दिल में न जाने कितनी बातें आती जाती रहती है । कई बात ऐसी होती है जिनको कविता में ढालना संभव नहीं हो पाता है । कई बात ऐसी होती है जिनके बारे में सोचते सोचते वो एक कविता या ग़ज़ल का रूप ले लेती है । अक्सर ऐसा होता है कि लाख कोशिश करूँ, कुछ भी नहीं लिख पाता हूँ । और कभी कभी अपने आप पंक्तियाँ बह निकलती हैं ।
तो दोस्तों फिर हाज़िर हूँ आपके सामने एक ताज़ातरीन ग़ज़ल लेकर ।
इस ग़ज़ल को मैंने 'फायलातुन, फायलातुन, फायलुन' बहर में लिखने की कोशिश की है ।
आईने के पीछे रहता कौन है ।
रोज ऐसे मुझपे हँसता कौन है ॥
पीठ पर यूँ हाथ हमदर्दी के रख ।
दुःख पे मेरे मुंह चिढाता कौन है ॥
जब भी नैनो के झरोखे बंद हो ।
द्वार मन का खटखटाता कौन है ॥
वार दिल पर करती है तीरे नज़र ।
मुंह छुपाके मुस्कुराता कौन है ॥
आज महफ़िल में तमाशा देख लो ।
बिन पिए ही लड़खड़ाता कौन है ॥
चाहिए मुझको सवेरा बस अभी ।
रात अँधेरे में रोता कौन है ॥
करके बातें दीन मज़हब की यहाँ ।
आग बस्ती में लगाता कौन है ॥
‘सैल’ को बोलो कि ऐसा ना करे ।
दिल्लगी में दिल लगाता कौन है ॥
... bahut sundar ... shaandaar !!!
ReplyDelete‘सैल’ को बोलो कि ऐसा ना करे ।
ReplyDeleteदिल्लगी में दिल लगाता कौन है ॥
बहुत सुंदर रचना.... अंतिम पंक्तियों ने मन मोह लिया...
ख्याल और भाव सुन्दर हैं!
ReplyDelete"..पीठ पर यूँ हाथ हमदर्दी के रख ।
ReplyDeleteदुःख पे मेरे मुंह चिढाता कौन है ॥..."
ग़ज़ल की लहर में वास्तविकता को भी सामने रख दिया है सर!
बहुत बहुत बहुत ही अच्छी ग़ज़ल.
सादर
‘सैल’ को बोलो कि ऐसा ना करे ।
ReplyDeleteदिल्लगी में दिल लगाता कौन है ॥
वाह..वाह..वाह! खूब कहा है!!
जब भी नैनो के झरोखे बंद हो ।
ReplyDeleteद्वार मन का खटखटाता कौन है
बहुत खूबसूरत गज़ल ...
करके बातें दीन मज़हब की यहाँ ।
ReplyDeleteआग बस्ती में लगाता कौन है ॥
‘सैल’ को बोलो कि ऐसा ना करे ।
दिल्लगी में दिल लगाता कौन है ॥
har bat bilkul kasaui par khari......... under prastuti.
उलझन तो वाजिब है। जो भी है वह मुंह छुपाके ही हंस रहा है। बढिया ग़ज़ल।
ReplyDeletebahut khoob ....aapka lekhan bhut achchha lga...
ReplyDeleteरात अँधेरे में रोता कौन है.......सुन्दर भाव
ReplyDeleteबहुत ही सुन्दर ख्याल्।
ReplyDeleteबहुत सुन्दर गज़ल.
ReplyDeleteबड़ा मुश्किल सवाल है.
ReplyDeleteबहुत पहले, स्कूल में एक जापानी कहानी पढ़ी थी "फ़िल्मिन और बांसिस" इसमें भी पत्नी यही जानना चाहती थी कि उसके पति के पास जो एक आइना है उसमें कौन औरत है, यह बात अलग है कि उस बेचारी को पता नहीं था कि उसके पति के पास जा चीज़ है उसे आइना कहते हैं जिसे वह जब भी छुप कर देखती थी तो उसे अपना ही चेहरा नज़र आता था पर वो ये बात जानती नहीं थी.
बहुत सुन्दर गज़ल|
ReplyDelete‘सैल’ को बोलो कि ऐसा ना करे ।
ReplyDeleteदिल्लगी में दिल लगाता कौन है ॥
बहुत खूब सुन्दर गज़ल। लेकिन एक शेर के बारे मे कुछ सोचो---- चाहिये मुझ को सवेरा अभी--- रात के अंधेरे मे रोता कौन है। लोग अक्सर रात के अन्धेरे मे ही रोते हैं यहाँ्रोता की जगह हंसता हो जाये तो दिन के साथ सही मेल हो जायेगा। मुझे भी गज़ल की उतनी समझ नही बस एक विमर्श हो जायेगा इस से। शुभकामनायें।
जब भी नैनो के झरोखे बंद हो
ReplyDeleteद्वार मन का खटखटाता कौन है ...
