जा बैठे अपने बुलेटप्रूफ
और वातानुकूलित
वाहन में |
तीनों क्षणिकाओं में एक अलग-सी स्थिति छिपी है छिपकली सी.
ReplyDeleteतीनों लाजवाब ... अलग अलग अंदाज़ लिए ...
ReplyDeleteतीनों ही क्षणिकाएँ लाजवाब हैं सर!
ReplyDelete------
कल 21/09/2011 को आपकी यह पोस्ट नयी पुरानी हलचल पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
धन्यवाद!
क्षणिकाएं कुछ कहती तो हैं।
ReplyDeleteWah! Khoob hee kaha!
ReplyDeleteबहुत सटीक क्षणिकाएं ..
ReplyDeletesabse pahle, un logon ko mera bhi pranaam aur mera bhi haal wahi hai...
ReplyDeleteteenon kshnikayen bahut hi steek evam badhiya hai, parantu mujhe himmat sabse pasand aai...
बहुत ही खूबसूरत अंदाज़ मेँ आपने देश के मौजूदा हालात को दर्शाते हुए सत्ता एवँ नेताओँ की सच्चाई भी बयान कर दी। इतनी अच्छी और सामयिक रचना के लिए बधाई।
ReplyDeleteआज के दोहरे चरित्र को दर्शाती तीनो क्षणिकाये लाजवाब हैं।
ReplyDeleteसभी क्षणिकाएँ स्वयं को अभिव्यक्त करने में सक्षम ....
ReplyDeleteबहुत ही गहरे जज्बात ... तीनोँ बहुत ही सुन्दर हैँ।
ReplyDeletesunder....aur swasth vyang se bhare hue
ReplyDeleteतीनों रचनाएँ सुंदर है !
ReplyDeleteहमें करना होगा
ReplyDeleteहिम्मत से सामना,
आतंकवाद और मुश्किलों का,
यह कहकर मंत्री जी
जा बैठे अपने बुलेटप्रूफ
और वातानुकूलित
वाहन में |
सब दिखावे का ज़माना है.
रावण के मृत्यु पश्चात
ReplyDeleteबड़े धूमधाम से
बनाया गया विभीषण को
लंकाधिपति |
और बनते ही राजा,
विभीषण बन गया
रावण !
बहुत खूब ..... कई बार शब्द विश्राम लेते हैं ... घबराना नहीं है
बहुत ही गहरे भाव लिए हुए क्षणिकाएं.
ReplyDeleteशब्द होते ही ऐसे हैं.जबर्दस्त्ती न तो बुलाए जा सकते हैं न आने से रोके जा सकते हैं.
तीखा कटाक्ष करती क्षणिकाएं...वर्तमान की सच्चाई निहित है आपकी इन क्षणिकाओं में....हार्दिक बधाई.
ReplyDeleteबनते ही राजा,
ReplyDeleteविभीषण बन गया
रावण !
लाजवाब! बहुत ही तीखा व्यंग्य है।
आज की राजनीति पर करारी चोट करती तीनों क्षणिकाएँ लाजवाब
ReplyDeleteपसंद के हिसाब से रैंकिंग करें तो तीनों क्षणिकायें संयुक्त रूप से प्रथम रैंक पर। बहुत अच्छी क्षणिकायें, सीरियसली।
ReplyDeleteसही और सटीक
ReplyDeleteमारक हैं सभी क्षणिकाएं!
ReplyDeleteठीक है , कम लिखिए मगर दम हो ऐसा कदम लिखिए , बेहतरीन काव्य है आपकी तीनो क्षणिकाएं
ReplyDeleteबहुत सुंदर क्षणिकाएँ ।
ReplyDeletesabhi kshanikayen teekha kataksh kar rahi hain.bahut umda.
ReplyDeleteजब मैं फुर्सत में होता हूँ , पढ़ता हूँ और तहेदिल से इन भावनाओं का शुक्रगुज़ार होता हूँ ....
ReplyDeleteतीनों ही शानदार और लाजबाब हैं ..
ReplyDeleteतीनो क्षणिकाये लाजवाब हैं।
ReplyDeleteयही हाल अपना है ! मूड बने बिना लिख नहीं पाता !
ReplyDeleteशुभकामनायें आपको !
'कसूरवार' तो बहुत ही मारक है...
ReplyDeleteसादर बधाई....
इन क्षणिकाओं में देश के हर क्षण की बात बड़ी आसानी और गहराई से कह दी है आपने..
ReplyDeleteबेहतरीन!
आभार
तेरे-मेरे बीच पर आपके विचारों का इंतज़ार है...
तय होता है कि दोष दरअसल
ReplyDeleteउन भेड़ों का है जो बहुसंख्यक हैं,
क्यूंकि उनका रंग सफ़ेद है |
bahut teekshn vyang kiya hai aapne....
जब भी जंगल में कोई
ReplyDeleteबाहर का भेडिया
कर जाता है शिकार,
जंगल का राजा शेर
अपने भेडिया मंत्रियों के साथ
करता है विमर्श,
दहाड़ता है कि लेंगे बदला,
और फिर गहन चिंतन के बाद
तय होता है कि दोष दरअसल
उन भेड़ों का है जो बहुसंख्यक हैं,
क्यूंकि उनका रंग सफ़ेद है |
तीनों व्यंग्य -कणिकाओं को सलाम .बेहतरीन आयाम दिया है आज के राजनीतिक पाखण्ड को ,राष्ट्रीय सलाह कार समिति पर करारा प्रहार .
इन्द्रनील जी नमस्ते!
ReplyDeleteमैं आपकी बात से सहमत हु, जाने लोग रोज इतनी रचनात्मक ऊर्जा कहाँ से लाते है, मेरा भी उनको आश्चर्य मिश्रित प्रणाम ....
सभी क्षणिकाएं अपने आपमें व्यंग्य और सत्य की खूबसूरती समेटे है...
व्यंग्य विधा का बेजोड़ उदाहरण.बड़ा ही पैना और बड़ा ही शिष्ट.
ReplyDeleteGreat satire !
ReplyDeleteबहुत ही गहनता से आपने तीनों क्षणिकाओं में देश में
ReplyDeleteहो रही गतिविधियों को उतारा है ...आभार ।
और बनते ही राजा,
ReplyDeleteविभीषण बन गया
रावण !
जवाब नहीं इन पंक्तियों का।
आप भले ही चार-पांच लिखते हैं लेकिन कमाल का लिखते हैं।
अपनी परिपूर्णता के साथ...
ReplyDeleteसटीक व्यंग्यात्मक क्षणिकाएं....
@ सभी ब्लॉग पाठक
ReplyDeleteआप सभी सुधीजनो को मेरा नमस्कार और हार्दिक धन्यवाद कि आप सबने मेरी इन रचनाओं को सराहा ... उम्मीद है आगे भी आप सब मेरे ब्लॉग पर आते रहेंगे और मेरा उत्साह वर्धन करते रहेंगे
@ रश्मि दीदी
दीदी अगर आपकी बात सच्चाई तो लगता है मेरे शब्द निहायत आलसी किस्म के हैं ... जब देखो तब सुस्ताते रहते हैं :)
@ शीखा जी
अरे आप बिलकुल सही कह रही है ... बिलकुल जिद्दी हैं ... और मेरी बात तो बिलकुल नहीं मानते हैं ...
@ मो सम कौन (संजय जी)
आप जितना सहज सरल और दिलकश ढंग से लिखना सीख जाऊं तो कुछ बेहतरी हो :)
इन्द्रनील जी बहुत अच्छी क्षणिकाएं ....
ReplyDeleteइन दिनों क्षणिकाएं एकत्रित कर रही हूँ सरस्वती-सुमन पत्रिका के लिए जो की क्षणिका विशेषांक निकल रहा है ....
आप अपनी १०, १२ क्षणिकाएं संक्षिप्त परिचय और तस्वीर मुझे मेल कर दें ......
इन्तजार रहेगा ....:))
harkirathaqeer@gmail.com
इन्द्रनील जी बहुत अच्छी क्षणिकाएं ....
ReplyDeleteइन दिनों क्षणिकाएं एकत्रित कर रही हूँ सरस्वती-सुमन पत्रिका के लिए जो की क्षणिका विशेषांक निकल रहा है ....
आप अपनी १०, १२ क्षणिकाएं संक्षिप्त परिचय और तस्वीर मुझे मेल कर दें ......
इन्तजार रहेगा ....:))
harkirathaqeer@gmail.com
हरकीरत जी, टिपण्णी के लिए शुक्रिया ... मैंने क्षणिकाएं भेज दिया है ... उम्मीद है पत्रिका में प्रकाशन के लिए चुने जाएँगे ...
ReplyDeleteधन्यवाद !
तीनों ही बेहतरीन.....
ReplyDeleteतीनों रचनायें कालातीत हैं।
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