बहुत खूब सैल साहब ... कमाल का शेर है ये .,.. सच है नैनों के द्वार बंद होते ही दिल के द्वार खुलने लगते हैं ...
@ Nirmala jee
ReplyDeleteआपको बहुत शुक्रिया कि आपने ध्यान से ग़ज़ल को पढ़ा ... उस शेर के बारे में मैं ये कहना चाहूँगा कि इस शेर में मैंने रात और सवेरा को प्रतीकात्मक रूप से इस्तमाल किया है ...
यहाँ रात आज के भ्रष्ट ज़माने का प्रतीक है, अँधेरे का प्रतीक है, जबकि सवेरा उन्नती, प्रगति और सुधार का प्रतीक है ...
मानव मन इस भयानक अँधेरे को देखकर एक अबूझ बच्चे की तरह जिद्द पे अड़ा है कि सवेरा बस अभी चाहिए ... ये शेर एक हाहाकार है ... एह आह है जो आज के हालात पर निकला है मेरे दिल से ...
आईने के पीछे यह तेरा ही अक्स है
ReplyDeleteआत्मा कहो
या मन का अदृश्य कोना
वही रोता है
वही चिढाता है ....
हुत ही गहन अर्थ लिए इस आईने के आगे खड़े हो
दीदी आपने एकदम सही समझा है !
ReplyDeleteजब भी नैनो के झरोखे बंद हो ।
ReplyDeleteद्वार मन का खटखटाता कौन है
बहुत खूब.
खूबसूरत ग़ज़ल है , एक एक शेर खूबसूरती की नुमाइंदगी करते हुए . आभार
ReplyDeleteचाहिए मुझको सवेरा बस अभी ।
ReplyDeleteरात अँधेरे में रोता कौन है ॥
kyun mera main is tarah aaine se jhaankta hai
This comment has been removed by the author.
ReplyDeleteजब भी नैनो के झरोखे बंद हो ,
ReplyDeleteद्वार मन का खटखटाता कौन है।
जब आंखें बंद होती हैं तो निश्चित रूप से मन-मस्तिष्क में कोई न कोई, कुछ न कुछ आ ही जाता है।
प्रभावित करती हुई अच्छी ग़ज़ल...
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ReplyDelete‘सैल’ को बोलो कि ऐसा ना करे ।
दिल्लगी में दिल लगाता कौन है ॥
वाह , नील जी, लाजवाब ग़ज़ल लिखी है। मन प्रसन्न हो गया।
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bhut hi khubsurat rachna....
ReplyDeleteबिन पिए ही लड़खड़ाता कौन है ॥
ReplyDeleteचाहिए मुझको सवेरा बस अभी ।
सुरेन्द्र जी,
ReplyDeleteआपसे एक दरख्वास्त है ... ऐसा है कि मेरे ब्लॉग पर आनेवाले को कोई ज़बरदस्ती नहीं होती है टिपण्णी करने की ... आपको रचना अच्छी लगे तो टिपण्णी कीजिये वरना मत कीजिये ... कोई गल नहीं ... पर रचना को बिन पढ़े केवल टिपण्णी करने की औपचारिकता को निभाने के लिए आप अपना कीमती समय क्यूँ बर्बाद कर रहे हैं ? ...
केवल ग़ज़ल के दो पंक्ति (दो अलग अलग शेर की पंक्तियाँ) उठाकर copy-paste कर दिए हैं ... ये तक नहीं देखे कि कौन से पंक्ति उठाकर चिपका रहा हूँ ... साफ़ ज़ाहिर हो रहा है कि रचना क्या है कैसा है इससे आपको कोई सरोकार नहीं है ... बस टिपण्णी देना है इसलिए दे रहे हैं ...
आपसे बिनती है कि अगर आपको मेरी रचनाएँ इतनी गई गुजरी लगती है तो टिपण्णी देने की ज़हमत न उठाये ...
sir mujhe aapki kavita ki 2 panktiyaan bahut achhi lagi thi lekin pata nahi kaise galti se galat panktiyaan select ho gayi.
ReplyDeleteआज महफ़िल में तमाशा देख लो ।
बिन पिए ही लड़खड़ाता कौन है ॥
bhool hui shaayad aapko mujhe samajhne mein blog jagat mein 1.5 saal se oopar ka waqt ho gaya hai mujhe aur main samajhta hoon ki ek lekhak kitni shiddat se sochta aur likhta hai, maine bhi aapki poori kavita padhi aur jo 2 panktiyaan mujhe sab se achhi lagi maine unhi ko copy kar ke bheja aapko, ye mera durbhagya hai ki galti se oopar nichey ho gaya warna main jaanta hoon aapki keemat.
thase lagi uske liye maafi chahtaa hoon lekin kripya ye na kahein ki aapkii rachnaayein padhtaa nahi hoon, aur aap hee kya, sabhi rachnaayein padhta hoon.
shukriyaa!
@ सुरेन्द्र जी,
ReplyDeleteचलिए कोई बात नहीं, गलती तो किसीसे भी हो सकती है ... मैं खुद जब भी किसी ब्लॉग पर जाता हूँ, पहले लेख को अच्छी तरह पढता हूँ और फिर टिप्पणी करता हूँ ... भले केवल एक शब्द लिखता हूँ कि "वाह" पर वो रचना पढ़ने के बाद लिखता हूँ ...
आपका मेरे ब्लॉग पर हमेशा स्वागत है ...
आयने में अनन्त दुनियां रहती है !
ReplyDeleteबहुत सुन्दर गज़ल.
ReplyDeleteकमाल है भाई ...शुक्रिया
ReplyDeleteThanks for your understanding Mr. BHattacharjee!
ReplyDeleteपीठ पर यूँ हाथ हमदर्दी के रख ।
ReplyDeleteदुःख पे मेरे मुंह चिढाता कौन है
वाह...कमाल की गज़ल कही है आपने...हर शेर बेहतरीन है...दाद कबूल करें...
नीरज
इन्द्रनील जी,
ReplyDeleteपहले तो मैं ये बता दूं मुझे ग़ज़ल पल्ले ही नहीं पड़ती, ये बहर क्या होती है पता नहीं.....
लेकिन जो पढने में अच्छी लगे, उसे अच्छी ग़ज़ल कह देता हूँ... मुझे तो पता नहीं चलता कि कौन कविता है और कौन ग़ज़ल....") अपन तो वो हैं जो अपनी भावनाओं को कागज़ पर उतारते हैं कभी वो गद्य होता है कभी पद्य और कभी तो गद्पद सा कुछ हो जाता है....
खैर आपकी इस ग़ज़ल पर आऊं तो बस इतना कह सकता हूँ, कि मुझे तो बहुत पसंद आई..
सोचा २ पंक्ति कॉपी पेस्ट करूं लेकिन पूरी ग़ज़ल ही उम्दा है....बाकी पंक्तियों के साथ दुश्मनी कौन मोल ले भला......
देरी के लिए क्षमा कहूंगा...आजकल रीडर में ही पढ़ रहा हूँ...
ReplyDeleteसमय मिलने पर ही टिप्पणी कर पाता हूँ....उम्मीद है आप समझेंगे...
प्रिय इन्द्रनील जी
ReplyDeleteनमस्कार !
अच्छी ग़ज़ल है इस बार भी … बधाई !
मुझे बहुत ख़ुशी होती है , जब कोई शिल्प की पूरी समझ के साथ सृजन करता है ।
… फिर आप तो तग़ज़्ज़ुल के साथ तख़य्युल की कसौटी पर भी अच्छी ग़ज़ल दे रहे हैं … मुबारकबाद !
बिल्कुल हल्का तो कोई शे'र नहीं , फिर भी यह ज़्यादा पसंद आया -
करके बातें दीन मज़हब की यहां
आग बस्ती में लगाता कौन है
बहुत सुंदर !
शुभकामनाओं सहित
राजेन्द्र स्वर्णकार
वाह!
ReplyDelete@ शेखर सुमन जी
ReplyDeleteअरे आप इतना परेशां ना हों ... मैं कौन सा तीस मार खान हूँ ... बहर न भी समझ में आता हो तो कविता के रूप में ही पढ़ लीजिये ... मतलब समझ में आ जाय यही मेरा उद्देश्य है ... आपको अगर रचना अच्छी लगी, इससे ज्यादा और क्या चाहिए मुझे ... आप यहाँ आते हैं, मेरी रचना पसंद करते हैं ...बस यही तो चाहता हूँ ... शुक्रिया !
@ राजेंद्र स्वर्णकार जी
ReplyDeleteयह तो मेरा सौभाग्य है की आप न केवल मेरे ब्लॉग पर मेरी रचनाएँ पढने आते हैं बल्कि उन्हें पसंद भी करते हैं ... बस बड़े बुजुर्गों से कुछ सीख लूँ तो लिखना सार्थक हो जायेगा ... आप इसी तरह आते रहे और मार्ग दर्शन करते रहे यही कामना है ...
बहुत सुंदर पोस्ट /
ReplyDeleteगरिमामय ...मेरे ब्लॉग पर भी आने की कृपा करे
पीठ पर यूँ हाथ हमदर्दी के रख
ReplyDeleteदुःख पे मेरे मुंह चिढाता कौन है
मुझे ये शेर बहुत प्यारा लगा.आपकी id नहीं है वरना कुछ और बातें इस सम्बन्ध में करता
सुन्दर गज़ल!
ReplyDeleteवार दिल पर करती है तीरे नज़र ।
ReplyDeleteमुंह छुपाके मुस्कुराता कौन है।
बहुत ख़ूब.......
हर शेर लाजवाब....
बेहद उम्दा ग़ज़ल....
आप स्वयं ...
ReplyDeleteबहुत गहरे भाव हैं इस रचना में .....
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